
Politics before chirags entry in bihar assembly elections
पटना(ब्यूरो)। बिहार में इस साल चुनाव होने हैं। सी वोटर ने चुनाव से पहले जो सर्वे जारी किया है उसमें नीतीश की लोकप्रियता घटी है। तेजस्वी यादव को बिहार के लोग मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। नीतीश दूसरे नम्बर पर हैं। जबकि चराग पासवान तीसरे नम्बर पर हैं। यदि चुनाव तक यही स्थिति रही तो एनडीए के लिए चुनाव परिणाम ठीक नहीं रहेगा। वहीं चराग पासवान का यह कहना कि वो केन्द्र को कम समय देना चाहते हैं। बिहार उनक पहली पसंद है। जाहिर है दलित वोटरों के बीच चराग पासवान लोकप्रिय हैं। बिहार में दलित वोटर 20 फीसदी है। बिहार की 243 सीट में 38 सीट दलित समुदाय के लिए आरक्षित है। नीतन राम मांझी की पार्टी अवाम मोर्चा भी एनडीए के साथ है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चराग पासवान यदि विधान सभा चुनाव लड़े तो किसे नुकसान होगा। एनडीए या फिर जदयू को। इसलिए कि नीतीश से चराग पासवान की जमती नहीं है। वहीं दलित युवा चेहरा चराग पासवान बिहार में सिर्फ यही हैं। चराग पासवान का हाल में एक इंटरव्यूह आया है जिसमें वो कह रहे हैं कि मेरी राजनीति की बुनियाद बिहार फस्ट बिहारी फस्ट है। जाहिर सी बात है कि चराग पासवान बिहार विधान सभा में सक्रिय हुए तो चुनाव के नम्बर बदल सकते हैं।
चिराग की पहचान युवा दलित चेहरे की
बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होने के संकेत मिल रहे हैं। एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने कहा है कि पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान को बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहिए। पार्टी के बयान को विपक्षी महागठबंधन के लिए भी एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि चिराग पासवान की पहचान युवा और दलित चेहरे की है।
‘बिहार फस्ट बिहारी फस्ट
खुद चिराग पासवान ने भी हाल ही में एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वह बिहार पर फोकस करना चाहते हैं और केंद्र में ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहते। पासवान ने कहा था, “मेरी राजनीति की बुनियाद ‘बिहार फस्ट बिहारी फस्ट’ पर आधारित है। मेरा राज्य मुझे बुला रहा है। मेरे पिता रामविलास पासवान केंद्रीय राजनीति में ज्यादा सक्रिय थे लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता बिहार है। मैं केंद्र में लंबे वक्त तक नहीं रह सकता।”पासवान का यह बयान सामने आने के बाद से ही बिहार के विधानसभा चुनाव को लेकर उनकी राजनीतिक सक्रियता बढ़ने की अटकलें लगाई जा रही थीं लेकिन अब The Hindu से बात करते हुए उनकी पार्टी के सांसद अरुण भारती ने इसका समर्थन किया है।
चराग ने नीतीश को खसीटा था
चिराग का यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था और जदयू को भारी नुकसान पहुंचाया था । उस समय चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ तीखा हमला बोला था और उनकी नल-जल योजना में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे । हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग ने एनडीए के साथ गठबंधन किया और उनकी पार्टी ने पांच सीटों पर 100% स्ट्राइक रेट के साथ जीत हासिल की । यह प्रदर्शन उनकी सियासी ताकत को दर्शाता है, और यही वजह है कि उनका ताजा बयान एनडीए के अन्य सहयोगियों, खासकर जदयू और बीजेपी, के लिए चिंता का सबब बन सकता है।

राज्य की दिशा तय करेगा
अरुण भारती ने अखबार के साथ बातचीत में कहा कि विधानसभा चुनाव लड़कर बिहार की राजनीति में आने का यह सही वक्त है क्योंकि चिराग पासवान ने हमेशा ‘बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट’ अभियान पर ही ध्यान केंद्रित किया है। पार्टी सांसद ने कहा कि कार्यकर्ता भी चाहते हैं कि चिराग पासवान बिहार में अधिक समय बिताएं और यहां की राजनीति में सक्रियता बढ़ाएं।अरुण भारती चिराग पासवान के रिश्तेदार भी हैं। उन्होंने कहा कि बिहार का विधानसभा चुनाव न केवल राज्य की सरकार का चुनाव होगा बल्कि यह अगले 25 सालों के लिए भी इस राज्य की दिशा तय करेगा।
बिहार चुनाव में कितना असर होगा
अगर चिराग पासवान विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो इससे राज्य की राजनीति में बदले हुए समीकरण दिखाई दे सकते हैं क्योंकि एनडीए की सरकार को हटाने के लिए महागठबंधन भी बड़ी चुनौती पेश करने जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था लेकिन इस बार वह एनडीए के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं।बिहार में एनडीए के पास लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अलावा एक और बड़े दलित नेता पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का समर्थन है। यह माना जाता है कि चिराग पासवान के साथ दलित समुदाय के पासवान/दुसाध मतदाताओं का अच्छा समर्थन है। बिहार में इस समुदाय की आबादी 5.3 प्रतिशत है। जबकि तीन प्रतिशत से ज्यादा आबादी वाले मुसहर मतदाताओं पर जीतन राम मांझी की अच्छी पकड़ है।
दलित वोट पर कब्जे की होड़
बिहार में दलित समुदाय की आबादी 20% के आसपास है और इतने बड़े वोट बैंक को अपने साथ लाने के लिए एनडीए और महागठबंधन पूरी ताकत लगा रहे हैं। कांग्रेस ने इसे देखते हुए ही दलित समाज से आने वाले राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।बीजेपी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती को लेकर कई आयोजन कर रही है तो जेडीयू ने भी दलित समाज को लेकर हाल ही में कई कार्यक्रम किए हैं। 243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में 38 सीटें दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं।