
Which card will bjp play brahman,obc,dalit
लखनऊ (ब्यूरो)। इस बार बीजेपी ने यूपी में बीस ब्राम्हण जिला अध्यक्ष बनाए हैं। इससे ब्राम्हण राजनीति को यह उम्मीद जगी है कि प्रदेश अध्यक्ष भी ब्राम्हण ही होगा। भाजपा के संगठनात्मक दृष्टि से 70 नए जिला अध्यक्षों की घोंषणा की है। इसी के साथ प्रदेश अध्यक्ष की राजनीति की सक्रियता बढ़ गयी है। इसके लिए दिल्ली तक दौड़ भी शुरू हो गयी है। हालांकि बीजेपी उसी को प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी जो सन् 2027 के चुनाव में पार्टी से बंफर सीट दिला सके।
नेता की पसंद का होगा अध्यक्ष
देखा जाए तो बीजेपी ने इस बार जिलाध्यक्षों बनाने में सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति को तरजीह दिया है।हर वर्ग के लोगों को उपकृत किया है। ब्राम्हण और ठाकुर को जोड़ दिया जाए तो तीस सवर्ण वर्ग के जिलाध्यक्ष हो गए। जो कि ओबीसी की संख्या से अधिक होते हैं। लेकिन बीजेपी हमेशा सियासी इतिहास के पन्ने को पलट कर ही प्रदेश अध्यक्ष का चयन करती है। ऐसे में ओबीसी का प्रदेश अध्यक्ष होने की संभावना अधिक है,ऐसा राजनीति के जानकारों का मानना है। लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि इस बार बीजेपी ब्राम्हणों वोटरों को ध्यान में रख कर ब्राम्हण से किसी को प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी। राजनाथ सिंह की चली तो ठाकुर प्रदेश अध्यक्ष हो सकता है। यदि अमितशाह और मोदी अपनी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष दिये तो वो दलित या फिर आदिवासी भी हो सकता है।
इसी रणनीति में मंथन
70 जिलों में जिलाध्यक्ष की इस सूची में 39 जिलाध्यक्ष सामान्य वर्ग से हैं, जिनमें 20 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 4 वैश्य, 3 कायस्थ और 2 भूमिहार शामिल हैं। 25 ओबीसी और 6 अनुसूचित जाति से आते हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है की पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी इसी रणनीति में मंथन कर सकती है।
सियासी सूत्र नहीं बदलेंगे
इतिहास के बहरे पन्ने बताते है कि बीजेपी चुनाव को ध्यान में रखकर ही बीजेपी अध्यक्ष का चयन की है। राज्य में अभी चुनाव नहीं है। इसलिए वो पुराने सियासी गणित के सूत्र का बदल सकती है। लेकिन यह भी तर्क दिया जा रहा है कि रिस्क की राजनीति मोदी और अमितशाह नहीं करते। यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी OBC चेहरे पर दांव लगा सकती है। इसके लिए सही नाम पर मंथन किया जा रहा है। हालांकि पार्टी के कुछ नेताओं का यह भी मत है कि ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के लिए ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया जाए। संभावना यह है कि इस महीने के आखिर तक नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कर दी जाए।
ठाकुर-ब्राह्मण गठजोड़
इस बार बीजेपी ने 20 जिलों में ब्राह्मण जिलाध्यक्ष बनाए हैं, जो अन्य किसी भी जाति से ज्यादा हैं। यह संकेत देता है कि भाजपा ब्राह्मण समुदाय को साधने के लिए प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी ब्राह्मण चेहरे को बैठा सकती है। यदि ऐसा हुआ तो महेंद्रनाथ पांडेय, दिनेश शर्मा जैसे नाम प्रमुखता से चर्चा में आ सकते हैं। संभावित जातीय समीकरण की बात की जाए तो अगले चुनाव में ठाकुर-ब्राह्मण गठजोड़ और ओबीसी वोट बैंक महत्वपूर्ण होता है। पार्टी ने राजस्थान में भी ऐसा ही प्रयोग किया था। वहां ठाकुर-ब्राह्मण गठजोड़ (सीएम और डिप्टी सीएम) के बाद प्रदेश अध्यक्ष के लिए ओबीसी को प्राथमिकता दी थी।
ठाकुर और ओबीसी समीकरण
इस सूची में बीजेपी ने 10 जिलों में ठाकुर नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया है। योगी आदित्यनाथ खुद ठाकुर जाति से आते हैं, जिससे यह समुदाय भाजपा के कोर वोटर्स में गिना जाता है। ठाकुर नेता के रूप में भाजपा के पास स्वतंत्र देव सिंह और अन्य कई विकल्प हो सकते हैं।ओबीसी से 25 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति यह दिखाती है कि भाजपा इस वर्ग को भी साधने के मूड में है। केशव प्रसाद मौर्य और भूपेंद्र चौधरी जैसे नेताओं की मौजूदगी यह दर्शाती है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए किसी ओबीसी चेहरे को भी प्राथमिकता दे सकती है।
अध्यक्ष की भूमिक और जातीय समीकरण
उत्तर प्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश का सबसे बड़ा राज्य है और लोकसभा की 80 सीटें यहीं से आती हैं। 2027 के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में यह पद अहम भूमिका निभाएगा। ऐसे में उम्मीदवारों की चयन और टिकट वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है
मिशन 2027 के हिसाब से होगा चेहरा
बीजेपी जिसे भी प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी, उसी की अगुआई में पार्टी 2027 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के लिए चुनाव अधिकारी बना दिया है। जल्द गोयल चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करेंगे। दरअसल, भाजपा के संविधान में यह व्यवस्था है कि 50% से ज्यादा जिलाध्यक्षों की घोषणा होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। पार्टी 71 फीसदी से ज्यादा जिलाध्यक्ष घोषित कर चुकी है। नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए पुराने इतिहास को भी खंगाला जा रहा है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव OBC प्रदेश अध्यक्षों की अगुआई में लड़े गए और दोनों में भाजपा ने बंपर जीत दर्ज की। 2017 में बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था और पार्टी ने 312 सीटें हासिल की थीं। 2022 में कुर्मी बिरादरी से आने वाले स्वतंत्र देव सिंह की अगुआई में चुनाव लड़ा गया और 255 सीटें जीतकर बीजेपी ने लगातार दूसरी बार प्रदेश में सरकार बनाई। इस हिसाब से माना जा रहा है कि बीजेपी इस बार भी OBC चेहरे पर दांव लगाएगी।
योगी से तालमेल पर भी फोकस
2027 का विधानसभा चुनाव भी बीजेपी मौजूदा सीएम योगी की अगुआई में ही लड़ेगी। इसलिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बार भी ऐसे चेहरे पर ही दांव लगाएगा, जिसका योगी से अच्छा तालमेल हो। पिछड़े चेहरे के रूप में केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा, जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह और सांसद बाबू राम निषाद के अलावा प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य का नाम भी रेस में है।
स्वतंत्र देव इस वक्त जलशक्ति मंत्री हैं और उनका सीएम से अच्छा तालमेल है। इसके अलावा लोध जाति से आने वाले पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह भी एक धड़े की पसंद हैं। उनका भी सीएम योगी से अच्छा तालमेल है। उनकी पैरवी एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री भी कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि पार्टी का एक धड़ा स्वतंत्र को फिर कमान देने के पक्ष में है। उनका कार्यकर्ताओं से तालमेल भी अच्छा है। हालांकि प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य और केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा केंद्रीय नेतृत्व की पसंद हैं।
ब्राह्मण और दलित भी रेस में
प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अगर बीजेपी OBC चेहरे पर फोकस नहीं करती है तो उसका दांव ब्राह्मण और दलित चेहरे पर भी हो सकता है। ब्राह्मण चेहरों में पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी के अलावा पूर्व डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा और प्रदेश उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक भी रेस में हैं। डॉ. दिनेश शर्मा इस रेस में सबसे आगे हैं। वह केंद्रीय नेतृत्व के साथ सीएम योगी की भी पसंद हैं।यूपी में बीजेपी अध्यक्ष को लेकर एक नई राजनीति आकार लेने लगी है। नया प्रदेश बनने के बाद यह तय हो जाएगा कि योगी की राजनीति करवट बदलेगी या फिर नदी की तरह सीधी बहेगी।