
Thirst in ghaghriya village
बालाघाट। चांगोटाला क्षेत्र के घांघरिया ग्राम की जिन्दगी पानी बिन अभी से जलने लगी है। जबकि अभी गरमी दूर है। फिर भी जलसंकट रेत माफिया की वजह से गांवों में अपने निशान बनाने लगा है। सरकार दावा करती है कि 2027 तक प्रदेश के हर गांव को मीठा पानी देंगे। नल जल योजना अभी से हांफने लगे हैं हैण्ड पंप की तरह। जैसे जैसे गरमी बढ़ेगी बालाघाट के कई गांव में पानी का हाहाकर मचेगा। तस्वीर से प्रशासन को समझना चाहिए कि जल संकट होता क्या है? और उन्होंने जल संकट से निपटने के लिए अभी तक क्या किये हैं।
नदी में गड्ढा करके पानी निकालते हैं
धूप तेज होने लगी है। ग्राम घांघरिया में तेज धूप में एक 10 साल बालक नदी में किए गए गड्ढे से पानी निकालता दिखा। क्योकि गांव में पानी के हालात ही कुछ ऐसे हैं। बस्ती से लगकर मनकुंवर नदी बहती है, लेकिन भारी मात्रा में रेत की निकासी होने से इस नदी का जलस्तर घट गया है। चर्चा में ग्रामीणों ने भी बताया कि यहां लोगों को नल जल योजना का लाभ ठीक से नहीं मिल पा रहा है। एक दिन नल आता है तो चार दिन नही आता। ऐसे में पानी को बचा के रखना पड़ता है। अथवा नदी की रेत केा हटाकर उसमें गड्ढा करके पानी निकालते हैं। यानी झिरिया बनाकर पानी निकालते हैं।
नल जल योजना काफी नहीं
यहां फरवरी माह में ही गांवों की महिलाओं और छोटे उम्र के बच्चों को तपती धूप में भी नदी में गड्डा करके पानी लाना पड़ता है। ऐसा इसलिए कि इस गांव में नल जल योजना नाकाफी साबित हो रही है। जिस कारण ग्रामीणों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण महिला पार्वतीबाई ने बताया कि वे सालों गांव में रह रही है। लेकिन पहले पानी की किल्लत नहीं थी। परंतु अब वो दिन नहीं रहे। मनकुंवर नदी पहली हर समय बहती नजर आती थी, लेकिन अब नदी भी सूख गई है। बाहरी कामकाज के लिये नदी का पानी उपयोग में लाया करते थे, लेकिन अब नदी में भी पानी नहीं है। हमे सबसे ज्यादा पीने के पानी की समस्या है। यहां ऐसे में हैंडपंपों पर निर्भरता बढ़ गई है। जल संकट के लिए माफिया और प्रशासन दोनों जिम्मेदार है। दोनों अपने दायित्व को समझते तो जल संकट की स्थिति किसी भी गांव में देखने को न मिलती।