
The maternity was transported from cot to ambulance
बालाघाट। बुनियादी सुविधाओं से जूझते गांवो से एक बार फिर विकास के दावों की पोल खोलती तस्वीर सामने आई है। एक बार फिर ग्रामीण प्रसूता को अस्पताल पहुंचाने के लिये खाट पर लेटाकर एम्बुलेंस तक लेकर आते दिखाई दिये। यह तस्वीर बिरसा विकासखंड की धुनधुनवार्धा पंचायत के केरीकोना गांव की है। जहां रविवार को ग्रामीणों ने एक प्रसूता को खाट पर लेटाकर एम्बुलेंस तक पहुंचाया। क्योकि प्रसूता के घर तक सड़क नहीं होने से एम्बुलेंस नहीं जा सकी।
बुनियादी सुविधाएं क्यों नहीं मिली
शासन के विकास के दावे की यह एक आदिवासी गांव की तस्वीर है। ऐसी तस्वीर जिले के कई आदिवासी गांवों की है। खासकर नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल्य गांवों में सब जगह एक सी स्थिति है। अति नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आज भी लोग सड़क, बिजली, पानी सहित अन्य सुविधाओं के लिए तरस रहें है। यह तस्वीर भी उन्ही हालातों से जुड़ी है। जिसमें सड़क ना होने के कारण ग्रामीण एक प्रसूता को खाट के सहारे एम्बूलेंस तक पंहुचाते नजर आये है। आज तक बुनियादी सुविधायें यहां क्यों नहीं मिली।यह एक गंभीर सवाल है।
गांव के बाहर खड़ी रही एम्बुलेंस
महिला इमला पति भागचंद परते उम्र 24 वर्ष ग्राम माहुरदल्ली की रहने वाली है। वह अपने मायके ग्राम केराकोना गई हुई थी। जहां उसे प्रसव पीड़ा शुरू हुई। परिजनांे के द्वारा 108 एम्बुलेंस को बुलाया गया था। किन्तु सड़क के अभाव में 108 एम्बुलेंस प्रसूता के मायके के घर तक नहीं पहुंच सकी। ऐसी परिस्थिति में 108 के पायलट विशाल नागरे एवं ईएमटी मृत्युंजय पाठक ने परिजनों के साथ प्रसूता को खाट पर लेटा कर उसे एम्बुलेंस तक ले गए। जिसके बाद प्रसूता को प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र सोनगुड्डा लाया गया। परंतु यहां क्रिटीकल कंडीशन के कारण उसे तत्काल जिला चिकित्सालय भेज दिया गया था। यह सिर्फ एक गांव की व्यथा नहीं। पुल,पुलिया और सड़क की व्यवस्था नहीं होने से गा्रमीणों को बारिश में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
विकास फाइलों में दफ्न
बैहर विधानसभा का केरीकोना गांव सालो से कई तरह की मूलभूत सुविधाओं से तरस रहा है। पहले इस गांव तक पहुंचने के लिये पक्की सड़क नही थी और लोग पहाड़ी रास्ते से आना जाना करते थे। ऐसे हालातों के नजरियों से गांव तक पहुंचने के लिये सड़क मार्ग होना बेहद आवश्यक है। जिसको लेकर ग्रामीणो ने कई बार शासन प्रशासन से गुहार लगाई लेकिन समस्या का निराकरण आज तक नहंीं हुआ।गांव का मौसम गुलाबी नहीं हो सका। विकास फाइलों में उलझ कर रह गयी है।