
Rolling wave
प्रत्येक ख़बर में कहानी है। और हर कहानी में ख़बर है। ऐसा मानना है चार दशक से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार रमेश कुमार ‘रिपु’ का। दैनिक भास्कर,दैनिक जागरण,दबंग दुनिया सहित कई प्रमुख अख़बारों में प्रमुख पदों पर रहे। दिल्ली की कई पत्रिकाओं का मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ब्यूरो भी थे। अपनी अनूठी शैली की पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं। इनकी कहानी की रेंज शंख बांसुरी जैसी है। स्त्री-पुरुष के रिश्तों की बनावट में नई भाषा की महक है। कहानियां समृद्ध भाषा में लिखी गयी है। कहानी बताती है कि इश्क़ के माथे पर बेेवफ़ाई के पसीने को देखकर मुहब्बत अब कोयले की तरह जलती नहीं। क्यों कि शहरी भारत में पुरुष ही नहीं,महिलाओं का भी दिल मांगे मोर..। मचलती लहर.. रहस्य,थ्रिलर,रोमांच का काॅकटेल है। चाहत की कढ़ाई में कच्चे दूध सी मुहब्बत है। जो इश्क़ के चूल्हें में खौल रहा है। पढ़ते-पढ़ते आप का भी मन मचलती लहर की तरह मचलने लगेगा..
“तुम एक काम, क्यों नहीं करते..? मेरे हस्बेंड का मर्डर कर दो..! ताकि हम दोनों,सुकून से मुहब्बत की शैम्पेन पी सकें..।“
ब्रा का हुक लगाते हुए कविता बोली।
“अरे मेरी शैम्पेन..! मेरे और तुम्हारे बीच..सिर्फ एक सांस का फासला हुआ करता था..। अब वो भी नहीं रहा..। तुम्हारी देह के काग़ज़ पर अपने इश्क़ का अँगूठा कितनी दफ़ा लगाया..अब तो मुझे याद भी नहीं..। फिर भी कहती हो,तुम्हारे पति का मर्डर कर दूँ..? बताओगी भी,घायल करने वाली इन मस्त आँखों में खून क्यों सवार है..?
डॉक्टर कुमार के गले में अपनी बाहों का हार डालते हुए मुस्करा कर कविता ने कहा,‘‘ तुम्हें अपने प्यार का हिसाब याद है..और कभी सोचे हो..? मेरी नाभि के नीचे की दीवार में कितनी दरारें पड़ गयी है? उसका हिसाब करने बैठोगे,तो एक पूरी ज़िन्दगी भी कम पड़ जाएगी। दर्द मीठा है या असहनीय है..! क्या जानते हो..? आईने में चेहरा देखना पसंद करती हूँ मगर,जो मुझे पसंद नहीं है..उसकी परछाई के साथ चलना भी गवारा नहीं।“
“वाकई में..हसीन प्यार की तरह नायाब चीज़ हो जानेमन..! दिल से मुहब्बत निकाल दो,ज़िन्दगी कब्रिस्तान हो जाएगी। तुम अपने प्रोफेसर पति को छोड़कर,सदा के लिए मेरी हो जाओ। वो चलता फिरता कब्रिस्तान हो जाएगा।“ डॉक्टर कुमार अपनी आगोश में कविता को लेकर कहा।
“आखिर कर दी ना बचकानी बात। मुझे क्या शतरंज की गोटी समझते हो..?. घर छोड़कर तुम्हारे पास आने से प्रोफेसर को शै कहकर मात दे दोगे..! ऐसा सपने में भी मत सोचना। मात खा जाओगे। चोरी छिपे इश्क़ हो या फिर प्यार वाला हनीमून। दोनों में हमेशा डर बना रहता है। कहीं पकड़े न जाएं। दिल को सुकून भी नहीं मिलता। जिस्म की प्यास, भटकती लहर है। उसे किनारा मिल गया तो ठीक। नहीं तो..उम्र भर कहते रहो। और भी ग़म हैं ज़माने में, इक मुहब्बत के सिवा। तुम्हारे जिस्म की खुशबू, घर पहुंचते-पहुंचते मेरे जिस्म से गायब हो जाती है। एक तरीके से अच्छा ही है। सोचती हूँ,यदि किसी दिन प्रोफेसर साहब को पता चल गया, कि मेरी देह से जाफ़रानी खुशबू आ रही है,तो हमारी मुहब्बत की क्लास ले लेंगे..।“ डॉक्टर कुमार से अपने को अलग करते हुए कविता बोली।
“क्या बात है! जाफ़रानी खुशबू..! मर्द हैं..। खुशबू तो आएगी ही। जाफ़रानी खुशबू नाभी तक पहुंचने पर इश्क़ और जवाँ होता है। सुनकर अच्छा लगा। हमसे मिलने के बाद आपकी देह से जाफ़रानी की खुशबू आती है। हाऊ स्वीट..।“
“मैं मर्डर की बात कर रही हूँ । कभी तो सीरियस हुआ करें। जब देखो,रोमांस में रहते हो..।“ कविता नाराज़ होते हुए बोली।
“चाहती हो, कि आपके हस्बेंड का मर्डर कर दूँ..? अजीब कातिलाना ख़्वाहिश रखती हो। वैसे सोचने वाली बात है मैडम। क्या मैं आपको दाउद लगता हूँ.! या फिर वो डॉन। जिसके पीछे पूरी छत्तीसगढ़ की पुलिस लगी हुई है..? माई डियर..आई. एम. डॉक्टर एंड यू आर माई पेसेंट..। यू नो..! यू आर द डॉक्टर आफ माई हार्ट..! पेसेंट और डॉक्टर का यह प्यारा रिश्ता,बना रहना चाहिए। मारने-वारने की बातें मत किया करो। इस उम्र में केवल इश्क़ की बातें किया करो..। मैं आपके हस्बेंड को मार कर जेल चला जाऊॅ। इसके बाद तुम्हारे जिस्म की बिरयानी,कोई और खाए? ऐसी गुस्ताखी सपने में भी नहीं कर सकता।“
“तुम सिर्फ बिस्तर पर ही कमीने हो! रियल लाइफ में डरपोक से भी गए गुज़रे हो। कभी किसी मरीज़ को चीरे- फाड़े नहीं क्या..?’’ तंज अंदाज़ में कविता बोली।
“खिड़की के पर्दे को हटाते हुए डॉक्टर कुमार ने कहा,‘‘डेड बॉडी को चीरना और मरीज़ का ऑपरेशन करना,ये डॉक्टर का पेशा है। लेकिन इश्क़़ में किसी का मर्डर करने के लिए पर्दे का खलनायक बनने में वक़्त लगता है। थोड़ा वक़्त दो। फिर देखिए। ये डॉक्टर कैसे मृत्युदाता बनता है..।“ बड़े आत्मविश्वास से डॉक्टर कुमार ने कहा।
“तो फिर ऐसा करो। उन्हें अक्सर सिर दर्द होता है। पेन किलर के साथ, कोई ऐसी दवा दे दो, जो ज़हर का काम करे। मल्टी विटामिन की आड़ में वो खाते रहें। और धीरे-धीरे ज़हर काम करता रहे। नीरो सर्जन हो। मानसिक बीमारी में ऐसी कोई दवा आती ही होगी?’’कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कविता बोली।
“रास्ते से हटाना है ना..। हट जाएंगे। ज़हर ही क्यों? और भी तरीके हैं..।“ सिगरेट सुलगाते हुए डॉक्टर कुमार ने कहा।
“ठीक है। मैं तुम्हें कॉल करके बता दूँगी। प्रोफेसर साहब, घर से निकलते कितने बजे हैं। कहाँ से बस लेते हैं। कहाँ ग्रीन टी पीते हैं। कहाँ-कहाँ रुकते हैं। किससे मिलते हैं। सब्जी कहाँ से लाते हैं। किस दुकान से किराना का सामान लाते हैं। घर कितने बजे पहुंचते हैं। किस दिन, कौन सा रंग का सूट पहनकर निकलते हैं। जलेबी खाने के बड़े शौक़ी़न हैं। वो भी बता दूंगी, कहाँ से लेते हैं। वो अपने किस दोस्त के घर जाते हैं। किस दिन कार से कॉलेज जाते हैं। और कुछ…।“
“हेय माई स्वीट हार्ट.. आई डोन्ट वांट टू राइट ए प्रोफेसर बायोपिक। वाय आर यू टेलिंग मी देयर रूटीन…? उन्हें रास्ते से हटाना है ना..? बस..। सिम्पल सा काम है। हट जाएंगे। तुम्हारे लिए इतना तो करना बनता है।“ कविता के गालों को सहलाते हुए कुमार ने कहा।
“शाहरूख खान की बाजीगर,डर और अंजाम फिल्म नहीं देखे हो,तो देख लेना…। मर्डर ऐसा होना चाहिए, कि मौत भी शाक्ड हो जाए। एक बात यह भी जान लो। ऐसा नहीं है, कि मुझे प्रोफे़सर प्यार नहीं करते। दरअसल वो मार्डन कम हैं। और तुम्हारी तरह स्मार्ट नहीं है। घोचू है..। मुझे नहीं लगता, कि कॉलेज लाइफ में उसकी कोई गर्ल फ्रेंड रही होगी। मुझे कभी लगा ही नहीं, कि मेरा हस्बेंड, नए ज़माने का आशिक़ है। लवर बॉय है। प्रोफेसर से मेरी शादी घर वाले न किए होते…तो इस डरपोक के साथ भाग कर शादी कर ली होती..। कविता अपने होंठों को चाबते हुए रोमांटिक अंदाज़ में बोली।
“वाह। अब कर लें…?’’ कविता को किस करते हुए कुमार ने कहा।
डॉक्टर कुमार को धक्का देते हुए कविता बोली,‘‘ज़्यादा रोमियो बनने का नाटक मत करो। नहीं तो..तुम्हारा ही मर्डर कर दूंगी! किसी को पता भी नहीं चलेगा। प्रोफे़सर की बीवी हॅू। तुमसे ज़्यादा दिमाग़ चलता है। किसी दिन प्रोफे़सर से मिलकर देखना। तब तुम्हें पता चलेगा,कि वो दिमाग़ से डॉन है…!’’
कविता की बात पर हैरान होकर डॉक्टर कुमार ने कहा,‘‘ऐसा है तो आपके डॉन से मिलना पड़ेगा। मगर,ये तो बताओ प्रोफ़ेसर से तुम्हें इतनी एलर्जी क्यों है..?”
“उनके साथ चलने पर यंग कपल जैसी फीलिंग नहीं आती। अभी दो ही साल हुए हैं हमारी शादी को। मेरे बर्थ डे पर मुझे विश तक नहीं किया। शादी की सालगिरह पर गिफ्ट देना दूर प्यार से एक गुलाब तक नहीं दिया..। मेरा भी मन करता है..कभी कैंडल डिनर पर मेरा महबूब मुझे ले जाए। ज़िन्दगी में ग्लैमर नहीं है। गुस्सैल और अड़ियल किस्म का है। वैसे किसी तरह की मुझ पर बंदिश नहीं है। मगर, इश्क़ के मामले में पूरा देहाती है। आशिक मिज़ाज का नहीं है। खूसट है। वैवाहिक आनंद की अनुभूति कभी मिली नहीं। हमारे साथ कोई और नहीं रहता। यंग कपल आपस में कामुक बातें करते हैं। पोर्न फ़िल्में देखते हैं। गहन संतुष्टि, जैसी हमारे लाइफ मे कुछ भी नहीं है। पहल मुझे ही करनी पड़ती है। बेड रूम में भी थ्रीलर,जासूसी और क्राइम की किताबें पढ़ते हैं। आज तक नहीं समझ सकी, कि किस टाइप के प्रोफेसर हैं! उनकी नज़र में इश्क़ दिखाने की नहीं..फीलिंग करने की चीज़ है। उन्हें कौन समझाए..? प्यार जताना भी ज़रूरी है। ऐसा लगता है बेडरूम में मर्दो में कैसी भावनाएं होनी चाहिए..इसकी समझ उनमें नहीं है। पति-पत्नी के बीच बात-बात पर थोड़ी शरारत न हो। झगड़ा न हो। रूठने और मनाने की बात न हो,तो फिर प्यार शहद जैसा गाढ़ा कैसे होगा..?
“बात तुम्हारी वाजिब है। मन की दूरी कोई भला कैसे बर्दाश्त कर सकता है?’’ कविता की बातों का समर्थन करते हुए कुमार ने कहा।
“क्या महिलाओं को अपने पार्टनर से अपेक्षा नहीं करनी चाहिए? क्या मेरी जैसी महिलाएँ बेडरूम में उकताहट पसंद करती होंगी? कविता ने तिरछी नज़रों से देखते हुए सवाल की।
“प्यार को और प्यारा बनाने की दिशा में औरत और मर्द दोनों को सोचना चाहिए। कुछ पुरूषों के शरीर में टेस्टोस्टेरोन की कमी होती है। हो सकता है स्ट्रेस में रहते हों..! मेरे रहते बेडरूम में उकताहट की चिंता क्यो करती हो..?’’ डॉक्टर कुमार मुस्कराते हुए कहा।
“बस भी करो। आज कल महिलाओं की तुलना में पुरूष फतासियों में ज़्यादा जीते हैं। अच्छी सैलरी है। अच्छा पद है। फिर किस बात का स्ट्रेस..? प्रोफेसर के पास जब देखो तब, एक ही सवाल रहता है। माँ बनने की खुश खबरी कब सुना रही हो? बेडरूम में मुझे क्या पसंद है..कभी नहीं पूछे। उस उल्लू के पट्ठे को कौन समझाए। मेरे अपने ख़्वाब हैं। उसे पूरा करना चाहती हूं। कत्थक में एम.ए.करना चाहती हूँ। बाद में बच्चा पैदा करके दे दूँगी। अभी तो इश्क़ के मज़े लेने के दिन हैं..। इतनी जल्दी माँ बनकर,घर गृहस्थी में नहीं बंधना चाहती। एक काम क्यों नहीं करते? कोई ऐसी बीमारी प्रोफेसर को बता दो। ताकि, माँ बनने की झंझट से फिलहाल मुक्ति पा लूं…। ”
“क्या बोली…? बीमारी..? गुड आइडिया..! अच्छा है..। ये तो मेरे बाएं हाथ का खेल है। न्यूरो सर्जन हूं। अभी घर जाइये। फ़ोन पर जैसा-जैसा कहूँगा वैसा करना शुरू कर देना।” डॉक्टर कुमार ने कहा।
कविता अचानक मोबाइल पर टाइम देखी। प्रोफ़ेसर रूचिर के आने का समय हो गया था। डॉक्टर कुमार की क्लीनिक से कविता घर आ गयी। घड़ी की तरफ देखी। अभी बीस मिनट है,प्रोफे़सर रूचिर के आने में। उसने फटाफट पोहा बना दी। और लौटते वक़्त गर्म जलेबी ले आई थी। शाम का नाश्ता तैयार कर,जैसे ही टी.वी. का बटन ऑन की। डोर बेल बजी। दरवाज़ा खोली। देखी कि,प्रोफ़ेसर रूचिर के साथ,एक सुन्दर महिला भी है। वो भी अंदर आ गयी।
रूचिर ने कविता को बताया,‘‘ये मिस शालिनी हैं। बहुत अच्छा गाती हैं। इन्हें भी डॉस का बहुत शौक है। जब इन्हें बताया, कि मेरी मिसेस कत्थक में एम.ए. कर रही है,सुन कर बहुत खुश हुईं। मिलने चली आयीं। हमारे कॉलेज में कल ही ज्वाइन की हैं। ये भी प्रोफेसर हैं। अरे हां। डॉक्टर से मिल आयीं? कैसा है अब पैर का दर्द? सॉरी यार। मैं तुम्हें डॉक्टर के पास नहीं ले जा सका।“
“हल्की मोच है। बर्फ़ से सेकने को कहे हैं। पेन रिलीव जेल को तीन-चार दफ़ा लगाना है। एक सप्ताह बैंडेज पैर में बांधना है। डॉस बिलकुल नहीं करना है। एक मिनट,आप दोनों के लिए नाश्ता लाती हूँ।
शालिनी के जाने के बाद प्रोफे़सर कविता का पैर अपने हाथों में लेकर देखते रहे। कुछ देर बाद बोले,‘‘दवा मैं लगा देता हूँ। कहां रखी हो..।“
“ड्राइंग रूम की टेबल पर पर्स है,उसी में है।“
“कोई बात नहीं..मैं ले आता हूँ।“
रूचिर को पर्स की एक चैन खोलने पर,उसमें कंडोम का एक पैकेट दिखा। उसे देखकर थोड़ा हैरान हुआ, फिर मुस्करा दिया। उस पैकेट के अंदर चार कंडोम था। उसे जस के तस रख दिया। पर्स के दूसरे खाने की चैन खोली। उसमें पेन रिलीव जेल था। कविता के मोच वाले पैर में प्यार जताते हुए प्रोफ़ेसर लगा रहे थे। लेकिन उनके ज़ेहन में सवाल भी कौंध रहा था। कंडोम के बारे में पूछूं या नहीं..। हटाओ। इस बारे में बच्चों की तरह क्या सवाल करना। उसे लगा, लाना चाहिए। ले आई होगी..। खैर..। ’’
दूसरे दिन डॉक्टर कुमार ने कविता को फ़ोन करके पूछा,’’बेड पर कंडोम का पैकेट था। उसे ले गयी हो क्या..? ’’
कविता ने कहा,‘‘पर्स ले गयी हो क्या..? पूछते तो अच्छा लगता…। क्या, दो रूपये की चीज़ के लिए फ़ोन कर रहे हो..? ले गयी हो क्या…? देखिए वहीं कहीं बिस्तर पर होगा।“
“यहां पर नहीं है। अपना पर्स देखो। शायद उसमें रख ली होंगी।“ हँसते हुए कुमार ने कहा।
“मेरे किस काम का..? रुकिए देखती हूँ..।“
पर्स में पैकेट था। अगले ही पल सोच में पड़ गयी,इसे कब मैने अपने पर्स में डाल ली..! हो सकता है,बातों ही बातों में ध्यान ना गया होगा.. और रख ली..।
“हाँ,रखी है। पता नहीं, कैसे आ गयी..! जब आऊंगी ले लेना अपनी संपत्ति।“ हँसते हुए कविता बोली।
मैं इसलिए पूछ लिया,कहीं आपके प्रोफे़सर पति न देख लें। खैर..।“
डॉक्टर कुमार के दिमाग़ में एक आइडिया आया। उन्होंने अपने एक ज्वेलर्स मित्र को फ़ोन किया और उसे सारी बातें समझा दी। फिर कविता को भी फ़ोन कर अपनी योजना बताई,किआगे अब क्या करना है। दरअसल,कंडोम का पैकेट डॉक्टर कुमार ने कविता के पर्स में चुपके से रख दिया था।
कुछ दिनों बाद कविता डॉक्टर कुमार से मिली। कुमार ने कहा,‘‘ आपके लिए राज़ ज्वेलर्स में एक गिफ़्ट है। जब यहां से जाओगी,ले लेना। लेकिन उससे पहले मुझे..मेरा गिफ़्ट तो देती जाओ..।“
“बडे़ चालाक हो। गिफ़्ट के बदले गिफ़्ट चाहिए। यदि न दूं तो..?’’ कविता शरारत भरे अंदाज़ में कही।
“सोच लो..। क्या,यहां से जाने के बाद यदि..मैं आपके सपने में अपना सामान मांगने आ गया तो…?’’
“चलिए तुम भी क्या याद रखोगे। ले लो अपना गिफ़्ट,नहीं तो फ़ोन पर मुझे तंग करोगे। पर्स में तुम्हारा पैकेट रखा हुआ। एक निकाल लो। नहीं तो डॉक्टरी, धरी की धरी रह जाएगी..।“
राज़ ज्वेलर्स में कविता कुछ ज्वेलरी देखती रही। खरीदी कुछ नहीं। डॉक्टर का गिफ़्ट लेकर चली आयी। कविता के जाने के बाद राज़ ज्वेलर्स ने डॉक्टर कुमार को फ़ोन करके बताया,उनकी पसंद की अंगूठी दे दी है। लेकिन चांदी की एक जोड़ी पायल और बीछिया भी ले गयीं हैं.। बिना बताए। उसका पेमेंट कौन देगा..? ’’
“क्या बात करते हो। वो ऐसी औरत नहीं है। यदि कुछ और लेती,तो मुझे फ़ोन करती। देखो, वहीं-कहीं होगा..।“ कुमार हैरान होने का नाटक करते हुए कहा।
“सी.सी.टी.वी फूटेज बता रहा है,कि वो अपने पर्स में रख ली हैं। उसका पेमेंट आप करेंगे या फिर उन्हें फ़ोन करूं…?’’
“जैसा कह रहे हो,वैसा पक्का हुआ है या फिर कोई संदेह है..!’’ डॉक्टर कुमार ने पूछा।
“मैं झूठ क्यों बोलूंगा..। आप आकर फूटेज देख सकते हैं। वो चोरी भी करती हैं क्या..? ’’
“पैसा नहीं मिलने पर मुझसे ले लेना। मैडम को फ़ोन कर लो और उनके घर शाम सात बजे के बाद जाना। उस वक़्त उनके पति भी होंगे। बहस मत करना। अच्छे लोग हैं। पैसा मिल जाएगा..।“
राज़ ज्वेलर्स के फ़ोन पर कविता ने कहा,‘‘घर पर ही हूँ। आ सकते हो। कोई दिक्कत नहीं है।“
कविता से राज़ ने कहा,‘‘आप एक अंगूठी ली। दो चांदी की पायल और बिछिया भी ली हैं। अंगूठी की पैसा दे दी हैं लेकिन,पायल और बिछिया का नहीं दी हैं।“
“चांदी की पायल और बिछिया की मुझे ज़रूरत नहीं है,तो.. क्यों लूंगी? आपको कोई ग़लत फहमी हुई होगी..।“
“नही मैडम जी। आप अपना पर्स तो देखिए। उसी में होगा।“
राज़ ने प्रोफे़सर रूचिर से कहा,‘‘मेरा यक़ीन मानिए सर। सी.सी.टी.वी फूटेज में देखने के बाद ही, मैं यहां आया हूँ। आप स्वयं इनका पर्स चेक कर सकते हैं। ’’
प्रोफे़सर कविता की तरफ देखे। कविता अपना पर्स लाकर राज़ ज्वेलर्स को दे दी। उसने पर्स खोला। उसमें से चांदी की पायल और बिछिया मिली।
कविता हैरान होकर बोली,’’मेरा यक़ीन करिए…मुझे यह नहीं पता मेरे पर्स में ये कैसे आया..!’’
“मैडम जी,मैं आप पर चोरी का इलजाम नहीं लगा रहा हूँ। हो जाता है..कभी-कभी। ध्यान कहीं और रहता है। चोरी करने वाली महिलाएं अलग तरह की होती हैं। हम इतने दिनों से व्यापार कर रहे हैं। आदमी देखकर जान लेते हैं,कि कौन किस तरह का आदमी है। आपको पायल, बिछिया चाहिए या इसे लेता जाऊँ?’’
प्रोफ़ेसर रूचिर ने कहा,’’राज़ भाई, धोखे से या हड़बड़ी में अथवा कहीं और ध्यान होने सें ऐसा हो गया होगा..। आप सही कह रहे हैं। आप अच्छे इंसान लगते हैं। कितना देना है,ये बताइये..।“
राज ज्वेलर्स चार हजार रूपये लेकर जाते-जाते कहा,‘‘सर,बुरा मत मानियेगा। सवाल चार हज़ार रुपए का नहीं है। आप अच्छे लोग हैं। मैडम को किसी डॉक्टर को एक बार दिखा लें। मैं भी मानता हूँ…ये वैसी नहीं हैं। डॉक्टर को दिखाने में क्या हर्ज़ है..। मन की आशंका दूर हो जाएगी..।“
“आप ठीक बोल रहे हैं। कुछ दिनों से मैं भी गेस कर रहा हूँ। अजीब-अजीब घटनाएं कर लेंती हैं,लेकिन इन्हें पता ही नहीं चलता है,कि वो ऐसा की हैं।“हैरानी जाहिर करते हुए प्रोफ़ेसर रूचिर ने कहा।
राज़ के जाने के बाद प्रोफ़ेसर कविता से बोले”गनीमत है,कि राज़ ज्वेलर्स नेक दिल के इंसान हैं। भला आदमी है। मामला यहीं खत्म कर दिया। आपके खिलाफ़ चोरी का भी मामला बन सकता था। कुछ दिनों से देख रहा हूँ, कि जहां भी जाती हो,कुछ न कुछ अपने पर्स में लेकर चली आती हो। लगता है मेडिकल दुकान दवा लेने गयी थी। वहां से कंडोम का पैकेट उठा लाई थीं। शादी से लौटते वक़्त आपके पर्स में चम्मच,काजू,किसमिस दूसरों की रुमाल आदि मिलते हैं। मिस्टर कपूर की शादी में गयी थीं..। पता नहीं,दुल्हन की है या किसी और की,चुन्नी अपने पर्स में रख ली थीं। क्या हो जाता है आपको..? ग़लत काम कर लेती हो और पता भी नहीं रहता। कुछ तो गड़बड़ है। दिनों दिन तुम्हारी हरकतें बढ़ती जा रही हैं। चौराहे पर निरो सर्जन डॉक्टर कुमार हैं। एक बार उन्हें दिखा लेते हैं। आखि़र, ऐसी अनहोनी घटना कर कैसे लेती हो..? ’’
डॉक्टर कुमार कविता के ब्रेन का एक्सरा देखने के बाद कहा,‘‘प्रोफे़सर साहब, इसे साइंस की भाषा में कलॉकटो मीनिया कहते हैं। नार्मल व्यक्ति के ब्रेन की तुलना में,इस बीमारी के शिकार व्यक्ति का ब्रेन ठीक उल्टा होता है। उसे ग़लत काम नहीं करने का संदेश भेजने वाली नसें, संदेश नहीं भेजती। और व्यक्ति सोचता है,वो जो कर रहा है। अच्छा कर रहा है। इस बीमारी में दिमाग़ के अंदर न्यूरोट्रांसमीटर जैसे डोपीमीन,सेरोटोनिन या नोर एड्रेनलीन आदि की वजह से दिमागी केमिकल असंतुलित हो जाते हैं। इससे मूड को नियंत्रित करने वाला सिस्टम,गड़बड़ा जाता है। और मनुष्य इस रोग का शिकार हो जाता है। जैसा आप हिस्ट्री बता रहे हैं,उसके अनुसार यह शुरूआती लक्षण हैं। इलाज़ नहीं होने पर यह बढ़ भी जाता है। कभी-कभी इस बीमारी का व्यक्ति,कई बड़ी वारदात भी कर बैठता है। घबराने की ज़रूरत नहीं है। कुछ दवा लिख देता हूँ। नियमित खिलाइये और इन्हें प्रसन्न रखिए। जो बात पसंद न हो उसे बार-बार न दोहराएं..। ठीक हो जाएंगी..।“
कुछ दिनों बाद प्रोफे़सर रूचिर ने कविता का पर्स चेक किया। कंडोम अब भी पर्स में था। लेकिन,उसमें दो पीस कम था। उन्होंने पूछा,‘‘डॉक्टर के पास जाना था। गयी थीं क्या…? ’’
“हाँ,एक सप्ताह की दवा और दिए हैं।“ अनमने भाव से कविता ने कहा।
कविता की बातों में कोई गंभीरता,डर या फिर प्रसन्नता,कुछ भी प्रोफे़सर को नहीं लगा। चार दिनों बाद प्रोफे़सर ने फिर पर्स चेक किया। कंडोम का पैकेट था। मगर खाली था। प्रोफे़सर के कान खड़े हो गए। सोच में पड़ गए।
“कविता को क्या,वाकई में कलॉकटो मीनिया है या फिर नाटक कर रही है..? कहीं कविता और डॉक्टर मिलकर कोई नाटक तो नहीं कर रहे है..? दोनों में कोई खिचड़ी, तो नहीं पक रही है..? कंडोम का पैकेट खाली है। चार पीस आखि़र गए कहां..? मेरे जाने के बाद,क्या कोई घर आता है..? किसी से पूछ भी नहीं सकता। कविता से भी पूछना,ठीक नहीं रहेगा। क्यों न,घर मे कैमरा लगवा देता हूँ। उसे अपने मोबाइल के नंबर से कनेक्ट कर देता हूँ। कविता जब तक घर में रहेगी,उसके मोबाइल के वाई-फाई से चलेगा। मैं कहीं से भी देख लूंगा । घर पर कौन आ-जा रहा है। हाँ, यही ठीक रहेगा..।“
एक सप्ताह तक प्रोफेसर,अपने मोबाइल पर निगाहें गड़ाए रहे,लेकिन कोई भी बाहरी व्यक्ति उनकी गैर हाज़िरी में नहीं आया। मन ही मन कहने लगे,बेवजह कविता पर शक कर रहा था। लेकिन कंडोम से शक होता ही है। हो सकता है,बाहर किसी से मिलने जाती हो…? लेकिन कौन हो सकता है..? डॉक्टर कुमार तो नहीं है..? नहीं,उस पर शक नहीं किया जा सकता। वो डॉक्टर है। उसका हाव-भाव भी ऐसा नहीं है,कि उस पर शक किया जा सके। लेकिन…शक करने में कुछ जाता तो है नहीं..। कहीं कविता का,किसी से अफ़ेयर तो नहीं है..? पहले डॉक्टर को चेक किया जाए। उसके बाद राज़ ज्वेलर्स को। फिर उस लड़के को,जिसने इसका हाथ पकड़ कर बोला था,‘‘तुम तो बिलकुल,प्रियंका चोपड़ा लगती हो। एक सेल्फी ले लेने दो।“ अच्छा हुआ कि,उस दिन पुलिस वाले उसे पकड़ ले गए। खैर..। इस बार गर्मी की छुट्टी में कहीं जाने की चर्चा कविता नहीं कर रही है। मैं ही करके देखता हूँ..। ’’
“कविता,सुनो। इस बार गर्मी में कहां चलना है,कुछ सोची हो..? ’’
“इस बार नैनीताल चलते हैं।“
“ठीक है। मै सोच रहा था,डॉक्टर कुमार को, इस संडे डिनर पर बुला लेते हैं। इसी बहाने उनसे तुम्हारी बीमारी के बारे में पता कर लेंगे,कि बाहर घूमने जाने में किसी तरह की परेशानी तो नहीं होगी। वैसे एक बात है,डॉक्टर कुमार अच्छे इंसान हैं। स्मार्ट हैं। व्यवहार भी अच्छा है। मैं उन्हें इनवाइट करूं…या फिर तुम करोगी..? ’’
“आप बुलाना चाहते हैं तो फ़ोन भी आप ही करें।“कविता प्याज काटते हुए बोली।
डॉक्टर कुमार संडे को नौ बजे डिनर के लिए प्रोफे़सर के घर पर थे। डॉक्टर की नज़र आलमारी पर पड़ी। बड़े गौर से देखा कि,आलमारी में ढेर सारी किताबें हैं। मगर,ज़्यादातर थ्रीलर,जासूसी और क्राइम की किताबें थीं। सभी अंग्रेजी में।
डॉक्टर कुमार ने पूछा,‘‘आप तो इंजीनियर हैं..। फिर ये थ्रीलर,जासूसी और क्राइम स्टोरी वाली किताबें, आपकी आलमारी में क्या कर रही हैं..? ’’
हँसते हुए कुमार बोले,‘‘ऐसी किताबें पढ़ने से मुझे ऊर्जा मिलती है। मन में डर का भाव आकार नहीं लेता। और आगे बढ़ने की ललक हमेशा बनी रहती है। अभी भी ऐसी किताबें पढ़ता हूँ । अपना-अपना शौक है। दूसरी किताबों के प्रति मुझमें,जरा भी रूचि नहीं है। कॉलेज के बदमाश टाइप के लड़के भी जानते हैं कि,इस मामले में सर,उनके सर ही हैं..। इसलिए कोई मुझसे उलझता नहीं। चलिए,आइये खाना लग गया है।“
कुछ ठहर कर प्रोफे़सर बोले,‘‘डॉक्टर साहब,आपकी दवा कविता ले ही रही है। एक बात जानना चाहता था,गर्मी में हम हर साल बाहर घूमने जाते हैं। कोई दिक्कत तो नहीं होगी..?’’
“आप खुद भी देख रहे होंगे,कि इनमें सुधार आया है,कि नहीं। आप यह जान लीजिए, कलॉकटो मीनिया से पीड़ित शख़्स को, यह एहसास नहीं होता,कि वह ग़लत है। मिसाल के लिए,अनजाने में जो कुछ भी कविता जी से हो जाता है। उन्हें लगता है,कि सही है। जबकि, वो ऐसा करना नहीं चाहती। यह हालत डिप्रेशन के ठीक उलट है। डिप्रेशन किसी शख़्स को खामोश कर देता है,कलॉकटो मीनिया में बड़बड़ाहट बढ़ जाती है। डिप्रेशन में सेक्स करने की इच्छा या हरकत कम या खत्म हो जाती है। कलॉकटो मीनिया में ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ जाती है। यह बीमारी कभी-कभी,बेहद खर्चीला भी बना देती है। मुमकिन है,कि बर्ताव भी असामाजिक हो जाए..! कलॉकटो मीनिया में मरीज़ खुद को बढ़ा-चढ़ाकर देखता है। अधिक सजना,संवरना। नई चीजें खरीदना। नए काम शुरू कर देना। खुद को शक्तिशाली या अधिक धनी मानने लगना। जब मरीज़ को ऐसा करने से रोका जाता है,तो वह अत्याधिक क्रोधित हो जाता है। मारपीट भी करने लगता है..।“
“खैर..जो लक्षण बता रहे हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है।“ प्रोफे़सर रूचिर ने कहा।
खाने के बाद प्रोफे़सर ने कहा,‘‘डॉक्टर साहब एक मिनट,मैं बाथरूम से आया। आप रुकिएगा.।“
डायनिंग टेबल पर प्रोफे़सर रूचिर अपना मोबाइल चुपके से रिकार्डिग मोड़ पर रखकर बाथरूम चले जाते हैं।
डॉक्टर कुमार इस बीच कविता से कहा,“कुछ भी कहो यार,प्रोफे़सर जी,इंजीनियर कम,दिमाग़ से क्रीमनल अधिक हैं। देख रही हो। ऐसी किताबें पढ़कर मुझे लगता है क्राइम मास्टर हो गए हैं..।“
“कविता बोली,‘‘ये बताइये, कलॉकटो मीनिया की शिकार हूँ। ऐसा नाटक कब तक करना पड़ेगा..? हटा कब रहे हैं.. ये बताइये…?’’
“जिन्दगी एक रंगमंच है। नाटक चलने दो। पर्दा गिराने का जब वक़्त आ जाएगा। अपने आप गिर जाएगा। किसी को कुछ बोलना भी नहीं पड़ेगा। ऑपरेशन टेबल खाली होने दीजिए। तब न ऑपरेशन होगा। दिमाग से ऑपरेशन करना पड़ेगा..। साधारण सुपाड़ी नहीं है,कि कोई भी फोड़ के खा ले। अब आपका नहीं। यह मेरा काम है..।“
“राज ज्वेलर्स वाला आया,तो मैं डर ही गयी थी। जैसा कहे थे,वैसा ही की। चांदी की पायल और बिछिया पर्स में रख ली थी। गनीमत है,कि अंगूठी पर उसने जोर नहीं दिया। उसे पर्स से निकालना भूल गयी थी। थैंक्स गॉड। जैसा राज़ को बोले थे,वैसा ही उसने किया। वाकई में,तुम वहां भी,और यहां भी कमीने हो..।“ इतना कहकर कविता हँसने लगी।
बाथरूम से लौटते ही प्रोफ़ेसर ने कहा,‘‘डॉक्टर साहब,ऐसा क्या सुना दिए,कि कविता हंसने लगी..?’’
“कुछ नहीं, एक लतीफ़ा सुना रहा था। अब जाने की इजाज़त दीजिए। डिनर लाजवाब था। थैंक यू फार इनवाइट मी,एण्ड इटिंग सच गुड फुड..।“
“नाइस सर.. यू कम। गुड नाइट..।“
प्रोफेसर रूचिर ने ईयर फ़ोन लगाकर इत्मिनान से कविता और डॉक्टर कुमार के बीच हुई बात की रिकार्डिग सुनी। रिकार्डिग सुनने के बाद वो हैरान हो गया, कि कविता को कोई बीमारी नहीं है। वो नाटक कर रही है। कविता मल्टी विटामिन खा रही है। पर्दा गिराने का जब वक़्त आ जाएगा…अपने आप गिर जाएगा..। ऑपरेशन टेबल खाली होने दीजिए..। साधारण सुपाड़ी नहीं है, कि कोई भी फोड़ के खा ले..। यहाँ भी और वहां भी कमीने हो। इसका क्या मतलब..? यानी दोनों कोड वर्ड में बातें कर रहे थे। सुपाड़ी मतलब किसी को मारना भी हो सकता है। ऑपरेशन टेबल खाली होने दें…मतलब किसी का ऑपरेशन से है। कविता का ऑपरेशन या फिर मेरा ऑपरेशन..? ऑपरेशन से क्या मलतब? मुझे कोई बीमारी नहीं है। ऑपरेशन यानी किसी काम का भी हो सकता है..! कभी-कभी,बिस्तर पर,कविता कहती है बड़े कमीने हो। अपना मतलब देखते हो। यानी, इन दोनों के बीच अफेयर चल रहा है। पर्स में कंडोम का मिलना..इत्तिफाक नहीं है। कलॉकटो मीनिया बीमारी से कोई संबंध नहीं है। राज ज्वेलर्स की घटना गढ़ी गयी है। कविता अंगूठी खरीदी नहीं थी..! किसी ने गिफ़्ट दिया है। मगर..कौन ? राज़ या डॉक्टर.? यानी ऑपरेशन में एक नहीं,तीन लोग शामिल हैं। राज,डॉक्टर कुमार और कविता। ऐसा लगता है, कि डॉक्टर की कड़ी टूटी, तो सब अनार की तरह छितरा जाएंगे..।”
कविता और डॉक्टर को प्रोफेसर रूचिर ने यह एहसास नहीं होने दिया, कि दोनों के नाटक से वो वाकिफ़ हो गया है। सब कुछ मालूम होने के बाद भी खामोश था। मगर कविता से प्यार जताने में कोई कमी नहीं की।
एक किताब का पन्ना पलटते हुए प्रोफेसर रूचिर ने खुद से कहा,‘‘कविता मेरा प्यार है। अपने प्यार की लहर को दूसरे किनारे तक जाने से रोकना होगा। इस मचलती लहर को अपने बस में करना होगा। फूलों को कांटों का बिस्तर सजाना नहीं आता। इसलिए भंवरा उस पर बैठता है। भंवरे को ही मार दो..। ज़िन्दगी में फिर वसंत बहार लौट आएगी..।”
डॉक्टर कुमार को प्रोफेसर रूचिर दिन में एक बार फ़ोन करने से नहीं चूकते थे। कविता को दो बार फ़ोन करने लगे प्रोफे़सर। एक महीना बीत गया। इस बीच प्रोफेसर रूचिर डॉक्टर कुमार के और नज़दीक़ आ गए। कहते हैं,किसी की जान लेनी हो,उससे दोस्ती इतनी करो, कि वो ऑख मूंदकर तुम पर भरोसा करने लगे।
प्रोफेसर रूचिर हर दिन डॉक्टर कुमार को टपकाने की योजना बनाने लगे। पहले सोचा अपने कॉलेज का गुंडा गोल्डी को टपकाने को कह दूं। लेकिन इरादा बदल दिया। फिर सोचा,‘‘एक बार फिर डॉक्टर को इडली खाने के बहाने बुलाकर, उसके सांभर में नींद की गोली मिला देता हूँ । उसके घर तक, तीन फ्लाई ओवर पड़ते हैं। कहीं न कहीं फ्लाई ओवर से टकरा कर, उसकी गाड़ी नीचे गिरेगी और मर जाएगा। नहीं..यह आइडिया ठीक नहीं है। ज़रूरी नहीं है,कि मर ही जाए। घायल भी हो सकता है। हाथ पैर ही टूटे..। बच गया तो..खेल बिगड़ जाएगा। डॉक्टर है..शराब पीता ही होगा। एक-दो गोली से उसे कुछ होगा भी नहीं। यह प्लान ठीक नहीं है..।”
एक दिन प्रोफे़सर रूचिर ने डॉक्टर कुमार का खेल खत्म करने की ठानी। मन ही मन तय किया,कि बाइक से पीछा करना ठीक रहेगा। डॉक्टर के घर तक तीन सिग्नल रास्ते में पड़ते हैं। रात नौ बजे के बाद,जिस सिंग्नल पर मौका मिलेगा,वहीं आज उड़ा दूंगा.।
कविता को बताकर प्रोफेसर रूचिर निकले, कि शर्मा जी के यहां जा रहा हूँ । आने में देर भी हो सकती है। मेरी चिंता मत करना।”
डॉक्टर कुमार अपनी क्लीनिक से सवा नौ बजे निकले। प्रोफे़सर उनके पीछे अपनी बाइक लगा दी। पहले सिग्नल पर डॉक्टर कुमार ने कार रोकी। प्रोफ़ेसर ने अपनी बाइक,उनके बाजू में लगा दी। हेलमेट की वजह से डॉक्टर कुमार प्रोफेसर को नहीं पहचान सके। प्रोफे़सर ने आगे-पीछे.दाएँ-बाएँ और सामने देखा,कि कितनी गाड़ियां रुकी हैं। उन्होंने अंदाज़ा लगा लिया,कि यहां कुछ नहीं हो सकता। ग्रीन सिग्नल होते ही फिर डॉक्टर की कार के पीछे हो लिए।
अगले सिग्नल पर,फिर डॉक्टर ने अपनी कार रोकी। वहाँ एक दो ही बाइक वाले थे। वहां जैसे ही प्रोफे़सर जेब में हाथ डाल कर रिवाल्वर निकालने ही जा रहे थे,कि सिग्नल के उस पार सामने से एक कार की लाइट पड़ी। फौरन अपना हाथ अंदर कर लिए। तीसरे रेड सिग्नल पर रास्ता साफ़ था। इस बार उन्होंने अपनी बाइक डॉक्टर की कार के बायीं ओर खड़ी की। तभी पीछे से एक और बाइक वाला आया,वो इनसे आगे अपनी बाइक लगा दी। इन्हें गुस्सा आया,लेकिन चुप रहे। तभी इनकी बाइक को पीछे से एक दूसरा बाइक वाला आया ठोकर मार दिया।
प्रोफे़सर झल्ला कर बोले,‘‘दिखता नहीं है क्या..?’’
वो भी दंबंग अंदाज़ में बोला बोला,‘‘दिखता है.। तभी तू बच गया। नहीं तो फेंका जाता..।“
प्रोफे़सर अपनी बाइक को किनारे कर हेलमेट उतार कर बड़े ताव में उसके पास पहुँच गए। उससे उलझने ही वाले थे,कि उसकी बाडी देखकर अपने गुस्से पर नियंत्रण कर बोले,‘‘भाई साहब। देख कर चलाइये। ऐसे में आप के भी हाथ पैर टूटेंगे..और सामने वाले का भी। आपको जल्दी है। आप ही चले जाइये। मैं बाद में चला जाऊंगा.।”
प्रोफेसर उससे बात कर ही रहे थे कि..अचानक गोली चलने की आवाज़ आई। और उसी पल ग्रीन सिग्नल होते ही लोग अपना- अपना वाहन लेकर आगे बढ़ गए। प्रोफ़ेसर रूचिर चौक गए। अचानक उनकी नज़र डॉक्टर कुमार की कार पर पड़ी। बाकी सब गाड़ी वाले निकल गए लेकिन…डॉक्टर कुमार की गाड़ी वहीं की वहीं खड़ी रह गयी। प्रोफसर रूचिर फौरन अपनी बाइक लेकर आगे निकल गए। वो बाइक वाला भी। आगे जाकर उसने कहा,‘‘लगता है किसी ने उस कार वाले को गोली मार दी है..।”
प्रोफ़ेसर रूचिर वापस घर लौट आए। कुछ देर तक शाँत बैठे रहे। इसके बाद आलमारी से एक थ्रीलर उपन्यास निकाल कर पढ़ने लगे। कविता उन्हें किताब पढ़ते देख कर बेड रूम चली गयी।
प्रोफे़सर सोचते रहे,कि डॉक्टर कुमार को गोली किसने मारी..? किस वजह से मारी ? मारने वाले को पता था,कि रेड सिग्नल कितने मिनट का रहता है। ग्रीन सिग्नल होने के ठीक तीन सेंकड पहले गोली मारनी है। अच्छा हुआ..वो बाइक वाला मेरे आगे अपनी बाइक लगा दिया था। और पीछे से आ रहा बाइक वाला मेरी बाइक में ठोकर मार दिया..। कल अख़बार में पता चलेगा,कि कुमार को मारा किसने..। आखि़र, पुलिस पता कर ही लेगी..।
सुबह के अख़बार में प्रोफे़सर सबसे पहले मर्डर वाली ख़बर ढूंढी। फ्रंट पेज पर थी ख़बर। ‘‘बिल्डर को आए थे मारने,गोली मारी डॉक्टर को। गोली मारने वाले पकड़े गये। डॉक्टर की मौके पर मौत..।”
प्रोफेसर रूचिर ने राहत की सांस ली। इसके बाद पूरी ख़बर पढ़ी,यह जानने के लिए डॉक्टर को कैसे गोली मारी। हमलावरों ने पुलिस को बताया,कि वो बिल्डर विमल को मारना चाहते थे। बिल्डर विमल की कार का रंग और डॉक्टर कुमार की कार का रंग एक जैसा था। विमल की कार, डॉक्टर कुमार के पीछे थी। जहां डॉक्टर कुमार की कार रुकी, वहां पेड़ की वजह से स्ट्रीट लाइट की रोशनी बराबर नहीं पड़ रही थी। शूटर समझ नहीं पाए। और हड़बड़ी में डॉक्टर कुमार को बिल्डर विमल समझ लिए। ग्रीन सिग्नल होने के ठीक तीन सेकंड पहले गोली मारी और ग्रीन सिग्नल होते ही बाइक से फ़रार हो गए। लेकिन यह नहीं समझ पाए, कि उनकी बाइक के पीछे एक इंस्पेक्टर अपनी बाइक से उनका पीछा कर रहा है। और वायरलेस सेट से उसने अगले पुलिस थाने को मैसेज़ कर दिया है। इस बात से..हमलावर अनजान थे।
एक लम्बी साँस छोड़ते हुए प्रोफ़ेसर रूचिर ने कहा,‘‘ मेरे इश्क़ की लहर,अब दूसरे किनारे नहीं जाएगी। एक टेंशन था। जो सिगरेट की तरह जल गया।”

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