
Listen to collector saheb,till now only five tribals got PM residence
राष्ट्रमत न्यूज,बालाघाट(ब्यूरो)। हर गरीब का सपना होता है उसके सर पर छत हो। सरकार का दावा है कि जरूरतमत लोगों को प्रधानमंत्री आवास के तहत उनका सपना पूरा कया जाएगा। लेकिन जिले के अंतिम छोर में घने जंगल की पहाड़ों पर बसे जनपद पंचायत कंटगी की ग्राम पंचायत जमुनिया के वनग्राम कछार में ऐसा नहीं है।पिछले दस वर्षो में केवल पांच आदिवासियों को पी.एम.आवास मिला।सवाल यह है कि कलेक्टर की नजर अभी तक क्यों नहीं पड़ी? राष्ट्रमत की नजर इस गांव पर पड़ी। उसने जब लोगों से इस बारे में सवाल किया तो बात समझ में आ गयी कि सरकारी फाइलों में मौसम गुलाबी कैसे है।और फाइलों में सबको छत कैसे मिल जाती है।
अफसर यहां आते नहीं
सरकारी व्यवस्था और वोट की राजनीति करने वालो का मुंह चिढ़ाती दिखती हैं कवेलू के मकान। जाहिर सी बात है यह तो सरकारी योजना दूरस्त गांवों तक पहुंची नहीं या फिर केवल फाइलों में पहुंची हैं।वनग्राम कछार में वैसे तो 34 मकान हैं। 177 की आबादी हैं। जंगल के अंदर और पहाड़ी पर बसा होने से जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारी बहुत कम ही निरीक्षण करने पहुंचते हैं। क्योंकि यहां आने जाने के लिए सिवनी से होकर जाना पड़ता हैं।
PM योजना फिर आई नहीं
वनग्राम कछार के आदिवासियों ने बताया कि वे यहां पर वर्षों से रहते आ रहे है। उनके गांव में जब से प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू हुई है, उसके बाद से केवल पांच लोगों के मकान बनाए गये। इसके अलावा आदिवासियों को इसका लाभ नहीं मिला है। कभी कबार गांव में पंचायत के जिम्मेदार आते है। यही कहते हैं कि सर्वे कराकर नाम इस बार जोड़ दिया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ उन लोगों को दिया जाना है, जो कच्चे मकान में रहते है। इसके बाद भी कच्चे मकान में वर्षों से जीवन गुजार रहे पांच आदिवासियों तक ही यह योजना पहुंची है।
विस्थापन को तैयारी नहीं
जंगल में बसे इन आदिवासियों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ इतने वर्षों बाद भी नहीं मिलना,केवल जिम्मेदार अधिकारी ही इसके लिए दोषी हैं।बताया गया है कि पंचायत ने वनग्राम कछार के आसपास बाघ का मूवमेंट बढ़ने की वजह से राजस्व से सहमति लेकर अन्य जगह विस्थापन की बात लोगों से की गयी थी। लेकिन इस गांव के आदिवासी अपने इस गांव को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इस गांव में वर्तमान में बाघ की दहशत होने से लोग तेंदूपत्ता तोडने नहीं जा रहे हैं। यहां के आदिवासी तेंदूपत्ता, महुआ, गुल्ली चारा, बीजा,गोंद, हर्रा बेहड़ा संग्रहण पर निर्भर हैं।
मकान बनाना कठिन
जिले की अंतिम सीमा पर बसे होने के साथ ही जंगल और पहाड़ी पर वनग्राम कछार बसा है। इसके लिए यहां पर मकान निर्माण करने की सामग्री लेकर जाने में परेशानी होती है। हालात जो भी हो, लेकिन शासन के नियम है कि कच्चे मकान में रहने वाले गरीबों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिया जाए। ऐसे में इतने वर्ष हो गए प्रधानमंत्री आवास योजना को शुरू हुए लेकिन सिर्फ पांच आदिवासियों को ही इसका लाभ मिला।
इनका कहना हैं
वनग्राम कछार में बहुत पहले वन विभाग ने आदिवासियों के लिए मकान बनवाए थे। उस समय राशि कम थी। जिससे कच्चे मकान बनाए गए है। अभी तक पांच मकान बने है। इसके पूर्व दूसरे सरपंच के कार्यकाल रहा है। मेरे कार्यकाल में जो आदिवासी छूट गए थे, उनका सर्वे कराकर नाम जोड़ दिया गया हैं।
उमेश पटले
सरपंच, ग्राम पंचायत जमुनिया
इनका कहना हैं
वनग्राम कछार में पांच आदिवासी के मकान में बने हंै। जिनके आवास नहीं बने थे, उनके नाम सर्वे में जोड़ दिए है।
मनीष राणा
सचिव, ग्राम पंचायत जमुनिया