
Patire to make new political land
नई दिल्ली।(रमेश तिवारी ‘रिपु’)। वो कौन सी वजह है कि नयी सियासी जमीन बनाने की पैतरेबाजी डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ला को करनी पड़ रही है। डिप्टी सी.एम. हैं प्रदेश के। स्वास्थ्य मंत्री हैं। यह विभाग बहुत बड़ा है। बजट भी खूब है। उनकी सियासत बेचैन या फिर वो स्वयं बेचैन हैं, डिप्टी सीएम बनकर। स्वास्थ्य विभाग उनकी पसंद का विभाग नहीं है। दूसरी बात डिप्टी सी.एम. हैं,लेकिन सी.एम. से पटरी नहीं बैठ रही है। इसलिए वो अपना सियासत का कद बढ़ाने के लिए संगठन की बागडोर अपने हाथ में लेना चाहते हैं। उन्हें लगता है प्रदेश अध्यक्ष बनने से पूरे प्रदेश का नेतृत्व करेंगे ही साथ ही प्रदेश की बीजेपी उनके शिकंजे में रहेगी। इसलिए वो अमितशाह से पहले ही मिल चुके हैं। रही सही कसर वो पी.एम. मोदी से मिलकर दिग्गजों की जंग में आगे निकलने का सियासी कदम बढ़ाया है।
इसलिए बीजेपी अध्यक्ष सामान्य वर्ग से
दिल्ली विधान सभा चुनाव का परिणाम आने के बाद मध्यप्रदेश में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष तय होगा। देखा जाए तो सन् 2003 से यदि प्रदेश का सीएम ओबीसी हुआ तो प्रदेश अध्यक्ष सामान्य वर्ग से हुआ है। यदि बीजेपी के सियासी कैनवास पर यही तस्वीर बनने की परंपरा नहीं बदली तो सामान्य वर्ग का प्रदेश अध्यक्ष होगा। वैसे इस समय बीजेपी दलित सियासी इतिहास लिखने में कुछ ज्यादा ही उत्साहित है। लेकिन छत्तीसगढ़ की तस्वीर से एक बात साफ है कि इस बार मध्यप्रदेश का बीजेपी अध्यक्ष सामान्य वर्ग का होगा। सियासत की अन्य बातें समान रहने की स्थिति में।
फार्मूला मध्य प्रदेश में
इतिहास के बहरे पन्ने बताते हैं कि 2003 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से ही बीजेपी ने एक फार्मूला मध्य प्रदेश में अपनाया है। पार्टी सीएम का पद ओबीसी वर्ग के देती आई है। 2003 के बाद से उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चैहान और अब मोहन यादव चारों नेता ओबीसी वर्ग वाले हैं। जिन्हें बीजेपी ने सीएम बनाया है। वहीं इन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में बीजेपी के संगठन की कमान सवर्ण वर्ग के नेताओं को पास रही है। 2003 के बाद बीजेपी ने कैलाश जोशी, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, नंदकुमार सिंह चैहान, राकेश सिंह और फिर वीडी शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। यह सभी नेता सवर्ण वर्ग से आते है। जाहिर सी बात है ऐसे में सर्वण वर्ग का नेता ही प्रदेश अध्यक्ष इस बार भी होगा।
फार्मूला बदला नहीं
बीजेपी ने मध्य प्रदेश के 62 जिलाध्यक्षों के चयन में भी यही फार्मूला अपनाया है। 62 में से 29 जिला अध्यक्ष सवर्ण वर्ग से हैं तो इसके बाद ओबीसी, एससी और एसटी को पद दिया गया है। ऐसे में बीजेपी आगे भी यही फार्मूला बनाए रखने पर काम कर सकती है।इसलिए प्रदेश अध्यक्ष की रेस में ज्यादातर नाम इसी वर्ग से आ रहे हैं।
दिल्ली में चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष के दावेदारों में शुमार डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल ने दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की। ब्राह्मण वर्ग के नेताओं में राजेन्द्र शुक्ल का नाम तेजी से चल रहा है। शुक्ल के अलावा पूर्व गृह मंत्री डाॅ नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, रामेश्वर शर्मा, आलोक शर्मा, अर्चना चिटनीस, आशीष दुबे प्रदेश अध्यक्ष की रेस में शामिल हैं।
चार सौ प्रतिनिधियों की सूची बनी
प्रदेश अध्यक्ष को लेकर पार्टी में सियासी प्रक्रिया शुरू हो गयी है। भोपाल में तीन दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में भाग लेने वाले प्रदेश प्रतिनिधियों की सूची बनने की प्रक्रिया पर गहन विचार चला।प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने लंबी बैठक की। प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में 400 से ज्यादा प्रतिनिधि भाग लेंगे। इनमें 4 सांसद, 16 विधायक और 230 विधानसभाओं से एक-एक प्रतिनिधि के अलावा दो-दो विधानसभाओं के क्लस्टर का एक प्रतिनिधि हिस्सा लेगा। यदि किसी जिले में तीन, पांच या सात विधानसभाएं हैं। तो दो-दो विधानसभाओं के क्लस्टर बनने के बाद बची सिंगल विधानसभा को एक अलग क्लस्टर मानकर प्रदेश प्रतिनिधि चुना गया। ऐसे प्रदेश भर से अब तक 400 से ज्यादा प्रतिनिधियों की लिस्ट तैयार हुई है।
प्रदेश अध्यक्ष को लेकर दो स्थितियां
एमपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव कराने के लिए केन्द्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पर्यवेक्षक बनाया गया है। वैसे प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव सात फरवरी को जाना था। लेकिन दिल्ली विधान सभा चुनाव का परिणाम आने के बाद ही इसे अतिम रूप दिये जाने की संभावना है। अनुमान है कि 12 फरवारी के आस पास प्रदेश को नया बीजेपी अध्यक्ष मिल जाएगा।
नफा और नुकसान
सीएम डाॅ मोहन यादव की पहली पसंद बैतुल के विधायक हेमंत खंडेलवाल है। उनकी राय ली गयी तो वो इन्हीं का नाम आगे करेंगे। संघ भी हेमंत के पक्ष में है। यह माना जा रहा है कि बीजेपी हाई कमान इस मामले में किसी से राय नहीं लेगा। राजेन्द्र शुक्ला के प्रदेश अध्यक्ष बनने से उन्हें कितना नफा होगा और कितना नुकसान यह सबसे बड़ा सवाल है। इसलिए कि छत्तीसगढ़ में बृजमोहन अग्रवाल मंत्री थे। उन्हें पार्टी कमान सांसद बनाकर बिठा दिया। सुनील सांसद थे उन्हें विधायक बनाकर बिठा दिया। विष्णु देव साय मंत्रिमंडल के विस्तार में सुनील को जगह मिलेगी इसमें संदेह है। बृजमोहन को सांसद बनाने का क्या तुक और सुनील को विधायक बनाने का क्या तुक, यह किसी के गले नहीं उतर रहा है। बृजमोहन अग्रवाल को एक तरीके से डिमोशन हो गया। केन्द्र में मंत्री बनते तो बात कुछ और होती। राजेन्द्र शुक्ला को लगता है कि प्रदेश अघ्यक्ष बन जाने पर उनके लिए सीएम का रास्ता साफ हो जाएगा। उस समय की सियासी तस्वीर क्या बनती है,कुछ कहा नहीं जा सकता। राजेन्द्र शुक्ल प्रदेश अध्यक्ष के बहाने केन्द्र में जाना चाहते हैं तो यह अलग मामला है। यदि प्रदेश अध्यक्ष बन गए तो उन्हें अगली बार विधायक की टिकट नहीं मिलेगी। लोकसभा की टिकट मिलने की संभावना ज्यादा रहेगी।
ठाकुर नेता की दावेदारी कमजोर
बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में क्षत्रिय वर्ग के नेता किरण देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य एम.पी में क्षत्रिय वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना बहुत कम है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पूर्व मंत्री अरविंद भदौरिया और बृजेन्द्र प्रताप सिंह बनना चाहते हैं।लेकिन उनके नाम पर सहमति बनेगी इसकी संभावना कम है।
फग्गन की दावेदारी कमजोर नहीं
प्रदेश में सियासी गणित के मुताकिब 22 फीसदी आदिवासी वोटर है।विधानसभा की 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से 51 सीटें ही बीजेपी के पास हैं। एमपी में 5 बार से बीजेपी की सरकार होने के बावजूद आदिवासी क्षेत्रों में पकड़ कांग्रेस की तुलना में कमजोर है। कांग्रेस की पकड़ आदिवासियों पर ढीली करने की बात आई तभी फग्गन सिंह कुलस्ते को प्रदेश बनाने की पहल हो सकती है। वैसे संघ की नजर में फग्गन के अलावा खरगोन सांसद गजेंद्र सिंह पटेल भी हैं।
अंबेडकरवाद की राजनीति
राहुल गांधी ने अबेंडकर मामले में अमित शाह को संसद में घेरा था। विपक्ष इस समय अंबेडकरवाद की राजनीति कुछ ज्यादा ही कर रहा है। महू में 27 जनवरी को कांग्रेस लीडरशिप ने जय भीम,जय बापू, जय संविधान रैली का आयोजन किया। इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी सहित देश भर के दिग्गज कांग्रेसी नेता जुटे और बीजेपी पर हमला बोला।अंबेडकरवाद की राजनीति को देखते हुए बीजेपी दलित वर्ग को तवज्जो देने की सोची तो बीजेपी एससी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य या नरयावली विधायक प्रदीप लारिया पर विचार कर सकती है।
बावजूद इसके इस बार सर्वण नेता जिस तरह प्रदेश अध्यक्ष बनने की सियासी तिकड़म कर रहे हैं,उससे यही लगता है कि कोई सवर्ण नेता ही प्रदेश अध्यक्ष बनेगा। राजेन्द्र शुक्ला की दावेदारी विंध्य के लोग सबसे प्रबल मान रहे हैं।