
Lives of those who show their skills with bamboo are in danger
बालाघाट। बांस पर अपने हाथों का हुनर दिखाने वालों के सामने, बांस नहीं मिलने से जीवन संकट में है। जिले के बिरसा विकासखंड के अंतर्गत आने वाली गिडोरी पंचायत का नक्सल प्रभावित गांव कट्टरटोला सुदूर वनांचल क्षेत्र में बसा है। यहां के ज्यादातर आदिवासी बांस से बनने वाली वस्तुए बनाते है। सूपा,डलिया,दौरी और झांपी बनाते हैं। जो कि शादी व्याह में काम आते हैं। लेकिन वन विकास समिति और पेसा समिति किसी को जंगल में बांस काटते या फिर लाते देख लेते हैं, काफी जुर्माना लगाते हैं।
प्लास्टिक ने बांस का बाजार खा गया
जिन्दगी बांस जैसी लम्बी है, लेकिन बांस नहंी मिलने से जिन्दगी बांस जैसी हरिया नहीं सकी नक्सल प्रभावित आदिवासी अंचल के लोगों की। हाथों का हुनर धीरे धीरे लुप्त होता जा रहा है। एक समय बांस से बनने वाली सामग्रियों का भी बाजार हुआ करता था। लेकिन आधुनिकता ने बाजार के साथ रोजगार भी छीन लिया। बांस से बनने वाली सभी चीजों पर प्लास्टिक की चीजों ने कब्जा कर लिया। अब खेतों में काम आने वाले सूप,टोकना आदि लोप हो गए।
मुलायम बांस अब मिलते नहीं
ग्राम कट्टरटोला के ग्रामीणों से उनकी जीवीकोपार्जन और रोजगार के संबंध में बातें की।ग्रामीणों ने बताया कि उनका परिवार पीढ़ियों से बांस को छिलकर डलिया,सूपा,दौरी,झांपी आदि बनाता आया है। सभी तरह के बांस से जीवन मंे काम आने वाली चीजें नहीं बनती। एक विशेष प्रकार का बांस उपयोग में लाया जाता है। जो मुलायम होता है। जिसे छिलना आसान होता है। अब जंगल में वो बांस के लिए बड़ी दूर तक जाना पड़ता है।
हाथों के हुनर पर ग्रहण
कभी घरों खेतों और रसोइयों का अहम हिस्सा रहे बांस के सामान अब पूजा पाठ तक सिमटने लगे हैं। लोग अब बांस की बनी चीजों की जगह धीरे धीरे प्लास्टिक के बने सामान लेने लगे हैं। ग्राम कट्टरटोला के ग्रामीण किरतूसिंह ने बताया कि पहले जंगल से बांस लाकर डलिया,सूपा बना लिया करते थे। लेकिन अब बांस नही मिलता। यदि कोई जंगल से बांस काटकर ले आये तो वन विकास समिति व पेसा समिति वाले पकड़कर जुर्माना लगा देते है। ऐसे में बांस मिलना मुश्किल हो गया है और काम धंधा भी ठप्प हो गया है। वही सरपंच मंगल सिंह धुर्वे ने बताया कि पेसा कानून लागू होने के बाद जागरूकता बढ़ गई है। इसके अलावा जंगल से बांस भी समाप्त हो गये है। जिससे कट्टरटोला के ग्रामीणो की रोटी-रोजी भी प्रभावित हुई है। हमारी कोशिश है कि इन्हे पंचायत से काम और रोजगार मिले। लेकिन मनरेगा के कार्य भी नाकाफी है। शासन स्तर से ही ऐसा कोई आदेश होना चाहिए जिससे इन्हें बांस मिल सके। और इनका जीवन यापन हो सके। इनके हाथांे का हुनर जिंदा रहे।