
The scope of the red corridor in balaghat ie reduced- sp
बालाघाट। जिले के पुलिस कप्तान नगेन्द्र सिंह ने कहा कि नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों की कुशल कार्यशैली के चलते अब जिले के लिए एक बड़ी राहत भरी खबर सामने आई है। जिस लाल आतंक ने पिछले साढ़े तीन दशकों से जिले को अपनी चपेट में लिया था, वह अब धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर है। बालाघाट के साथ-साथ सीमावर्ती जिलों में भी नक्सल गतिविधियों में भारी कमी देखी जा रही है। खासकर बालाघाट और मंडला जिले की सीमा से लगे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में नक्सलियों की पकड़ कमजोर हुई है।
नक्सली मजबूर हो गए
वर्तमान में हालात कुछ यूं है कि नक्सल विरोधी अभियानों के चलते अब नक्सली जंगलों में छिपकर ही रहने को मजबूर हैं। मध्यप्रदेश सरकार और सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई के कारण बालाघाटए जो कभी नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, वहां भी उनका प्रभाव तेजी से कम हो रहा है और विकास कार्यो को गति मिल रही है। लाल आंतक की दहशत में अक्सर देखा जाता था कि निर्माण कार्यो में नक्सली बाधा डाला करते थे। इसके अलावा पुलिस मुखबीरी के शक में ना जाने कितने ग्रामीणो को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया। लेकिन अब इन घटनाओं से बालाघाट जिला उबर रहा है और बालाघाट के नक्सल प्रभावित गांव धीरे धीरे शांति के टापू में तब्दील हो रहे है।
दो दलम का सफाया हो गया
एस पी नगेन्द्र सिंह ने राष्ट्रमत से चर्चा के दौरान कहा कि नक्सलियों के खौफ से लोगो के मन में कभी दहशत था, वह भी अब नहीं रहा। इसलिए कि नक्सलियों को पूरी तरह खत्म करने के लिए सुरक्षा बल हर मोर्चे पर सतर्क हैं। वर्तमान में बालाघाट और मंडला की सीमा से लगे कान्हा क्षेत्र में तीन एरिया कमेटी में से अब सिर्फ भोरमदेव दलम सक्रिय है, लेकिन उनकी संख्या और गतिविधियां बहुत सीमित रह गई हैं। बोड़ला और खटिया.मोर्चा दलम का लगभग सफाया हो चुका है।
माओ की सिर्फ एक टीम बची
पुलिस कप्तान नगेंन्द्र सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि एमएमसी जोन में दो डिवीजन सक्रिय हैं कान्हा भोरमदेव डिवीजन और जीआरबी डिवीजन। पहले कान्हा भोरमदेव डिवीजन में तीन अलग-अलग दलम काम कर रहे थे। विस्तार प्लाटून, खटिया मोचा दलम और बोडला एरिया कमेटी। लेकिन अब पुलिस की निरंतर कार्रवाई के चलते सिर्फ एक संयुक्त टीम ही बची है। जो कभी खुद को खटिया मोचा दलम बताती है तो कभी भोरमदेव कमेटी। हाल ही में पुलिस ने कान्हा भोरमदेव डिवीजन की चार महिला नक्सलियों को मार गिराया था। इसके अलावा, कई नक्सली संगठन छोड़कर भाग रहे हैं। जिससे उनकी ताकत लगातार घट रही है। स्थानीय लोग भी मुख्यधारा में लौटने के इच्छुक हैं। जिससे नक्सलियों का प्रभाव और कमजोर हो रहा है।
दाड़ा दलम की संख्या घटी
जीआरबी डिवीजन में मलाजखंड दलम और दर्रेकसा दलम सक्रिय हैं। जबकि पहले सक्रिय दाड़ा दलम की संख्या घटकर सीमित हो गई है। नए पुलिस कैंपों की स्थापना के कारण भी नक्सलियों का दायरा सिकुड़ रहा है। अगर सुरक्षा बलों की यह सक्रियता बनी रही तो 2026 तक निश्चित ही मध्यप्रदेश पूरी तरह नक्सल मुक्त हो सकता है।