
Paddy is drunk ,so thirsty remains thiesty balaghat
बालाघाट(रफी अंसारी)। इन दिनों बालाघाट जिले में जल संकट लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हर साल जिस तरह से भूजल में गिरावट हो रही है, वह चिंता का विषय है। वाटर लेवल में गिरावट के पीछे बढ़ती हुई बोर की संख्या और अधिकाधिक रूप में होने वाली रबी में धान की फसल है। गर्मी के दिनों में होने वाली धान की खेती में सबसे अधिक पानी की बबार्दी हो रही है। देखा जाए तो हर साल लाखों लीटर पानी केवल धान के खेत पी जाते हैं। इसलिए बालाघाट जिला प्यासा रह जाता है।पीएचई मंत्रीसमपतिया उईके गत दिनो दो टुक कहा कि किसान उतनी ही फसल लगाएं जितनी जरूरत है। ताकि जल संकट न हो।
एक हेक्टेयर धान 13 लाख का पी जाते हैं पानी
कृषि विभाग के आंकड़े बताते है कि ढाई एकड़ खेत में 42 क्विंटल धान उपजाने के लिए 50 लाख लीटर पानी का उपयोग होता है। इसका मतलब अगर जल की कीमत प्रति लीटर 25 पैसे भी हो तो एक हेक्टेयर में लगभग 13 लाख रुपए का पानी लग जाता है। जबकि उपज होने वाले धान की कीमत सिर्फ 42 हजार रुपए ही है। जो आंकडे़ के अनुसार घाटे का सौदा है।
किसान बोर और कुंए के भरोसे
जिले में लगभग 30 हजार ऐसे किसान है जो लगभग 35 हजार हेक्टेयर जमीन पर रबी के सीजन में धान की फसल लगाते है। जहां फसल की सिंचाई के लिये नहर, तालाब और भूगर्भ से ही पानी निकाला जाता है। सबसे अधिक पानी की बबार्दी खेतों को सिंचित करने के नाम पर बोर से हो रही है। जानकारों के मुताबिक 5 एचपी के बोर से एक घंटे में 40 हजार लीटर पानी निकलता है। खास बात तो यह है कि इतने बड़े भूभाग में सिंचाई करने के लिए जिले के अधिकांश किसान केवल बोर और कुंए पर ही निर्भर है। बोर के अधिकाधिक इस्तेमाल होने से ही भूजल जल में लगातार गिरावट हो रही है। मौजूदा समय में जलस्तर कुछ क्षेत्रों में गहराता जा रहा है। सबसे अधिक खराब स्थिति जिले के बैहर, बिरसा और पठार क्षेत्र की है। यही वजह है कि इन क्षेत्रों में धान की खेती भी सबसे कम होती है। रबी फसल के चलते संबंधित क्षेत्रों में गर्मी की शुरूआत होते ही पानी विकराल समस्या बनकर सामने आती है।
सब्जी में फायदा ज्यादा
एक एकड़ खेत में औसतन 20 क्विंटल धान की उपज होती है। बाजार भाव प्रति क्विंटल 1400 रूपये है। जिले में पर्यावरणविदों का मानना है कि किसान अगर इस पानी का उपयोग सब्जी या अन्य फायदेमंद फसलों के उत्पादन के लिए करें तो बेहतर होगा। जिले में धान का पर्याप्त उत्पादन खरीब फसल से ही हो जाता है। रबी की फसल में धान का उत्पादन आवश्यक नही है। इस पर विचार कर शासन को भी कुछ नीति बनानी चाहिए। यदि रबी में धान की फसल लगाने पर पाबंदी नहीं होगी तो पानी की कमी खलते रहेगी और हर साल जल संकट बढ़ता जायेगा। गर्मी के दिनों में प्रति व्यक्ति पानी की खपत 130 लीटर है। एक हेक्टेयर में 50 लाख लीटर पानी की जरूरत होती है और जिले में लगभग 35 हजार हेक्टेयर भूमि पर किसानों ने रबी की फसल लगाई है। इसके लिए अरबों लीटर भूजल का दोहन किया जाता है और जलस्तर के घटने की यह ही एक मात्र प्रमुख वजह है। वही दूसरा बडा कारण नदियों से भारी मात्रा में रेत का उत्खनन भी शामिल है।
धान के प्रति मोह ज्यादा
अक्सर देखा जा रहा है कि जिले में जब भी रबी का सीजन आता है, किसान धान की फसल उगाने के लिये बेताब हो जाते हंै। यही वजह है कि हर साल रबी के सीजन में धान की फसल का रकबा बढते ही जाता है। पिछले पांच सालों की बात करे तो आंकड़ा चिंता मे डाल रहा है। वर्ष 2020-21 में 34775 हेक्टेयर भूमि में रबी लगाई गई थी। उसके बाद रकबे का आंकड़ा कम हुआ। जहां 2021-22 में 28710 हेक्टेयर पर आ गया। लेकिन वर्ष 2022-23 से लगातार रबी में धान की फसल लगाने का रकबा बढ़ रहा है। वर्ष 2021-22 में 28710 हेक्टेयर, 2022-23 में 24641 हेक्टेयर,2023-24 में 33253 हेक्टेयर और 2024-25 में 32133 हेक्टेयर तक आ पहुंचा है। जिस कारण जिले के सभी विकासखंडो में जलस्तर निंरतर घट रहा है। सबसे ज्यादा हर साल लांजी, किरनापुर, बालाघाट, वारासिवनी और लालबर्रा क्षेत्र के किसान रबी की फसल लगाते है। इस वर्ष सबसे अधिक लांजी और किरनापुर के किसानो ने रबी में धान की फसल लगाई है।
6 टंकियों में इतनी है पानी की क्षमता
नगरीय क्षेत्र में जलापूर्ति को निर्बाध रूप से चलाने के लिए 6 पानी की टंकियां है। जिसमें बूढ़ी टंकी 18 सौ केएल (प्रति केएल एक हजार लीटर), एमएलबी 18 सौ केएल, इतवारी बाजार साढ़े 8 सौ केएल, गायखुरी साढ़े 7 सौ केएल, बैहर रोड 11 सौ केएल और सरेखा की पानी टंकी की क्षमता साढ़े चार सौ केएल की है। जिसके माध्यम से नगरपालिका, नगरीय क्षेत्र में जलापूर्ति करती है, इसके अलावा शहरो में कई घरों में कूप भी है। जिसका उपयोग, परिवार के लोग, पानी आपूर्ति में करते हैं।