
Tiger scandal,tribal society took out a rally,said send the guilty to jail
राष्ट्रमत न्यूज,बालाघाट(ब्यूरो)। बालाघाट के सोनेवानी अभयारण्य में बाघ की रहस्यमयी मौत और उसके शव को जलाए जाने का मामला अब आंदोलन का रूप ले चुका है। आदिवासी समाज का कहना है कि टाइगर कांड में गिरफ्तार किए गए छह आदिवासी श्रमिकों को साजिश के तहत गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेजा गया है। उनका इस मामले में कोई दोष नहीं। जबकि दोषी अधिकारियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।
रैली निकाल कर दी चेतावनी
आदिवासी समाज ने सोमवार को रैली निकालकर कलेक्टोरेट में ज्ञापन सौंपा। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर 10 दिन में दोषी वन अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन किया जाएगा। वन विभाग की कार्यप्रणाली ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। बाघ की मौत की जांच एक ओर एसआईटी कर रही है। ऐसे में छह आदिवासियों को एसआईटी की जांच से पहले जेल भेजे जाने से आदिवासी समाज नाराज है। वहीं वन रक्षक और रेंजर की घटना के दस दिनों बाद भी गिरफ्तारी नहीं होने से वन विभाग की कार्यप्रणाली संदेह के घेर में है।
बाघ की मौत का मामला ऐसा है
घटना के दस दिनों बाद भी वन रक्षक और रेंजर को अभी तक गिरफ्तार नहीं किये जाने से आदिवासी समाज में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। दरअसल, 27 जुलाई को सोनेवानी अभयारण्य के कक्ष नंबर 443 में एक बाघ का शव मिला था। आरोप है कि डिप्टी रेंजर टीकाराम हनोते और वनरक्षक हिमांशु घोरमारे के कहने पर छह आदिवासी सुरक्षा श्रमिकों ने 29 जुलाई को बाघ के शव को जला दिया था। 2 अगस्त को यह मामला तब सामने आया, जब मृत बाघ की फोटो वॉट्सएप ग्रुप पर वायरल हुई। इसके बाद वन विभाग ने वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम के तहत 8 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। विभाग ने 6 सुरक्षा श्रमिकों (हरिलाल, शिवकुमार, शैलेश, अनुज, मान सिंह और देव सिंह) को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन घटना के 10 दिन बाद भी डिप्टी रेंजर और वनरक्षक को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल
मृत बाघ की घटना सामने आने के बाद जहां एक ओर वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खडे हो रहे है तो वही दूसरी ओर जनप्रतिनिधिगण पूरे वन महकमे को ही बदल देने व दोषीयों पर सेवा बर्खास्ती कार्यवाही की मांग कर रहे है। क्योकि घटना दिनांक की अवधि में रेंजर छत्रपालसिंह जादौन, वन परिक्षेत्र अधिकारी की हैसियत से वन परिक्षेत्र लालबर्रा के प्रभार में होना पाया गया है तथा डीएफओ अधर गुप्ता रेंज के प्रभार में थे। इस प्रकार वन विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा आदिवासियों के लिए यह ना केवल संविधान में प्रदत्त अधिकारों का हनन है, अपितु अ०जा० /जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1959 के तहत गंभीर आपराधिक कृत्य भी किया गया है। लेकिन मामले में अभी तक ना तो डिप्टी रेंजर गिरफ्तार किया गये और ना ही बीटगार्ड। इसके अलावा एसडीओं के निलंबन हेतू भेजे गये प्रस्ताव पर भी कोई अधिकृत आदेश जारी नही हुआ है। वही डीएफओं से तीन दिनो भीतर मांगे गये जवाब पर उच्च अधिकारीयों की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया सामने नही है। बस आदिवासी समुदाय के उन चौकीदारो को गिरफ्तार कर कार्यवाही के नाम पर इतिश्री कर ली गई है। ऐसे में अब आदिवासी समाज आक्रोशित हो उठा है।
तो आदिवासी समाज आंदोलन करेगा
आदिवासी समाज का आरोप है कि परिक्षेत्र प्रभारी छत्रपाल सिंह जादौन ने जानबूझकर आदिवासी श्रमिकों को फंसाया है, जबकि उन्होंने सिर्फ अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का पालन किया था, अगर वे ऐसा नहीं करते तो उनकी रोजी-रोटी छिन जाती। जिला पंचायत सदस्य दुलेंद्र ठाकरे ने कहा कि छोटे कर्मचारियों ने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर ही शव को जलाया था। उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच और श्रमिकों को न्याय दिलाने की मांग की।वहीं आदिवासी नेत्री और जिला पंचायत सदस्य अनुपमा नेताम ने प्रशासन से अपील करते हुए कहा कि अगर 10 दिन में डीएफओ और फरार वन कर्मियों पर कार्रवाई नहीं होती है तो आदिवासी समाज आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा।