
There is foil roof,bush wal ,such school is in sai government
राष्ट्रमत न्यूज,रायपुर(ब्यूरो)। विष्णुदेव सरकार दावा कर रही है कि अब प्रदेश के सभी स्कूलों में शिक्षको की व्यवस्था हो गयी है। अब बच्चों के अविभावकों की शिकायत नहीं रहेगी कि स्कूल में शिक्षक नहीं है। सुकमा में कभी बंदूक की आवाज आती थी अब वहां किताबों के पाठ गूंजते है।लेकिन सरकार यह भूल गयी कि बस्तर में अभी भी कई ऐसे स्कूल हैं जिनके पास भवन नहीं है। झोपड़ी में स्कूल लगती है। पन्नी की छत हैं। ऐसे में बच्चों को कैसे कहोगे, चले स्कूल हम। डिजिटल इंडिया में भवन विहीन स्कूल में बच्चे पढें तो पढ़ें कैसे,यह छतीसगढ़ के स्कूल मंत्री और मुख्यमंत्री केा बताना चाहिए।
15 साल से झोपड़ी में लग रही शाला
बीजेपी के डिजिटल इंडिया में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कामराजपाड गांव में बच्चे आज भी झाड़ियों से बनी दीवारों और पन्नी की छत के नीचे शिक्षा हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कहानी है उस गांव की जहां पिछले 15 सालों से एक झोपड़ी में स्कूल चल रहा है।न कोई पक्की बिल्डिंग, न बेंच, शौचालय, बारिश हो या धूप, बच्चे रोज इसी अस्थायी ढांचे में पहुंचते है।कुछ ताट पट्टी बैठकर, कुछ गीली जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं।
तेज बारिश और छुट्टी
सुकमा जिले के कोंटा ब्लाक से महज 12 किमी दूर कामराजपाड़ गांव में पिछले 15 सालों से झोपड़ी में पाठशाला चल रही है। इस गांव के लोगों के जज्बे को सलाम जो झोपड़ी के स्कूल में अपने बच्चों को इस उम्मीद से पढ़ने के लिए भेजते हैं कि उनके बच्चे निरक्षर नहीं रहेंगे। झोपड़ी में मजबूरी मेें गरीब आदमी रहता है। कामराजपाड़ गरीब गांव है,इसीलिए इस गांव के बच्चे झोपड़ी में पढ़ रहे हैं। इस गांव के लोग इतने पैेसे वाले नहीं हैं कि अपने बच्चों के लिए ईट की दीवार वाला स्कूल बना कर दे सकें। सरकार तो बनाने से रही। इस गांव के लोगों के लिए यही पाठशाला है। बच्चे शिक्षा की लौ जलाए हुए हैं। शिक्षा विभाग की लापरवाही समझें या उदासीनता, सालों से झोपड़ी में चल रहे स्कूल की कभी सुध नहीं ली।जून से सितंबर तक जैसे ही बारिश शुरू होती है, पन्नी की छत टपकने लगती है, दीवारों से पानी भीतर घुसता है। तेज बारिश होने पर बच्चे अक्सर पढ़ाई छोड़कर घर लौटने को मजबूर हो जाते हैं।
सलवा जुडूम के जमाने का स्कूल
ग्रामीण मोहन मरकाम ने बताया कि नक्सलियों के खिलाफ शुरू किए गए जन आंदोलन सलवा जुडूम के दौरान से ही यहां स्कूल झोपड़ी में संचालित है। सालों से पक्के भवन की मांग गांव के लोग करते आ रहे है।वर्षों बाद पिछले साल स्कूल भवन की स्वीकृति मिली है लेकिन अब तक पूरा नहीं हो सका है।बारिश में बच्चों को भीगने का डर और गर्मी में घुटन होता है। मजबूरी में बच्चों को झोपड़ी में पढ़ाना पड़ रहा है। गांव तक पक्की सड़क नहीं होने से भी अधिकारी यहां निरीक्षण नहीं पहुंचते हैं। सलमा जुडूम खत्म हुए कई बरस हो गए। रमन सरकार के बाद भूपेश की सरकार बनी और अब विष्णु देव साय की सरकार है। फिर भी इस गांव को अच्छा स्कूल मिलेगा इसकी उम्मीद गांव के लोग अब भी नहीं कर रहे हैं।