
The struggle of democarcy fighters is the source of inspiration for all of us
राष्ट्रमत न्यूज,रायपुर। लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक पद्धति है। आज हम लोकतंत्र की फिजा में जिस आज़ादी का अनुभव कर रहे हैं, उसकी कीमत आपातकाल के दौरान कुछ लोगों ने यातना, अपमान और जेलों में समय काटकर चुकाई थी। इन लोकतंत्र सेनानियों की पीड़ा और संघर्ष को हर पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा कर्तव्य है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने आज अपने निवास कार्यालय में आयोजित आपातकाल स्मृति दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही।

लोकतंत्र को सशक्त बनाने
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने लोकतंत्र विरोधी ताकतों से सावधान रहने और लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले लोकतंत्र सेनानियों को बेड़ियों में जकड़कर शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। यह सब स्वतंत्र भारत में हुआ, लेकिन उस अमानवीयता ने अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता की याद दिला दी। आपातकाल के दौरान असहनीय कष्ट सहने वाले लोकतंत्र सेनानी आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। मुख्यमंत्री श्री साय ने इस अवसर पर लोकतंत्र सेनानियों को सम्मानित किया। कार्यक्रम में उन्होंने सच्चिदानंद उपासने द्वारा लिखित पुस्तक ‘वो 21 महीने: आपातकाल’ का भी विमोचन किया।
इतिहास का सबसे काला दिन
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि 25 जून 1975 को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है। आपातकाल में हजारों लोगों को बिना अपराध के जेलों में ठूंस दिया गया, मौलिक अधिकार छीन लिए गए और लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि उन्होंने इस त्रासदी को बहुत करीब से देखा है। उनके स्वर्गीय बड़े पिताजी श्री नरहरि प्रसाद साय भी उस दौर में 19 महीने तक जेल में बंद रहे थे। उनके द्वारा सुनाए गए किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार लोकतंत्र सेनानियों को बेड़ियों में जकड़कर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। यह सब स्वतंत्र भारत में हुआ, लेकिन उस अमानवीयता ने अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता की पुनः याद दिला दी।

बकाया राशि का भी भुगतान
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान राशि देने की शुरुआत की थी, जिसे पूर्ववर्ती सरकार ने बंद कर दिया। हमारी सरकार ने न केवल यह सम्मान राशि पुनः प्रारंभ की, बल्कि पूर्व सरकार द्वारा रोकी गई पिछले पाँच वर्षों की बकाया राशि का भी भुगतान किया। विधानसभा में एक अधिनियम पारित कर यह सुनिश्चित किया गया है कि भविष्य में कोई भी सरकार इस सम्मान योजना को समाप्त न कर सके।
यह हम सबका सौभाग्य है
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने अपने उद्बोधन में आपातकाल की भयावहता और लोकतंत्र सेनानियों के बलिदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आपातकाल के 21 महीनों की प्रताड़ना और लोकतंत्र पर हुए आघात को देश के हर नागरिक तक पहुँचाना आज की पीढ़ी की ज़िम्मेदारी है। डॉ. सिंह ने कहा कि यह हम सबका सौभाग्य है कि आज मीसाबंदी आंदोलन के सहभागी और उनके परिजन हमारे बीच हैं। उन्होंने आपातकाल को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि उस समय पूरे देश को एक विशाल जेल में बदल दिया गया था। लोकतंत्र के स्तंभ—न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया—को निष्क्रिय कर दिया गया था। प्रेस पर सेंसरशिप थोप दी गई थी और सच्चाई बोलने वालों को जेलों में डाल दिया गया था।