
Naxalite ammunition is spreading quietly in vindhy
- रीवा।(रमेश तिवारी ‘रिपु’)। जिले के तराई अंचल कभी डकैतों के कब्जे में थे। अब वहां नक्सली अपना पैर जमाने की फिराक में है। छत्तीसगढ़ के नक्सली वहां से निकल कर नया ठिकाना बनाने में लगे हैं। सीधी के माड़ा जंगल में नक्सलियों के कैंप बहुत पहले से चल रहे हैं। डिंडौरी,बालाघाट,शहडोल नक्सलियों की शरण स्थली हैं ही। नक्सली अब गरीब,आदिवासी, बैगा, भारिया, बेड़िया, बंजारा, बिरहोर,भूमिज और सहरिया जाती के लोगों को समझाने में लग गए है कि सरकार और नेताओं के भरोसे रहोगे तो कुछ नहीं होगा। बहुत जरूरी है कि अपनी मांगे मनवाने के लिए माओवाद सिद्धांत को अपनाना। नक्सली साहित्य वितरित किये जा रहे हैं। जंगलों में नक्सली कैंप चल रहे हैं।विंध्य में नक्सली बारूद सुनियोजित तरीके से फैलाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। संभवतः अगले चुनाव में कई विधान सभा में इसका असर देखने को मिले।
नक्सलियों का ठिकाना जंगल
बस्तर संभाग के आई जी सुन्दरराज पी.कहते हैं छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। बस्तर में अब पहले जैसी नक्सलियों की स्थिति नहीं रही। कुछ माह में भारी संख्या में नक्सलियों के मारे जाने से वो अंदर तक डर गए हैं। गिनती के जो नक्सली बच गए हैं वो मध्यप्रदेश,और महाराष्ट्र की तरफ भागने लगे हैं। खबर है कि नक्सली सीधी, सिंगरौली,डिंडौरी और बलाघाट में अपना ठिकाना बना रहे हैं। जहां भी जंगल होंगे, वहां नक्सली अपना ठिकाना बनाने की कोशिश कर सकते हैं।
नये चेहरों की दस्तक
संजय टाइगर रिजर्व के माड़ा,कुसमी,कुरूच और अमरौला के जंगल के आसपास के गांव में पिछले कुछ दिनों से कुछ नए चेहरे देखने को मिले हैं। ये लोग कौन हैं, कहां से आए हैं, कोई नहीं जानता। लेकिन ये यहां के आदिवासी, बैगा, भारिया, बेड़िया, बंजारा, बिरहोर,भूमिज और सहरिया आदि जाति के लोगों से मिल रहे हैं। उनके साथ बातें करते हैं। और मांग कर खाना भी खाते हैं। अलग-अलग गुटों में ये लोग देखे जाते हैं। इनकी बोली भाषा स्थानीय नहीं है। ये स्थानीय ग्रामीणों से घुल मिल रहे हैं। उनसे बातें करते हैं। उनके साथ काम करते हैं। उनका ब्रेन वाश करने में लगे हैं। उनके पास कुछ किताबें और पाम्पलेट भी देखा गया है। आशंका है कि ये छत्तीसगढ़ से भागे नक्सली हैं। अपना नया ठिकाना बना रहे हैं। जैसा कि बस्तर के आई जी सुन्दर राज पी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के नक्सली अपना नया ठिकाना मध्यप्रदेश में बना रहे हैं,ऐसी जानकारी है। जाहिर सी बात है कि सीधी, सिंगरौली के जंगल से सटा माड़ा के जंगल को नक्सली अपना नया ठिकाना बनाने में लग गए हैं। यह जंगल छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर तक फैला हुआ है। सीधी,सिंगरौली के जंगली इलाके में नक्सली अपना कैंप चला रहे हैं।-
RURAL इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट पर भरोसा किया जाए तो आने वाले समय में सेमरिया विधान सभा के ककरेड़ी जंगल,देवतालाब विधान सभा के पहाड़ के नीचे गढ़वा,कठुवा,हर्रै हरैयी सीतापुर आदि स्थान में नक्सलियों की दस्तक हो जाएगी। त्योंथर का डभौरा, सिरमौर विधान सभा के तराई अंचल के पिछड़ी जातियों में नक्सली अपनी पैठ बनाने का काम करेंगे।
- नक्सली बारूद फैलेगा- अभय मिश्रा
- ‘‘सरकार और नेताओं की वदाखिलाफी से उब गए लोग कहां जाएंगे? ऐसे लोगों को जो इन्हें बतायेंगे कि उनकी समस्या का हल क्या है? उन्हें क्या करना चाहिए। किसका साथ देना चाहिए। बैगा, आदिवासी,बंजारा और सहरिया आदि जाति के लोग बहुत भोले भाले होते हैं। वो बहुत जल्दी दूसरों से प्रभावित हो जाते हैं। नक्सली लोग पढ़े लिखे हैं। वो आसानी से इनका ब्रेन वास कर लेंगे। आप का आकलन गलत नहीं है। अगले चुनाव में इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि नक्सली कई विधान सभा के ग्रामीण क्षेत्रों में अपना प्रभाव जमा चुके होंगे। नक्सली बारूद सरकार और स्थानीय नेताओं की वजह से विंध्य क्षेत्र में फैलेगा।’’
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- अभय मिश्रा, विधायक सेमरिया विधान सभा
- कुछ भी हो सकता है- बन्ना
‘‘ मऊगंज विधान सभा में नक्सलियों की आमद की खबर सुनने को नहीं मिली है। नक्सलियों के बारे में जैसा सुना है कि वो बैगा,आदिवासियों आदि के बीच अपनी पैठ बनाकर अपना विस्तार करते हैं। सीधी के कुसमी,कुरूच और अमरौला में छत्तीसगढ़ के नक्सली अपना ठिकाना बना रहे हैं। भविष्य में इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि मऊगंज विधान सभा के जड़कुर बहैरा और डाबर गांव में बैगा और आदिवासी हैं। नक्सली इनसे ताल मेल बना सकते हैं। अभी ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है। आप बता रहे हैं कि आईबी की रिपोर्ट में नक्सली दस्तक की आशंका व्यक्त की गयी है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार से सीआरपीएफ की दो बाटालियन मांगे हैं। यदि ऐसा है तो कुछ सच्चाई हो सकती है। मंडला,बालाघाट,शहडोल,डिंडौरी में नक्सली आमद है। यहां कई वारदात कर चुके हैं। सीधी सिंगरौली में भी। कुछ कहा नहीं जा सकता। रीवा में भी कुछ भी हो सकता है।’’ -
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- पूर्व विधायक सुखेन्द्र सिंह बन्ना
- गोंडवाना पार्टी अब दूसरी पार्टी से हाथ मिला ली है। इसलिए इस अंचल में गोंडवाना पार्टी से जुड़े लोग अपने लिए मजबूत ठिकाना ढूंढ रहे हैं। इस अंचल में भाकपा संगठन शून्य है। लेकिन उसकी विचारधारा जिंदा है।घटेहा के जंगल सन् 2007 में आदिवासियों ने सरकारी जमीन पर कब्जा करने की शुरूआत की थी। उस दौरान प्रशासन को सूचना मिली थी कि कुछ बाहरी लोगों के कहने पर ऐसा किया जा रहा है। बाद में पता चला कि इसके पीछे छत्तीसगढ़ के नक्सलियों का हाथ था। लेकिन प्रशासन ने सच्चाई क्या है, उसकी तह पर नहीं गया था। मध्यप्रदेश में नक्सली कान्हा के रास्ते बालाघाट, मंडला और डिंडौरी में दाखिल होते आए हैं। लेकिन अब नक्सलियों ने माड़ा के जंगल को सेफ जोन बना रहे हैं। इंटीलीजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री डाॅ मोहन यादव ने केन्द्र सरकार से सीआरपीएफ की दो बटालियन मांगे हैं। रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ से निकलने वाले माओवादी मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल क्षेत्रों में अपनी पैठ जमाने में लगे हैं।
वूसली का खेल यहां भी होगा
पिछले डेढ़ दशक से सीधी, सिंगरौली के जंगल से सटा माड़ा के जंगल में नक्सली आते जाते रहे हैं। लेकिन एक दशक पहले कोई बड़ी घटना नहीं की। लेकिन इन दिनांे इनकी मौजूदगी पहले जैसी नहीं है। सन् 2014 के बाद से यानी मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद से माओवादी मध्यप्रदेश में ज्यादा सक्रिय हो गये हैं। देखा जाए तो सिंगरौली में एक फैक्ट्री को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया था। सीधी और सिंगरौली के थानों में सन् 2011 से लेकर 2014 तक करीब 32 मामले दर्ज हुए। यानी नक्सली अब यहां वही काम करने की फिराक में है जो छत्तीसगढ़ में करते आए हैं। सिंगरौली ऊर्जा धानी है। यहां वो वसूली का रास्ता अपना सकते हैं। चूंकि माड़ा का जंगल छत्तीसगढ़ तक फैला हुआ है। इसलिए नक्सली इस जंगल को पुल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। यहंा नक्सली दलम-2 अपनी जड़ों को विस्तार देने में लगे हैं।
स्कूली लड़कों के आई कार्ड मिले
महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ इंटेलिजेंस के अधिकारियों के मुताबिक 40 से 50 नक्सलियों का मूवमेंट सीधी-सिंगरौली से लगे माड़ा जंगल और मंडला के कान्हा नेशनल पार्क के कोर एरिया में देखा जा रहा है। ये नये लड़कों को अपने गिरोहे में शामिल करने की कोेशिश कर रहे हैं। इसके पहले भी बलाघाट में स्कूली लड़कों की भर्ती नक्सली कर चुके हैं। पुलिस को मंडला में चार साल पहले कुछ स्कूली लड़कों के आई कार्ड मिले थे। बालाघाट जोन के आईजी संजय कुमार कहते हैं कि नक्सलियों ने साल 2015-16 में अपनी उपस्थिति दिखाई थी। लेकिन बालाघाट में नक्सलियों का मूवमेंट सन् 2019 से बढ़ना शुरू हुआ। इसी बरस जुलाई में लांजी क्षेत्र के पुजारी टोला में पुलिस और नक्सलियों की मुठभेड़ में एक महिला नक्सली सहित दो इनामी नक्सली मारे गए थे। उसके बाद 17 सितम्बर 2020 में कान्हा पार्क के बफरजोन से लगे बांधा टोला और समनापुर के जंगल में मुठभेड़ में 12 लाख रुपए का इनामी नक्सली ओसा उर्फ बादल गिरफ्तार किया गया था। नवंबर 2020 में मालखेड़ी जंगल में एक महिला नक्सली मारी गयी थी। जो कि खटिया मोर्चा दलम दो की बताई जाती है।
कई दलम सक्रिय
बालाघाट जिले में हार्डकोर नक्सलियों के तीन दलम के अलावा यहांँ और कई दलम हैं,जो माहौल को ख़़राब कर रहे हैं। इनमें मलाजखंड, टाडा दलम, कान्हा-भोरम दलम, परसवाड़ा दलम, विस्तार दलम, के.बी. डिवीजन, खटिया मोर्चा दलम और देवरी दलम हैं। इन दलमों के नक्सली ग्रामीणों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। बालाघाट व मंडला जिले में बस्तर के नक्सली, कबीरधाम जिले से लेकर भोरमदेव अभ्यारण्य के रास्ते अपना विस्तार करने में जुटे हैं। हालांकि पुलिस भी इन नक्सलियों के खिलाफ़ लगातार कार्रवाई कर रही है।लेकिन सीधी,सिंगरौली और रीवा में अपनी गतिविधियांे को विस्तार देने में लगे हैं। वहीं बालाघाट को अपना मुख्यालय बनाने की फिराके में हैं। यहां करीब दो सैकड़ा नक्सली होने का अनुमान है।- जरूरी कदम उठाएंगे – विवेक
‘‘रीवा जिले में नक्सलियों की आमद की कोई सूचना नहीं है। लेकिन जैसा बता रहे हैं कि वो बैगा,आदिवासी, भारिया, बेड़िया, बंजारा, बिरहोर,भूमिज और सहरिया जाति के लोग जहां है वहां नक्सली उनके बीच अपनी पैठ जमाने में लगे हैं। खासकर जंगले के आस पास के गांवों में। सीधी-सिंगरौली में इनकी गतिविधियां बढ़ने लगी है। इसकी सूचना है। रीवा जिले के जंगलों के आस पास के गांवों में पता किया जाएगा। वहां कोई बाहरी देखे जाने पर जो जरूरी कदम होगे वो उठाए जाएंगे।’’
विवेक सिंह,एस.पी.रीवा