
Naxalites will have more difficulties in peace talks ahead
रायपुर।माओवादी शांति वार्ता के बहाने अपने प्रति जन समर्थन जुटाने युद्ध विराम का पत्र मीडिया में जारी किये हैं। वो वाकई में शांति वार्ता चाहते, तो एक लाइन का पत्र लिख देते कि हम युद्ध विराम की घोषणा करते हैं। वो चाहते हैं कि कांग्रेस इसे मुद्दा बनाए और उनके पक्ष में अर्बन नक्सली सामने आएं। नक्सलियों से शांति वार्ता की राह में कई मुश्किलें हैं। उनका शांति वार्ता वाला पत्र समाज की मुख्य धारा से रिश्ता जोड़ने जैसा नहीं है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को चाहिए कि वो नक्सलियों से सवाल करते कि झीरम कांड के दर्द को हम कैसे भूल सकते हैं। किसी युद्ध में एक दिन में जितने जवान नहीं मारे जाते, उतने एक ही दिन में एक सैकड़ा जवानों को नक्सलियों ने शहीद कर दिया था। उनका बयान एक तरीके से अर्बन नक्सलियों जैसा है।
अपनी कई शर्ते भी जोड़ दी
नक्सलियों की तरफ से शांति वार्ता का प्रस्ताव दिए जाने के पीछे उनकी कोई सोची समझी साजिश तो नहीं छिपी है। इसलिए कि उन्होंने शांति वार्ता के लिए जारी पत्र में एक तरफ सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए अपनी कई शर्ते भी जोड़ दी हैं। जबकि शांति वार्ता निशर्त होती है।
सरकार का प्रोपोगंडा तो नहीं- बैज
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि अगर नक्सलियों की ओर से ठोस निर्णय आया है, तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। लेकिन सवाल यह भी उठता है किए कहीं सरकार सिर्फ वाहवाही लूटने के लिए इसे प्रोपेगेंडा के रूप में तो इस्तेमाल नहीं कर रही।
नक्सली अपनी शर्ते सार्वजनिक करें
इधर उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने सरकार का पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि राज्य सरकार नक्सलियों से सार्थक वार्ता के लिए तैयार है। लेकिन इसके लिए कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। उन्होंने साफ किया कि यदि नक्सली वास्तव में मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं तो उन्हें अपने प्रतिनिधि और वार्ता की शर्तों को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना होगा। केवल पत्र से काम नहीं चलेगा। लेकिन उनके पत्रों में जो आरोप और शर्ते जोड़ा गया है वो जायज नहीं है। सरकार इस मामले पर विचार करेगी।
सरकार को निर्णय लेना चाहिए-बैज
दीपक बैज ने कहा कि, नक्सली किस स्थिति में शांति वार्ता करना चाहते हैं, उनका असल मकसद क्या है और बस्तर में शांति स्थापित करने के लिए क्या बेहतर हो सकता है। इस पर सरकार को स्पष्ट निर्णय लेना चाहिए। सरकार को यह बताना होगा कि, वह वार्ता को किस नजरिए से देख रही है। क्या यह सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश तो नहीं ?
संविधान की मान्यता जरूरी-विजय शर्मा
उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि, वार्ता का स्वरूप किसी कट्टरपंथी विचारधारा की तर्ज पर नहीं हो सकता। अगर नक्सली वार्ता चाहते हैं, तो उन्हें भारतीय संविधान की मान्यता स्वीकार करनी होगी। उन्होंने साफ किया कि, अगर नक्सली संविधान को नकारते हैं और समानांतर व्यवस्था थोपने की कोशिश करते हैं, तो वार्ता का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
सोची समझी साजिश
छत्तीसगढ़ में जिस तेजी से नक्सलियों के सफाए के लिए आपरेशन चल रहे हैं उससे नक्सली बैक फुट पर आ गए हैं। लेकिन उन्होंने शांति वार्ता की बात एक बार फिर की है। जानकारों को कहना है कि ऐसा भी हो सकता है कि नक्सली जवानों के आपरेशन को कमजोर करना चाहते हैं। ताकि वो नए सिरे से अपने संगठन को खड़ा कर सके। क्यो कि उनके पत्र में सरकार के ऊपर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। जाहिर सी बात है कि नक्सलियों का युद्ध विराम की बात एक सोची समझी साजिश का हिस्सा भी हो सकता है।
नक्सलियों की शर्तें और आरोप
नक्सलियों की शीर्ष इकाई सीपीआई (माओवादी) केंद्रीय समिति ने भारत सरकार को एक पत्र लिखकर संघर्ष विराम और शांति वार्ता की पेशकश की है। इस पत्र में ऑपरेशन कगार को तत्काल रोकने, सुरक्षा बलों की वापसी और वार्ता के लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं।
शांति वार्ता और संघर्ष विराम की अपील
- माओवादी संगठन ने मध्य भारत में जारी सशस्त्र संघर्ष को तत्काल रोकने की मांग की है।
- भारत सरकार और सीपीआई (माओवादी) दोनों को बिना शर्त संघर्ष विराम के लिए सहमत होने को कहा गया है।
‘ऑपरेशन कगार’ पर आपत्ति
- भाजपा सरकार की तरफ से शुरू किए गए ऑपरेशन कगार को उग्रवाद विरोधी आक्रामक अभियान बताया गया है, जिसमें माओवादी प्रभावित क्षेत्रों को निशाना बनाया जा रहा है।
- इस ऑपरेशन के कारण बड़े पैमाने पर हिंसा, गिरफ्तारियां और हत्याएं होने का दावा किया गया है।
मानवाधिकार का आरोप
- 400 से अधिक माओवादी नेताओं, कार्यकर्ताओं और आदिवासी नागरिकों के मारे जाने का आरोप।
- महिला माओवादियों के साथ कथित तौर पर यौन हिंसा और फांसी देने का दावा किया गया है।
- बड़ी संख्या में नागरिकों की अवैध गिरफ्तारी और यातना देने का आरोप।
शांति वार्ता के लिए नक्सलियों की शर्तें
माओवादी प्रभावित जनजातीय क्षेत्रों से सुरक्षा बलों की तत्काल वापसी। नए सैनिकों की तैनाती पर रोक। भविष्य में कोई सैन्य विस्तार न किया जाए। उग्रवाद विरोधी अभियानों को निलंबित किया जाए।
सरकार पर आरोप
- आदिवासियों के खिलाफ “नरसंहार युद्ध” छेड़ने का आरोप।
- नागरिक इलाकों में सैन्य बलों के इस्तेमाल को असंवैधानिक करार दिया गया।
माओवादियों की अपील
- बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार संगठनों, पत्रकारों, छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं से सरकार पर शांति वार्ता के लिए दबाव बनाने का आह्वान।
- वार्ता के समर्थन में राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की अपील।
- अभी वार्ता को तैयार नहीं होंगे
नक्सलियों के उक्त आरोप और शर्तो से जाहिर सी बात है कि माओवादी लीडर अभी छत्तीसगढ़ में इतनी जल्दी सरेंडर नहीं करेंगे। वो वार्ता भी नहीं करेंगे। उन्होंने मानवाधिकार की बात की है। जाहिर सी बात है वो चाहते हैं सरकार पर मानवाधिकार आयोग दबाव बनाए। नक्सलियों को जिस तरह सफाया करने आपरेशन चलाया जा रहा है उसे वो जायज नहीं ठहरा रहे हैं। हंट नहीं हंटर की रणनीति को कमजोर करने माओवादियो के युद्ध विराम का पत्र एक सोची समझी साजिश है। यदि वो युद्ध विराम के पक्षधर होते तो अपने पत्र में खुलासा करते कि वो कब बातचीत करना चाहते हैं। कुछ खुलासा करते। एक भटकाव की उनकी राजनीतिक चाल है।