
Poster of development torn,sick hospital in bastar
राष्ट्रमत न्यूज,रायपुर(ब्यूरो)। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव की सरकार को दो साल होने को है। जिस बस्तर संभाग में नक्सलवाद अंतिम सांसे गिन रहा है। उस बस्तर संभाग में मरीज भी अंतिम सांसे गिन रहे हैं।यहां हर अस्पताल बीमार है।क्यों कि डाॅक्टर नहीं है। विशेषज्ञ डाॅक्टरों के 355 पद रिक्त हैं,और हैं सिर्फ 45 डाॅक्टर। यानी 310 पद रिक्त हैं।यहां के लोगों को इलाज कराना किसी नक्सली जंग से कम नहीं है। बीजेपी की सरकार आखिर कर क्या रही है। यदि आम जनता केा बेेहतर स्वास्थ्य नहीं दे सकती तो फिर झूठे दावे भी नहीं करना चाहिए। बीमार अस्पताल का इलाज कराने की जवाबदेही सरकार की है।छत्तीसगढ़ में 14 मेडिकल काॅलेज हैं। जिसमें 11 सरकारी और तीन निजी मेडिकल काॅलेज हैं। राज्य भर में 1915 एमबीबीएस की सीट है। 600 बीडीएस सीटें उपलब्ध है।
विशेज्ञ चिकित्सक नहीं
स्वास्थ विभाग के संयुक्त संचालक कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक बस्तर संभाग के 7 जिलों में से बस्तर जिले में विशेषज्ञों के 67 पद स्वीकृत है। जबकि केवल 12 विशेषज्ञ सेवा दे रहे हैं।इसके अलावा कांकेर में 68 पद में से केवल 14 डाॅक्टर नियुक्त हैं। कोंडागांव जिले में 51 स्वीकृत पद हैं,जिसमें केवल 7 डाॅक्टर सेवा दे रहे हैं।नारायणपुर जिले में 31 में 5 और दंतेवाड़ा जिले में 44 में से केवल 4 विशेषज्ञ है। वहीं बीजापुर जिले में 62 में 3 विशेषज्ञ है।सबसे बुरा हाल तो सुकमा जिले का है। जहां 32 पद स्वीकृत है, लेकिन एक भी विशेषज्ञ नहीं है।
बस्तर में अधूरा विकास
स्वास्थ्य और शिक्षा जीवन में सबसे अधिक जरूरी है। दोनों चीजों से बस्तर संभाग अब भी जूझ रहा है। बस्तर के अंदरूनी इलाके में पन्नी की छत और झाड़ियों की दीवारों के बीच स्कूल लग रहे है। प्राधामिक स्वास्थ्य का स्तर दोयम दर्जे का है। ग्रामीण अंचल में बीमार को खटिया से लोग लाते अस्पताल ताले हैं। विष्णु देव सरकार विकास बस्तर में कहां कर रही है या फिर सिर्फ उद्घाटन के शिलालेख। बस्तर संभाग में जिलों में नक्सल, सड़क हादसे प्रसव की जटिलताएं और वायरल बीमारियों की भरमार है।जब छोटे अस्पतालों में इलाज नहीं हो पाता है, तो इसका दबाव सीधे जिला अस्पतालों पर आता है।जगदलपुर कांकेर दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में मौजूद बड़े अस्पतालों में रोजाना सैकड़ों मरीज पहुंचते हैं।बस्तर संभाग का ये हाल तब है जब इन जिलों में नक्सल, सड़क हादसे, प्रसव जटिलताएं और वायरल बीमारियों की भरमार है। जब छोटे अस्पतालों में इलाज नहीं होता तो दबाव सीधे जिला अस्पतालों पर आता है। जगदलपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा जैसे प्रमुख संस्थानों पर रोजाना सैकड़ों मरीज पहुंचते हैं। कई गंभीर केस हैं। लेकिन डाॅक्टर कम है। ओपीडी में भीड़ आॅपरेशन थिएटर में प्रतीक्षा और वार्डों में इलाज की बजाय उम्मीदें पड़ी होती हैं।
डाक्टरों के लिए परेशानी
बस्तर संभाग के हर जिले में चिकित्सकों की कमी के चलते एक चिकित्सक को कई मरीजों को देखना पड़ता है।उस पर अधिक दबाव रहता है।हर मरीज चाहता है उसे चिकित्सक देखें। एक विशेषज्ञ डाॅक्टर एक साथ तीन विभाग संभाल रहा है। जांच, परामर्श और ऑपरेशन। क्या ये किसी भी इंसान के लिए संभव है। मरीजों की मजबूरी उन्हें रायपुर, विशाखापट्टनम या हैदराबाद ले जाती है। सैकड़ों किलोमीटर की दूरी हजारों का खर्च और कई बार वक्त की देरी जान पर भारी पड़ती है।हैरानी वाली बात ये है कि सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल जो जगदलपुर में केंद्र सरकार की योजना से बनकर तैयार हो गया है,लेकिन आज तक शुरू नहीं हुआ। चिकित्सक ही नहीं है तो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल शुरू कैसे हो।
सरकार की खामोशी समझ से परे
सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल के लिए भवन तैयार है।मशीनें लग चुकी हैं, लेकिन डाॅक्टर नहीं हैं।इस वजह से जगदलपुर में बना सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल आज भी शुरू नहीं हो सका है। यानि एक और इमारत एक और इनागरेशन लेकिन मरीजों के लिए कोई उपयोग नहीं। इन नियुक्तियों में सबसे बड़ी रुकावट है फंडिंग और प्राथमिकता जिला खनिज न्यास निधि,जैसे फंड मौजूद हैं, जिनका उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं में हो सकता है। लेकिन अधिकतर जिलों में यह फंड अन्य योजनाओं या कागजी योजनाओं में ही खप गया। विपक्ष सरकार पर केवल बयानों के विकास का ढोल पीटने की बात कर रहा है और सत्ता पक्ष वाले कह रहे हैं कि विपक्ष झूठ बोल रहा है। हकीकत क्या है अस्पतालों की यह रिपोर्ट बताती है।