
Naxalite ask for food and police answers..what should we do sir..
राष्ट्रमत न्यूज,बालाघाट(ब्यूरो)। जिले के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र दक्षिण बैहर के आदिवासियों के समक्ष दो समस्या है। दोनों समस्या नक्सलियों से जुड़ी हुई है। नक्सली बंदूक दिखाकर खाने मांगते हैं। उन्हें दें या फिर पुलिस से बचने के लिए न कह दें। न कहने का मतलब नक्सलियों की नाराजगी का निशाना बनना। यानी एक तरफ पुलिस का खौफ दूसरी तरफ नक्सलियों की दहशत। आदिवासी मजबूर हैं। विवश हैं। नक्सलियों की मदद करना उनकी मजबूरी है। जबकि सभी चाहते हैं नक्सलियों से छुटकारा।
हमारी मजबूरी को भी समझें
दक्षिण बैहर के आदिवासियों ने अपनी पीड़ा खुलकर मीडिया के समक्ष बयां की। जब से बिलाल कसा के अशोक टेकाम को पुलिस ने नक्सलियों का मददगार के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डाल दी है। तब से गांवों वाले दुविधा में है। पुलिस की बात मानें या फिर नक्सलियों की। ग्रामीणों का कहना है कि, हम सभी चाहते हैं कि नक्सलवाद खत्म हो। लेकिन प्रशासन हमारी मजबूरी को भी समझे। हम लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले सोचे।
पुलिस के पास प्रमाण नहीं
राष्ट्रमत के ब्यूरो रफीक अंसारी बालाघाट से 120 किलोमीटर दूर दक्षिण बैहर के गांव बिलालकसा जाकर आदिवासियों से बात की, अशोक टेकाम की गिरफ्तारी को लेकर क्या सोचते हो? आदिवासी समाज नाराज है। गुस्से में है। पुलिस की कार्रवाई से केवल संशय में ही नहीं है बल्कि, उनके पास सवाल है। वो अपने सवाल का जवाब चाहता हैं प्रशासन से। पुलिस से। अशोक टेकाम को नक्सलियों का मददगार होने के संदेह पर पुलिस उसे उठा ले गयी। जबकि पुलिस के पास कोई पुख्ता प्रमाण नहंी है कि अशोक टेकाम नक्सलियों का मददगार है। वो तो मजदूर है। दड़कसा गांव के सरपंच फूलसिंह मेरावी और गांव के जागरूक युवक महेश टेकाम ने मीडिया से अपनी बात कही।
सबके सामने बंदूक का डर
सरपंच ने बताया कि नक्सली बहुत पहले आते थे। लेकिन अब साल में एक -दो बार ही आते हैं। उसका कारण हैं कि अब यह क्षेत्र में पुलिस चैकी लग गई हैं। वे लोग नक्सलियों की गतिविधियां के बारे में नहीं जानते। नक्सली गांव में किसी के घर आ कर जोर जबरदस्ती से खाना मांगते है तो बंदूक के डर से देना पड़ता है। जबकि गांव का कोई भी व्यक्ति नक्सलियों का मददगार नहीं है। और पुलिस है कि हमें नक्सलियों की मदद किये जाने के नाम पर धमकाती है।
हम दोनों तरफ से पिस रहे
पंच महेश कुमार टेकाम ने कहा कि हम लोग दोनों ओर से पीस रहें हैं। नक्सलियों को खाना ना दे तो हमारी जान पर बन आती हैं। और खाना दे तो पुलिस सवाल-जवाब करती हैं। हम तो खुशी-खुशी जीवन जी रहें थे। लेकिन अब हम दोनों ओर से पीस रहें हैं। प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए और हम गरीब आदिवासियों की मजबूरी को समझना चाहिए। उसी का खामियाजा पंच अशोक टेकाम को भुगतना पड़ा हैं।
अशोक टेकाम को मिली जमानत
अशोक टेकाम को 23 मई को पुलिस नक्सलियो के मददगार के बतौर गिरफ्तारक जेल में डाल दी थी। जेल से छूटने पर अशोक टेकाम ने बताया कि जिस दिन गांव के जंगल में पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई थीं।उस दिन मेरी लडकी का रिजल्ट निकला था। वो दो विषय में फेल हो गई थी। उस दिन मैं लाजी चला गया था। और पुलिस मेरे खिलाफ झूठा मामला बना कर गिरफ्तार कर ले गयी।