
नई। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी बोर्ड आफ मदरसा एजुकेशन एक्ट की वैधता बरकरार रखी है। इस फैसल से जाहिर है कि प्रदेश में मदरसा एक्ट जारी रहेगा। मदरसे चलते रहेंगे। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें मदरसा एक्ट को असंवैधानिक बताया गया था।
मदरसा छात्रों को राहत
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि यूपी मदरसा एक्ट के सभी प्रावधान मूल अधिकार या संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन नहीं करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राज्य के करीब 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत मिली है। 5 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार देने वाले फैसले पर रोक लगा दी। केंद्र और यूपी सरकार से इस पर जवाब भी मांगा था। लेकिन सरकार उचित जवाब नहीं दे सकी। इससे पहले 22 अक्टूबर 2024 को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में इस पर सुनवाई हुई थी। चीफ जस्टिस ने कहा था धर्मनिरपेक्षता का मतलब है जियो और जीने दो।
कई याचिकाएं लगी
राज्य में मदरसा एक्ट के खिलाफ पहली बार 2012 में याचिका दायर हुई। ये याचिका दारुल उलूम वासिया मदरसा के मैनेजर सिराजुल हक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में दाखिल की थी। फिर 2014 में माइनॉरिटी वेलफेयर लखनऊ के सेक्रेटरी अब्दुल अजीजए 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी। इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं। 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने याचिका दायर की। सभी मामलों का नेचर एक था। सभी याचिका में एक्ट को रद्द करने की मांग की थी। कहा था धार्मिक शिक्षा से समाज में भेदभाव पैदा हो रहा। इसके बाद कोर्ट ने सभी याचिकाओं को मर्ज कर दिया।
धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन
गौरतलब है कि गत 22 मार्च 2024 को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने 86 पेज के फैसले में मदरसा को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है।विभिन्न धर्मों के बच्चों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। धर्म के आधार पर उन्हें अलग अलग प्रकार की शिक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकती। अगर ऐसा किया जाता है तो यह धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन होगा। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मदरसा बोर्ड एजुकेशन एक्ट 2004 बनाया था। राज्य सरकार ने 2022 में मदरसों का सर्वे भी कराया था।