
No rape from marriage promise
नई दिल्ली (ब्यूरो)। सुप्रीम कोर्ट के जज कई बार ऐसे फैसले सुनाते हैं कि आश्चर्य होता है। उनकी टिप्पणी भी हैरान कर देती है। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी अक्सर चर्चा में रहती है। इस बार उनकी टिप्पणी एक बार फिर उन्हें चर्चा में ला दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने 27 फरवरी को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि आरोपी महिला को हिरासत में ही रखा जाना चाहिए ताकि उसका वजन कम हो सके। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जब आरोपी महिला के वकील ने बताया कि उनकी मुवक्किल का वजन ज्यादा है तो जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने सवाल करते हुए कहा कि क्या यह राहत का आधार होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट जमानत कोर्ट बन गया
वकील ने कहा कि वह अपने मुवक्किल की बीमारियों का हवाला दे रहा था। जस्टिस त्रिवेदी ने जवाब देते हुए कहा, ‘उसे हिरासत में रहने दिया जाए ताकि उसका वजन कम हो जाए।’ जस्टिस त्रिवेदी पहले भी चर्चा में रही हैं। मई 2024 में एक सुनवाई में उन्होंने सुझाव देते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को जमानत के मामलों पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की जज ने कहा, ‘जमानत के मामलों में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह मेरी राय है। इसे हाई कोर्ट तक ही सीमित कर देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट जमानत कोर्ट बन गया है।’
सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला एम त्रिवेदी 10 जून 1960 को पाटण गुजरात में जन्मीं थी। उन्होंने एमएस यूनिवर्सिटी वडोदरा से बीकॉम-एलएलबी किया।लगभग 10 सालों तक गुजरात हाई कोर्ट में सिविल और संवैधानिक पक्ष पर वकील के तौर पर काम किया। 10 जुलाई 1995 को अहमदाबाद में सिटी सिविल जज के रूप में सीधे नियुक्त किया गया। 17 फरवरी 2011 को वह गुजरात हाई कोर्ट की जज के तौर पर पदोन्नत हुईं। वरिष्ठता के हिसाब से जस्टिस त्रिवेदी सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सिर्फ ग्यारहवीं महिला जज हैं। 4 जनवरी, 2023 को न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने 2002 में बिलकिस बानो के साथ रेप और हमले व उसके परिवार की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 दोषियों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।