
Ther is no harm in the revision of voter list in bihar
राष्ट्रमत न्यूज,नई दिल्ली(ब्यूरो)।सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।उसने देा टुक कहा कि वोटर लिस्ट के रिवीजन में कोई बुराई नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि उसने बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन के काम में इतनी देर में क्यों शुरू किया?हालांकि अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया में कोई बुराई नहीं है।चुनाव अयोग ने कहा कि तीस दिन में यह काम हो जाएगा।
अगली सुनवाई 28 जुलाई को
बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को लंबी सुनवाई हुई। इसमें चुनाव आयोग और चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वालों की ओर से तमाम दलीलें रखी गई। इस मामले को लेकर पूरे बिहार का चुनावी माहौल बेहद गर्म है।सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के रिवीजन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड को भी पहचान पत्र मानें। अब अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
चुनाव आयोग का कदम मनमानी भरा
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन पर अदालत में करीब 3 घंटे सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि वोटर लिस्ट रिवीजन नियमों को दरकिनार कर किया जा रहा है। वोटर की नागरिकता जांची जा रही है। ये कानून के खिलाफ है।सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने मामले में सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में कहा कि चुनाव आयोग का यह कदम मनमानी भरा है और इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का सिद्धांत कमजोर होता है। दलील सुनने के बाद जस्टिस सुधांशु धूलिया ने टिप्पणी की कि गैर नागरिकों को मतदाता सूची से हटाना गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है ना कि चुनाव आयोग का।
तो फिर ये बड़ी कसौटी होगी
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन में नागरिकता के मुद्दे में क्यों पड़ रहे हैं? अगर आप वोटर लिस्ट में किसी शख्स का नाम सिर्फ देश की नागरिकता साबित होने के आधार पर शामिल करेंगे तो फिर ये बड़ी कसौटी होगी। यह गृह मंत्रालय का काम है। आप उसमें मत जाइए।चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि किसी भी वोटर को वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जाएगा। मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
चुनाव बिल्कुल नजदीक हैं…
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकर नारायण ने तर्क दिया कि कानूनी मुद्दा यह है कि वोटर लिस्ट का रिवीजन मतदाताओं पर अपनी नागरिकता साबित करने का दबाव डालता है जबकि यह काम चुनाव आयोग का है। उन्होंने कहा कि अब जब चुनाव बिल्कुल नजदीक हैं और चुनाव आयोग का रहा है कि वह 30 दिनों में पूरी मतदाता सूची का रिवीजन करेगा।
IR प्रक्रिया में कोई बुराई नहीं है
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा IR प्रक्रिया में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह आगामी चुनाव से कई महीने पहले ही कर ली जानी चाहिए थी। भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच करना आवश्यक है, जो संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत आता है। चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह संविधान के तहत अनिवार्य है और इस तरह की पिछली प्रक्रिया 2003 में की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन मुद्द पे जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब देने के लिए कहा। पहला- क्या उसके पास वोटर लिस्ट को रिवाइज करने की ताकत है? दूसरा- ऐसा करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई है और तीसरा सवाल समय को लेकर है।इसके जवाब में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि समय बीतने के साथ ही मतदाताओं के नाम शामिल करने या हटाने के लिए वोटर लिस्ट को रिवाइज करना जरूरी होता है। चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि अगर आयोग के पास वोटर लिस्ट के रिवीजन की ताकत नहीं है तो फिर कौन इस काम को करेगा?
वोटर लिस्ट से बाहर नहीं होंगे
कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन को विधानसभा चुनाव से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है और इसे चुनाव से हटकर क्यों नहीं किया जा सकता? इस पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि सुनवाई का मौका दिए बिना किसी को भी वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जाएगा।