
Malegaon blast- seven accused including sadhvi pragya ,cornel purohit acquitted
राष्ट्रमत न्यूज,मुंबई(ब्यूरो)। महाराष्ट्र के मालेगांव बम धमाके के मामले में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया। आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय रहीरकर, सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ शंकराचार्य और समीर कुलकर्णी को कोर्ट ने बरी कर दिया है।
कर्नल ने बम बनाया साबित नहीं हुआ
मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को धमाका हुआ था। इसमें 6 लोग मारे गए थे और करीब 100 लोग घायल हुए थे। करीब 17 साल बाद आए फैसले में जज एके लाहोटी ने कहा कि जांच एजेंसी आरोप साबित नहीं कर पाई है, ऐसे में आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।जज लाहोटी ने कहा कि धमाका हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि बम मोटरसाइकिल में रखा था। यह भी साबित नहीं हुआ कि मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा के नाम थी। यह भी साबित नहीं हो सका कि कर्नल प्रसाद पुरोहित ने बम बनाया।
3 जांच एजेंसियां और 4 जज बदल चुके हैं
इस केस का फैसला 8 मई 2025 को वाला था, लेकिन फिर कोर्ट ने इसे 31 जुलाई तक के लिए सुरक्षित रख लिया था। मालेगांव ब्लास्ट केस की शुरुआती जांच महाराष्ट्र ATS ने की थी। 2011 में केस NIA को सौंप दिया गया था। NIA ने 2016 में चार्जशीट दाखिल की थी। केस में 3 जांच एजेंसियां और 4 जज बदल चुके हैं।
सज़ा देने के लिए यह काफी नहीं है
आरोपियों पर 29 सितंबर, 2008 के मालेगांव विस्फोट के सिलसिले में भारतीय दंड संहिता (IPS) के तहत आपराधिक साजिश और हत्या के आरोपों के साथ-साथ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस विस्फोट में छह लोग मारे गए थे और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे। कोर्ट ने 1000 से ज़्यादा पन्नों में फ़ैसला सुनाया। स्पेशल जज ए.के. लाहोटी ने कहा कि अभियुक्तों पर गहरा संदेह हो सकता है, लेकिन उन्हें सज़ा देने के लिए यह काफी नहीं है।
आतंकवाद का कोई धर्म नहीं
एनआईए की स्पेशल कोर्ट में जज एके लाहोटी ने कहा-आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन दोषसिद्धि नैतिक आधार पर नहीं हो सकती।अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि जिस बाइक पर कथित तौर पर बम रखा गया था, वह प्रज्ञा की थी। फोरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा दोपहिया वाहन के चेसिस का सीरियल नंबर पूरी तरह से बरामद नहीं किया गया था, इसलिए अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि ठाकुर ही उस दोपहिया वाहन की मालिक थीं।
हमने कितनी तकलीफ से गुजरे हैं
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा- ‘आज की इस खुशी के लिए आपको पता नहीं हमने कितनी तकलीफ से गुजरे हैं। जब कोई नहीं जा रहा था, तब मैं प्रज्ञा से मिलने नाशिक जेल गई थी।’ यह कहते हुए उमा के आंसू छलक गए।उमा ने आगे कहा- आपको पता नहीं प्रज्ञा की कितनी सर्जरी हुई हैं। प्रज्ञा का शरीर खराब कर दिया गया। वो तो सूरज के जैसे झिलमिला रही थी और मैं रो रही थी। उसने मुझे सांत्वना दी थी और मेरे आंसू पोंछे थे। उसने कहा था– देशवासियों से कह दो कि मैंने हिंदुत्व को कलंकित नहीं होने दिया।
अदालत नें क्या कहा
- बम मोटरसाइकिल के बाहर रखा गया होगा, न कि उस पर लगाया गया होगा। कुछ मेडिकल प्रमाणपत्रों में हेराफेरी की बात सामने आई है।
- पुरोहित के घर पर आरडीएक्स के सोर्स, ट्रांसपोर्टेशन या स्टोरेज का कोई सबूत नहीं है। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि पुरोहित ने बम बनाया था।
- इस बात का कोई सबूत नहीं है कि गाड़ी किसने खड़ी की थी और बम किसने लगाया था।
- घटनास्थल का पंचनामा दोषपूर्ण था। मालेगांव विस्फोट स्थल से सबूत इकठ्ठा करने का काम किसी को उकसा कर नहीं किया गया था। विस्फोट स्थल दूषित था, इसलिए परिणाम निर्णायक नहीं हो सकता।
- प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ कोई ठोस और विश्वसनीय सबूत नहीं है कि बाइक उनकी थी और उनका उस बाइक से कोई संबंध था।
- कॉल इंटरसेप्शन अधिकृत नहीं था और अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने के दोनों अनुमति आदेश दोषपूर्ण हैं, इसलिए यूएपीए लागू नहीं किया जा सकता।
- साजिश का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा फरीदाबाद औरभोपाल में हुई बैठकों में था, लेकिन गवाह अपने बयानों से पलट गए, इसलिए अभियोजन पक्ष बैठक और साजिश को साबित करने में विफल रहा।
- आवाज के नमूने का सबूत दोषपूर्ण था। इंटरसेप्शन के लिए कोई प्राधिकरण नहीं था और ऐसी बातचीत पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
- अभियोजन पक्ष की मंज़ूरी दोषपूर्ण है, इसलिए UAPA के प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते।
- अजय राहिरकर अभिनव भारत के कोषाध्यक्ष थे और पुरोहित ट्रस्टी। पुरोहित ने इस धनराशि का इस्तेमाल अपने निजी कामों में किया, जिसमें घर का निर्माण और एलआईसी प्रीमियम का भुगतान शामिल था। हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं था कि इस धनराशि का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया गया था।
- षडयंत्र के प्रमुख गवाहों के बयान अभियोजन पक्ष के मामले की पुष्टि नहीं करते हैं। संदेह हो सकता है, लेकिन सबूत साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
- गवाह और सबूत पर्याप्त नहीं हैं। इन सबूतों पर भरोसा करना असुरक्षित है। कुल मिलाकर सबूत आरोपियों के खिलाफ मामला साबित करने के लिए भरोसा नहीं जगाते, इसलिए अदालत ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया।