
Naxalism spread because of congress- dr raman
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधान सभा के अध्यक्ष डाॅ रमन सिंह कहते हैं नक्सलवाद के मामले में कांग्रेस उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाला काम कर रही है। 2003 मे जब हमारी सरकार थी,तो नक्सलवाद हमें विरासत में मिला था। प्रदेश में नक्सलवाद फैला ही कांग्रेस के कारण है। हमने विकास कार्य करके उसे खत्म करने की कोशिश की,लेकिन कांग्रेस की सरकार फिर से 2003 जैसा प्रदेश को बना दी। सन् 2018 के चुनाव में बस्तर में बीजेपी को सिर्फ एक सीट मिली। इसका एक कारण एंटी इंकम्बेंसी हो सकता है। मैं दावे से कह सकता हूं, कि नक्सलियों ने डरा-धमका कर भाजपा के खिलाफ़ वोट कराने का अभियान चलाया,उससे हमारी सीटें कम हुई।
हमने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बिजली,पानी सड़क पहुंचाकर नक्सल खत्म के लिए मुहिम चलाई। परिणाम यह रहा कि नक्सली बस्तर तक सिमट गए। पहले सरगुजा तक नक्सलियों की पहुंच थी। हम धीरे-धीरे नक्सल खात्मे की ओर बढ़ रहे थे,पूरी कार्ययोजना तैयार थी,लेकिन अब भूपेश सरकार में तो नक्सलियों को खुली छूट दे दे गई थी।
नक्सली बैकफुट पर
छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी मोेर्चे पर हम काफी आगे बढ़ चुके थे। उन्हें काफी हद तक खदेड़ चुके थे,मगर सरकार बदलने के बाद फिर उनके हौसले बुलंद हो गए। साथ ही पुलिस के मनोबल पर भी बुरा असर पड़ा।क्यों कि हर छह महीने में एस.पी.बदल रहे थे। अघिकारियों के तबादले हो रहे थे। योग्य अधिकारी भेज नहीं रहे थे। इसका बुरा प्रभाव यह पड़ा कि नक्सली यहाँं सर उठाने लगे थे। प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद नक्सली बैकफुट पर चले गए हैं।
कांग्रेस नहीं चाहती नक्सलवाद खत्म हो
नक्सलवाद की जनक कांग्रेस है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने कभी चाहा ही नहीं कि नक्सलवाद खत्म हो। भूपेश की सरकार थी वो दावा करते थे कि प्रदेश में 45 फीसदी नक्सलवाद खत्म हो गया। जबकि ऐसा नहीं था। केवल विज्ञापनों में नक्सलवाद खत्म होने का प्रचार किया करते थे। कांग्रेस के घोंषणा पत्र के क्रमांक 22 में लिखा था कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए नीति तैयार की जाएगी। और वार्ता शुरू करने के लिए गंभीरता पूर्वक प्रयास किए जाएंगे। प्रत्येक नक्सल पंचायत को सामुदायिक विकास कार्यो के लिए एक करोड़ रुपये दिए जायेंगे। जिसमें कि विकास के माध्यम से उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।कांग्रेस सरकार ने क्या नीति बनाई?बातचीत के लिए क्या प्रयास किए? नक्सल पंचायतों को कितना पैसा दिया? सब सामने है।
नक्सलवाद पर मरहम लगाते आए
जैसा बता रहे हो कि कांग्रेस के कौन- कौन नेता मंत्री नक्सल मूवेंट से जुड़े रहे हैं और क्या -क्या किये,हम भी जानना चाहते हैं कि आखिर कांग्रेस के वो कौन- कौन लोग हैं जो नक्सलवाद की पसली में चोट करने की बजाए, मरहम लगाते रहे हैं। गृहमंत्री अमितशाह ने कहा है कि 2026 तक नक्सलवाद खत्म कर दिया जाएगा। प्रदेश में 2018 में हमारी सरकार नक्सलवाद खत्म करने के कगार तक पहुंच गयी थी। लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने के बाद नक्सलवाद फिर ठांठे मारने लगा था।
कांग्रेस की दोगली नीति
इसी से समझ सकते हो कि कांग्रेस नेता राजबब्बर यहां आकर कहे थेे कि नक्सली क्रांतिकारी हैं,उन्हें क्रांति करने से रोके नहीं। यही तो कांग्रेस की दोगली नीति है। एक तरफ वही नक्सलियों के खात्मे की बात करते हैं,तो दूसरी तरफ उन्हें क्रांेितकारी बताते हैं। बताइए भला जो नक्सलियों को क्रांतिकारी माने वह कैसे नक्सलियों के खिलाफ जंग लड़ सकते हैं? मुझे लगता है,नक्सली सोच वाले लोगों की घुसपैठ सरकार के अंदर हो गई है। इसलिए जो कठोरता नक्सलियों के खिलाफ़ होनी चाहिए,वो नहीं दिखती।
नक्सलवाद की कोई नीति नहीं
कांग्रेस सरकार के पास नक्सलवाद को लेकर कोई नीति नहीं थी।सरकार की नीति यही थी कि हर बड़ी माओवादी घटना के बाद बयान जारी कर दिया जाता था कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। मैं चकित था कि सरकार इस दिशा में कुछ भी नहीं कर रही थी। कांग्रेस के पास कोई नीति होती तब ना वो उस पर क्रियान्वयन करती।
बीजेपी के खिलाफ थे नक्सली
बस्तर में 2003 के चुनाव में हमें 12 में से 10 सीटें,2008 के चुनाव में 12 में से 11 सीटें और 2013 के चुनाव में 12 में से 4 सीटें मिली थीं। और 2018 में हमें एक सीट पर जीत मिली थी। इसका एक कारण एंटी इंकम्बेंसी हो सकता है। और हम लगातार नक्सलियों के खिलाफ़ अभियान चलाते रहे हैं,जिससे नक्सली भाजपा सरकार के खिलाफ़ दुष्प्रचार करते रहे। उन्होंने कई जगह भाजपा के खिलाफ़ वोटिंग करने के लिए लोगों को धमकाया। क्यों कि बस्तर का जितना विकास भाजपा की सरकार ने किया है,उतना कांग्रेस कभी नहीं कर सकती। इसलिए मैं दावे से कह सकता हूं, कि नक्सलियों ने डरा-धमका कर भाजपा के खिलाफ़ वोट कराने का अभियान चलाया,उससे हमारी सीटें कम हुई।
आदिवासी पिस रहे
दरअसल नक्सलियों को फंडिंग से मतलब है। उन्हें जो पैसा दे वह उनकी तरफ हो जाते हैं। बस्तर,सरगुजा जैसे आदिवासी बेल्ट में मिशनरी धर्मांतरण का काम करते आए हैं। यदि नक्सलियों को आदिवासियों की जरा भी चिंता है तो वह क्यों मिशनरियों को नहीं रोकते? क्यों खुलेआम धर्मांतरण का खेल चलने देते। क्यों मिशनरियों के ऊपर नक्सलियों की कोई घटना सामने नहीं आती। इससे साफ़ जाहिर है, कि धर्मातरण को लेकर जो अभियान चल रहा है,वह बिना नक्सलियों के सहयोग से नहीं हो सकता। दोनों में मिलीभगत है। बेचारे आदिवासी इसमें पिस रहे हैं।
विधान सभा अध्यक्ष डाॅ रमन सिंह ने कहा रेड वाॅर किताब को जरूर पड़ेंगे। उम्मीद है कि नक्सलवाद के बारे में हम जो सोचते हैं, वैसा कुछ इस किताब में लिखा होगा। नक्सलियों का समर्थन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई जरूर होगी।