
MVA scattered in delhi ,India and maharashtra
मुंबई(ब्यूरो)। दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस सीधे तौर पर आम आदमी पार्टी के खिलाफ हो गयी है। क्षेत्रीय दल आम आदमी पार्टी के साथ है। कांग्रेस के साथ कोई नहीं है। जाहिर सी बात है कि दिल्ली विधान सभा चुनाव का असर अन्य राज्यों में आगामी चुनाव में दिखेगा। जैसा कि शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राऊत ने दो टुक कह दिया कि बीएमसी का चुनाव अकेले लड़ेगे। किसी पार्टी से गठबंधन नहीं रहेगा। यानी एनसीपी शरद पवार की पार्टी से भी यूबीटी का कोई तालमेल नहीं रहेगा। बिहार चुनाव में भी इंडिया गठबंधन में एका नहीं रहेगा। इंडिया गठबंधन के नेताओ की नई राजनीति से स्पष्ट है कि लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस ने सभी दलों के साथ हाथ मिलाया और अब सबसे हाथ छिटक रही है। MVA के कई घटक दल देवेन्द्र फणड़नवीस की तारीफ कर रहे है। इससे यही लगता है कि आने वाले समय में इंडिया गठबंधन में दरार महाराष्ट्र के बीएमसी चुनाव में दिखने लगेगा।
यूबीटी अकेले BMC चुनाव लड़ेगी
क्षेत्रीय दलों के विरोध के चलते इंडिया गठबंधन मुश्किलों का सामना कर रहा है लेकिन कुछ ऐसी ही स्थिति अब महाराष्ट्र में भी है। शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने ऐलान किया है कि शिवसेना यूबीटी अकेले BMC चुनाव लड़ेगी। यह पहली बार है कि जब उद्धव गुट, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी। 2019 में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ मिलकर कांग्रेस महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी का निर्माण किया था। महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शिवसेना यूबीटी सबसे बड़ी पार्टी है, जिसका मुकाबला बीएमसी चुनाव में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की सेना और अजित पवार की एनसीपी से होगा। अब सवाल यह है कि आखिर क्या कारण हैं कि उद्धव गुट अकेले चुनावी राह में उतरने को तैयार हो गया है।
शिवसेना यूबीटी में संशय
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को विपक्षी गठबंधन में लाने वाले शरद पवार हैं, जिन्होंने कांग्रेस की शिवसेना से सुलह कराई थी। 2024 विधानसभा चुनाव में हार के बाद शरद पवार को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में चर्चा ये भी है कि एनसीपी का विलय हो सकता है जिसके चलते शिवसेना यूबीटी में संशय में है, जिसके चलते उद्धव एक अलग राह पर निकल पड़े हैं।
हिंदुत्व को धार देने की कोशिश
शिवसेना (यूबीटी) के अलग होने की एक और बड़ी वजह मराठी मानुष और हिंदुत्व का मुद्दा है। शिवसेना का मुंबई और कोकण इलाकों में इसी वजह से मजबूत जनाधार रहा है लेकिन महाविकास अघाडी में रहने की वजह से उद्धव खुलकर हिंदुत्व के मुद्दे पर नहीं खेल पा रहे थे, जिसके चलते शिवसेना यूबीटी को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा था। ऐसे में अब उद्धव वापस हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग करना चाहते हैं।
बीएमसी में पार्षदों की 236 सीटें
BMC शिवसेना का सबसे अहम किला माना जाता है, जिस पर 1995 से शिवसेना का कब्जा है। शिवसेना में टूट के बाद भी मुंबई में उद्धव ठाकरे का मजबूत जनाधार अभी भी शेष है। पिछली बार उद्धव की पार्टी को 84 सीटों पर जीत मिली थी। बीएमसी में पार्षदों की 236 सीटें हैं, जहां महापौर बनाने के लिए 119 सीटों पर जीत जरूरी है।
यूबीटी को खड़ा करने की कवायद
उद्धव मुंबई की सभी सीटों पर जीतकर स्थानीय स्तर पर संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं, क्योंकि गठबंधन होने पर उन्हें सीट शेयरिंग करनी पड़ सकती है, जिसके चलते उन्होंने बीएमसी में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे राज्य की राजनीति में हाशिए पर जा चुकी शिवसेना यूबीटी को एक बार फिर नए सिरे से खड़ा किया जा सके।
उद्धव क्यों चलेंगे एकला
विपक्षी गठबंधन इंडिया में टूट की खबरों के बीच उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने महाविकास अघाड़ी को बड़ा झटका दिया है। उसने फैसला किया है बीएमसी अकेले चुनाव लड़ने का। वहीं महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में चर्चा है कि शरद पवार और अजित पवार साथ आ सकते हैं। दूसरी चर्चा है कि सुप्रिया शरद को छोड़कर बाकी नेता अजित का दामन थाम सकते हैं। शरद पवार के पास आठ संासद और विधान सभा में दस विधायक हैं। आखिरी वक्त मे यदि पवार की पार्टी में कोई गेम होता है तो सीधे नुकसान यूबीटी को होगा। और फिर उद्धव के पास कोई विकल्प नहीं रहेगा। इसलिए बीएमसी चुनाव से पहले उद्धव ने एकला चलो का फैसला किया है।