
Parsais height and range is very big-dr tripathi

राष्ट्रमत न्यूज,रीवा(ब्यूरो)। सबसे ज़्यादा प्रासंगिक लेखक हरिशंकर परसाई जी की स्मृति में ”परसाई जी का पुण्य स्मरण” विषय पर एक रचनात्मक गोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ आलोचक, व्यंग्यकार प्रो. सेवाराम त्रिपाठी के निवास शिल्पी उपवन, अनन्तपुर, रीवा में 31 अगस्त 2025 को किया गया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कहानीकार सुश्री सपना सिंह ने की । कार्यक्रम की शुरूआत हरिशंकर परसाई के व्यंग्य लेख -‘टार्च बेचने वाला’ के वाचन से हुई ।

परसाई का समूचा लेखन व्यंग्य नहीं है
गोष्ठी के प्रमुख वक्ता के रूप में हरिशंकर परसाई के सहयोगी रहे मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के वर्तमान अध्यक्ष डाॅ. सेवाराम त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में कहा कि-”परसाई का कद और रेंज बहुत बड़ा है । परसाई जी को केवल व्यंग्यकार कहना उनके कद को छोटा करना है, यह उनकी अवमानना है । परसाई ने लगभग सभी विधाओं में लेखन किया है । उनके लेखन में व्यंग्य है, लेकिन उनका समूचा लेखन व्यंग्य नहीं है । परसाई जी को मध्यवर्ग का लेखक बताते हुए प्रो.त्रिपाठी ने कहा कि परसाई की नज़र और नज़रिया दोनों ही अलग थी । समाज की हर विसंगति से वे विषय वस्तु तैयार कर लेखन करते थे । वे विसंगतियों को बहुत गहराई से पकड़ते थे । परसाई एक निर्भय लेखक थे । परसाई एक दिन में परसाई नहीं बने, उनके सतत लेखन और विषय पर उनकी स्पष्ट दृष्टि ने उन्हें परसाई बनाया ।
छोटे छोटे व्यंग्य के स्ट्रोक्स
वरिष्ठ पत्रकार एंव लेखक रमेश कुमार ‘रिपु’ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि परसाई ने व्यंग्य को विधा के रूप में विकसित करने का कार्य किया । हरिशंकर परसाई के लेखन में छोटे छोटे व्यंग्य के स्ट्रोक्स हैं।जो सामाजिक विसंगतियों पर वार करते हैं। उन्होंने समाज के हर विषय पर लिखा। कोई भी विषय अछूता नहीं रहा। सियातस पर चुटकी ली। कुर्सी वालों पर कटाछ किया। नेताओं की करतूतों को उजागर किया। उनके लेखन में कही कहीं लोकाक्ति और सुक्तिनुमा व्यंग्य विधान है। जैसा कि हम सभी कहते हैं जूते मारे लेकिन परसाई जी इसी बात को अपने तरीके से कहते है,जूते खाए। उन्होंने अखबारों में अलग अलग नाम से कालम लिखे,उनके कालम इतने चर्चित हुए कि लोग ढूंढ कर पढ़ने लगे थे।
वैज्ञानिक सोच से अनुप्राणित थे
प्रगतिशील लेखक संघ रीवा इकाई के अध्यक्ष डॉ. लालजी गौतम ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यंग्य आत्मा की तरह लेखन में रहता है । व्यंग्य किसी हास्य विनोद के लिए नहीं अपितु बड़ी पीड़ा से लिखा जाता है । परसाई ने साहित्य की हर विधा पर अपनी लेखनी चलाई है । विश्व साहित्य का जितना अध्ययन परसाई ने किया है शायद ही इतना अध्ययन किसी अन्य भारतीय साहित्यकार ने किया हो । परसाई विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक सोच से अनुप्राणित थे । वे जो कहते थे, वो व्यवहार करते थे, और वही करते भी थे । समाज की शायद ऐसी कोई विसंगति नहीं बची जिस पर उन्होंने लेखन न किया हो । परसाई अत्यंत गंभीर और अध्ययन विषयी लेखक थे ।
बौद्धिक आयोजनो में युवाओं को जोड़ें
वरिष्ठ पत्रकार मुकुन्द प्रसाद मिश्र ने संगोष्ठियों की परंपरा के क्षरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक सामाजिक चिंता का विषय है कि साहित्य और संगोष्ठियों से आज का युवा दूर हो रहा है । इन बौद्धिक आयोजनों में हमें युवाओं को जोड़ना होगा ।समाजसेवी डॉ. देवेन्द्र सिंह ने परसाई को याद करते हुए कहा कि परसाई ने व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों की खबर ली है ।
परसाई एक कालजयी लेखक है
कार्यक्रम में सहभागिता कर रहे समाजशास्त्र के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. महेश शुक्ल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि परसाई ने गद्य विधा में जीवन के मर्म को समझा और अपने साहित्य में उसे स्थान दिया । गंभीर बातों को लेकर परसाई का लेखन और दृष्टि बिल्कुल स्पष्ट थी । परसाई एक कालजयी लेखक है, जो अपने साहित्य के माध्यम से अमर रहेंगेे।

शोध के साथ लेखन करते थे
प्रलेस इकाई, रीवा के महासचिव डॉ.बृजेश त्रिपाठी ने परसाई के अवदान पर चर्चा करते हुए कहा कि परसाई तर्कसंगत, विवेक संगत और विषय पर पूरे शोध के साथ लेखन करते थे । अपने लेखन में परसाई ने पौराणिक पात्रों के माध्यम से अपनी बात कही है । पाठक द्वारा परसाई के लेखन में अपने आपको महसूस करना परसाई की सफलता है ।
कार्यक्रम के अंत में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सुश्री सपना सिंह ने कहा कि परसाई का कद बहुत बड़ा है । परसाई के व्यंग्य कहने का ढंग अनोखा था । ये हमारा दायित्व है कि हम आज केे समाज को परसाई के लेखन से जोड़ेे । परसाई हमारे लिए सदैव प्रासंगिक रहेंगे । इस अवसर पर डॉ. संदीप तिवारी भी उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन डॉ. लालजी गौतम व आभार प्रदर्शन डॉ. बृजेश त्रिपाठी ने किया ।