
नयी दिल्ली। रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार समारोह में गीताश्री ने कहा कि पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि मूल्यों के बीच पीसती हुई स्त्रियां खुद कहानी बनती जा रही हैं। मुक्ति के लिए छटपटाती हुई स्त्रियों का विलाप शायद मुझे ज्यादा साफ सुनाई देता है। वर्जनाओं के प्रति उनकी नफरत का अहसास मुझे ज्यादा होता है। रिश्तों के जाल में उलझीं, सुरक्षा और सुविधाओं के नाम पर उम्रकैद की सजायाप्त औरतें मेरी चिंता का विषय हैं। हाशिए पर रखी गई कौम की खोखली उपलब्धियां झनझना रही हैं। दुनिया छोटी हुई, जो शोषण के तंत्र उजागर हुए। इससे जूझती हुई स्त्रियों ने विचारों की शक्ल में मुझे घेर लिया है। शायद मैं दूसरी औरतो के बहाने अपने दिल के गिरह खोल रही हूं। इसे कुंठा का नाम नहीं दिया जा सकता। कवि लीलाधर मंडलोई की पंक्तियां उधार लेते हुए कहती हूं- जिंदगी में दाखिल होने की मेरी कोशिश है मेरी कहानियां।”
गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित रमाकांत स्मृति
समारोह में फिल्म कार अनवर जमाल ने पुरस्कृत कहानियां और रमाकांत जी पर चर्चा की। रमाकांत स्मृति पुरस्कार से पुरस्कृत दो संग्रह भी लोकार्पित किए गए। इसमें नए रंग में इस समारोह में प्रस्तुत पांच कहानियां संकलित है और कथा शब्दों में समय में अब तक उसकी 25 कहानी। इनका संपादन किया है कथाकार महेश दर्पण ने ।
महेश दर्पण और पुरस्कार चयन
सन 2019 से 2023 तक के लिए प्रतिष्ठित ‘रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार’ 7 दिसंबर को राजधानी के गांधी शांति प्रतिष्ठान में प्रदान किये गए। पहले वर्ष के लिए निर्देश निधि, दूसरे वर्ष हेतु अंजू शर्मा, तीसरे वर्ष के लिए आशा पांडेय, चौथे वर्ष हेतु अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’ और पांचवें वर्ष हेतु गीताश्री को पुरस्कृत किया गया। पुरस्कार समिति के संयोजक महेश दर्पण के अनुसार इनका चयन क्रमशः महेश कटारे, प्रदीप पंत, देवेंद्र राज अंकुर, केवल गोस्वामी और अनवर जमाल ने किया।
डेढ़ सेर चांदी के –
अनुपस्थित निर्णायकों में के वक्तव्य संयोजक ने पढ़े। वरिष्ठ रंगकर्मी अंकुर ने कहा:” ‘डेढ़ सेर चांदी’ अपनी संरचना में भी अत्यंत सहज, सरल, अनायास और अनगढ़ होने का आभास देती है। लगता नहीं कि मुख्य पात्र नयिका, उसके परिवार या गांव के दूसरे उच्च या मधयवर्गीय परिवारों के चित्रण में किसी अतिरिक्त आलंकारिकता का प्रयोग किया गया हो।”
जिंदगी जीने की खुशी भी हो-
फिल्मकार अनवर जमाल ने कहा : “जिंदगी जीने की खुशी भी हो, राजनीतिक और सामाजिक सरोकार भी हों, निर्भय होकर निर्णय लेने की क्षमता भी पात्रों में हो…और ये सब महीन परतों के साथ इतना सघन बना गया हॉकी पाठक कहानी पढ़ते हुए किसी दुविधा में नहीं फंसता- तब इसे ‘श्मशान वैराग्य’ कह सकते हैं।”
पहले भी सम्मानित हुए हैं –
इससे पूर्व यह पुरस्कार 20 रचनाकारों को उनकी उत्कृष्ट कहानियों के लिये प्रदान किया जा चुका है। ये हैं- नीलिमा सिंह, कृपाशंकर, अजय प्रकाश, मुकेश वर्मा, नीलाक्षी सिंह, सूरजपाल चौहान, पूरन हार्डी, अरविंद कुमार सिंह, नवीन नैथानी, योगेंद्र आहूजा, उमाशंकर चौधरी, मुरारी शर्मा, दीपक श्रीवास्तव, आकांक्षा पारे काशिव, ओमा शर्मा, किरन सिंह, इंदिरा दांगी, विवेक मिश्र, दिव्या शुक्ला और राकेश तिवारी। इन पांच पुरस्कारों को मिलाकर अब तक 25 वर्ष के पुरस्कार सम्पन्न हो गए।
संदेश पढ़े गए सुभाष के-
प्रारम्भ में विश्वनाथ त्रिपाठी, केवल गोस्वामी और सुभाष सेतिया के सन्देश पढ़े गए और फिर आकृति प्रकाशन से प्रकाशित रमाकान्त स्मृति कहानी पुरस्कार से सम्मानित कहानियों के संग्रहों ‘कथाशब्द में समय’ और ‘नए रंग’ का लोकार्पण मान्य लेखकों ने किया।
कहानियों को नया मोड़ लेना होगा-
निर्देश निधि ने कहा,” रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार जैसे निष्पक्ष और प्रतिष्ठित पुरस्कार लेखक के जीवन में कभी खाली हाथ नहीं आते। वे प्रसन्नता तो लाते ही हैं। साथ ही वे गंभीर लेखन का दायित्व भी लेकर आते हैं। जिस तरह हमारा समाज तकनीकी रूप से संपन्न होता जा रहा है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने हमारे जीवन में सेंघ लगा दी है। इतने बड़े परिवर्तन के युग में कहानी वहीं के वहीं खड़ी नहीं रह सकती।आने वाले कल उसे भी नया मोड़ लेना होगा।”
निम्न वर्ग के है पात्र मेरी कहानी के-
अंजू शर्मा ने कहा: “मुझे निजी रूप से बहुत खुशी हुई कि रमाकांत स्मृति कंहानी पुरस्कार अब फिर से यथावत रूप से शुरू हो गया है। मैं आभारी हूँ कि मेरी कहानी को इस प्रतिष्ठित सम्मान से जुड़ने का अवसर मिला। मेरी कहानियों के पात्र निम्नमध्यम वर्ग से आते हैं जो सुमन चौधरी की तरह छोटे छोटे सुखों, छोटे छोटे सपनों में अपनी खुशी तलाशते हैं।”
कहानी के लिए शोध नहीं करती-
आशा पांडेय का कहना था: “मैं अपनी रचना प्रक्रिया पर कुछ कहना चाहूं तो यही कि मैं किसी विमर्श को प्रयत्नपूर्वक अपनी कहानी का विषय नहीं बनातीं हूं, और न ही किसी प्रकार का शोध करती हूं, बल्कि अपने अनुभव को अनुभूति में बदलने का इंतजार करती हूं, जब लगता है कि मैं कथ्य या अनुभव को कुछ रचनात्मक ढंग से लिख पाऊंगी तब कलम उठाती हूं।”
मेरी विवशता है लिखना-
अखिलेश श्रीवास्तव चमन ने कहा : “लिखना मेरी विवशता है, मेरा नशा है। मेरी कहानियों की विषयवस्तु कल्पना की उड़ान नहीं बल्कि अपने आसपास की घटनाएं और विसंगतियां होती हैं। मेरी मान्यता है कि कहानी यथार्थ के जितने ही अधिक निकट होगी उतनी ही अधिक विश्वसनीय और पठनीय होगी। मेरी कहानियां कुम्हार के आंवा में पकने वाले बरतन की तरफ मेरे अंतस में लम्बे समय तक पकती रहती हैं और कई बार मांजने के बाद तैयार हो पाती हैं।”
इस अवसर पर करीब 80 रचनाकार साहित्य प्रेमी सम्मिलित थे।