
Our silence can be dangerous - jagdeep
नई दिल्ली (ब्यूरो)। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की तो उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही की मांग देश में की जा रही है। इस बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि हमारी चुप्पी खतरनाक हो सकती है। यह जान लीजिये कि संसद ही सुप्रीम है।
अवमानना की कार्यवाही की मांग
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट को लेकर की गई टिप्पणी पर देशभर में हंगामा मचा हुआ है। विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही करने की मांग की है। इस बीच, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने टिप्पणी की है कि संसद सुप्रीम है।उन्होंने कहा, “हमारी चुप्पी बहुत खतरनाक हो सकती है। विचारवान लोगों को हमारी विरासत को संरक्षित करने में योगदान देना होगा। हम किसी को संस्थानों को कमजोर करने या लोगों को बदनाम करने की अनुमति नहीं दे सकते। संवैधानिक प्राधिकारी का हर शब्द संविधान द्वारा निर्देशित होता है।”
उनसे ऊपर कोई अथॉरिटी नहीं
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा, “हमें अपनी भारतीयता पर गर्व करना चाहिए। हमारा लोकतंत्र रुकावटों को कैसे बर्दाश्त कर सकता है? सार्वजनिक संपत्ति को जलाया जाना, सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करना। हमें इन ताकतों को कमजोर करना होगा। पहले सलाह देकर और अगर जरूरी हो तो कड़वी गोली भी देनी होगी।”उपराष्ट्रपति धनखड़ ने मंगलवार को
दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की। धनखड़ ने कहा, “संसद सुप्रीम है और निर्वाचित प्रतिनिधि (सांसद) ही संविधान के ‘ultimate masters’ हैं…उनसे ऊपर कोई अथॉरिटी नहीं हो सकती।”
संसद सर्वोच्च है
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “एक प्रधानमंत्री, जिन्होंने आपातकाल लगाया, उन्हें 1977 में जवाबदेह ठहराया गया। इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए – संविधान लोगों के लिए है और यह इसे सुरक्षित रखने का भंडार है…चुने हुए प्रतिनिधि…वे अंतिम मालिक हैं कि संविधान में क्या होगा। संविधान में संसद से ऊपर किसी भी अथॉरिटी की कल्पना नहीं की गई है। संसद सर्वोच्च है, मैं आपको बता दूं, यह देश के प्रत्येक व्यक्ति के बराबर ही सर्वोच्च है।”उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के दो विरोधाभासी बयानों का भी हवाला दिया। धनखड़ ने कहा, “एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है (गोलकनाथ मामला) और दूसरे मामले में उसने कहा कि यह संविधान का हिस्सा है (केशवानंद भारती मामला)।”