
Wher will dalit votar go to bihar
पटना (ब्यूरो)। बिहार में दलित वोटर की नजरे इनायत किस पर होगी,अभी से इस पर चर्चा जोरों से हो रही है। दलित वोटर बिहार में करीब 19.65 फीसदी से ज्यादा है। कुल 38 सीट है। जाहिर सी बात है कि ये वोटर किसी भी पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए काफी है।नीतीश वैसे इस वोट बैंक को छिटकने नहीं देना चाहते। इसलिए इनके लिए हर संभव योजनाओं को पिटारा लेकर आ रहे हैं। छह माह बाद चुनाव होना है। लेकिन देखा जाए तो जदयू 2015 में 38 सीट में 11 सीटें जीती थी। 2020 में केवल आठ सीट मिली। 2024 के लोकसभा चुनाव में जदयू को केवल एक सीट मिली।जाहिर सी बात है कि दलित वोटर का मोह अब जदयू के प्रति नहीं रहा पहले की तरह। तेजस्वी यादव इसी का लाभ इस बार उठाने के फिराक में है। सी वोटर की रिपोर्ट से तेजस्वी यादव पूरे जोश में है। वहीं नीतीश ने दलितों को अपने कब्जें रखने के लिए 32 सबसे अति पिछड़े अनुसूचित जन जाति को महादलित का दर्जा दिया है। भीम संसद से भीम कूंभ तक के सफर में नीतीश अबकी बार घाटे में रहेंगे, ऐसा सियासी आकलन निकल कर आया है।
दलित समुदाय को रिझाने के प्रयास
बिहार विधानसभा चुनाव में अभी तकरीबन छह महीने का समय बाकी है लेकिन राज्य में सभी दलों ने जातीय समीकरणों को साधने के लिए अपनी-अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। राज्य की सत्ता में काबिज नीतीश कुमार की पार्टी दलित समुदाय के वोटर्स को रिझाने के लिए भरसक प्रयास कर रही है।
जागरूकता फैलाने का आग्रह
दलित वोटर्स से कनेक्ट करने के प्रयास में जदयू ने पिछले साल नवंबर – दिसंबर में ‘भीम संसद’ की शुरुआत की थी। नीतीश कुमार ने 13 अप्रैल को पटना में ‘भीम संवाद’ को संबोधित करते हुए पार्टी नेताओं से अनुसूचित जातियों के बीच सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाने का आग्रह किया।इसके एक दिन बाद अंबेडकर जयंती पर नीतीश कुमार ने ‘अंबेडकर समग्र योजना’ का ऐलान किया। इस योजना के जरिए सरकार अगले 100 दिनों में 40 लाख दलित परिवारों तक पहुंचने का प्रयास करेगी। बिहार सरकार का प्रयास है कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दलित समुदाय को लगभग एक दर्जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले।
भीम संसद राज्य के 38 जिलों में
जेडीयू के दलित नेता और इस समुदाय से उसके एकमात्र MLC अशोक चौधरी ने कहा कि नीतीश इस बात पर जोर देते रहे हैं कि दलित – केंद्रित योजनाओं का लाभ अनुसूचित जाति समुदायों तक पहुंचना चाहिए। अशोक चौधरी ने कहा, “हमारी सरकार ने हमेशा दलितों के साथ-साथ गरीबों तक भी पहुंच बनाई है। भीम संसद राज्य के 38 जिलों में से 19 जिलों तक पहुंची, वहीं भीम संवाद ने हाशिए पर पड़े लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया।”
चुनावों के आसपास भीम महाकुंभ का आयोजन
अशोक चौधरी के अनुसार, जेडी(यू) चुनावों के करीब एक ‘भीम महाकुंभ’ आयोजित करने की भी योजना बना रही है ताकि दलित समुदायों को पता चल सके कि नीतीश सरकार ने उनके लिए क्या किया है। उन्होंने कहा कि हम उन्हें और अधिक कार्य करने का आश्वासन भी देंगे। आपको बता दें की नीतीश सरकार में अशोक चौधरी के अलावा जेडी(यू) के अन्य प्रमुख दलित नेताओं में पूर्व विधायक अरुण मांझी और राज्य मंत्री सुनील कुमार और रत्नेश सदा शामिल हैं।
दलितों के लिए क्या कर है नीतीश सरकार
बिहार में दलितों के लिए कुछ प्रमुख सरकारी योजनाओं में BPSC प्रारंभिक परीक्षा और UPSC प्रारंभिक परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों के लिए क्रमशः 50,000 रुपये और 1 लाख रुपये की वित्तीय सहायता शामिल है। इसके अलावा बिहार सरकार और अनुसूचित जाति समुदायों के बीच संपर्क स्थापित करने के लिए 9,000 विकास मित्रों की नियुक्ति, व्यवसाय शुरू करने के लिए 10 लाख रुपये (50% अनुदान सहित) और 91 अंबेडकर आवासीय विद्यालयों में पढ़ने वाले हर दलित छात्र को छात्रवृत्ति दी जा रही है।
बिहार में दलित वोटर क्यों अहम?
बिहार में दलित समुदाय की जनसंख्या करीब 19.65% फीसदी है। इस समुदाय को साधने के लिए पीके की पार्टी भी कोशिश कर रही है।अभी तक माना जाता है कि चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी रामविलास, पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी भी दलित समुदाय में प्रभाव है वो इस बार भी अपना दम दिखाने का प्रयास करेंगे।जेडी(यू) द्वारा नए सिरे से दलितों को आगे बढ़ाने को उसके सियासी किस्मत में गिरावट को रोकने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को खासा नुकसान हुआ था। इस चुनाव में जदयू को सिर्फ 43 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि इससे पहले 2015 में उसे 71 सीटें मिली थीं।
जदयू का शेयर गिरा है
बात अगर SC रिजर्व सीटों की करें तो जदयू का शेयर गिरा है। जदयू ने 2015 में 38 में से 11 सीटें जीती थीं, वह 2020 में इनमें से केवल आठ सीटें जीत सकी। 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने पांच एससी रिजर्व सीटें जीतीं, जिनमें से जेडी(यू) और HAM(S) ने एक-एक सीटें जीतीं, जबकि LJP (RV) ने तीन सीटें जीतीं। इसके अलावा एक सीट पर कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की।
बिहार की दलित राजनीति
बिहार की दलित राजनीति में नीतीश इसलिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने 2005-2010 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान राज्य के 32 “सबसे पिछड़े” अनुसूचित जाति समुदायों को एक साथ रखा था और उन्हें महादलित करार दिया था। पिछले कुछ सालों में नीतीश ने अपने सियासी क्षेत्र का विस्तार किया और वर्तमान में पासवानों को छोड़कर SC समुदायों के महत्वपूर्ण वर्गों के अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग ((EBCs) और कुर्मी-कोइरी (OBC) समूहों के एक बड़े हिस्से में उनका समर्थन आधार है।
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