
Lalu raj has returned to bihar again,politics heated by crim graph
राष्ट्रमत न्यूज,पटना(ब्यूरो)। बिहार में जिस तेजी से क्राइम बढ़ा है उससे लोग कहने लगे हैं कि लगता है सुशासन बाबू थक गए हैं। बिहार में लालूराज लौट आया है। पटना के पारस अस्पताल में घुसकर मरीज को गोली अपराधियो ने मारी और निकल भी गए।बिहार के एडीजी कुुंदन कृष्णन ने कहा कि मई जून में अपराध बढ़ जाता है क्यों कि किसान खाली रहते हैं। इस बयान के बाद से प्रदेश में सियासत गरमा गयी है। नीतीश की चुप्पी ने विपक्ष को बोलने को मौका दे दिया है।
अस्पताल में गोली मारकर हत्या
बिहार विधानसभा चुनाव इसी साल की आखिरी तिमाही में होने हैं। चुनाव से पहले हाल ही में जिस तरह से हत्या और अलग-अलग तरीके के अपराध के मामले में बढ़े हैं, उसके चलते राजनीतिक विवाद बढ़ गया है। वहीं कानून व्यवस्था को लेकर सभी के निशाने पर सीएम नीतीश कुमार हैं। सबसे ताज़ा घटना गुरुवार को हुई जब पांच बंदूकधारियों ने पैरोल पर छूटे एक कुख्यात अपराधी की पटना के एक निजी अस्पताल में गोली मारकर हत्या कर दी।
कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त
विपक्ष लंबे समय से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर हमला बोल रहा है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि एक “अचेत मुख्यमंत्री” के नेतृत्व में बिहार “अराजकता” में डूब गया है। दिलचस्प बात यह भी है कि लोकजनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रमुख और एनडीए के साथी चिराग पासवान ने भी कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि हालिया हत्याएं बिहार में कानून-व्यवस्था के पूरी तरह से ध्वस्त होने को दर्शाती हैं।
अपराध बना नीतीश की चुनौती
राज्य के सीएम नीतीश कुमार को बिहार में जंगल राज के खात्मे का क्रेडिट दिया जाता है, लेकिन पिछले एक दशक में उनके शासन काल में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एनसीआरबी और बिहार पुलिस के आंकड़े बता रहे हैं कि राज्य में अपराध काफी तेजी से बढ़ा है जो कि नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है।
पिछले दस साल में खूब बढ़ा अपराध
राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी SCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2024 तक बिहार में कुल अपराधों की संख्या में 80.2% की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, नवीनतम उपलब्ध राष्ट्रीय स्तर के आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2022 तक भारत में कुल अपराधों में 23.7% की वृद्धि देखी गई है। 2015 से बिहार में अपराधों की संख्या हर साल बढ़ी है। कोरोना काल के दौरान 2020 और 2024 को छोड़कर हर साल अपराध बढ़ा ही है। साल-दर-साल सबसे ज़्यादा वृद्धि 2017 में दर्ज की गई थी, जब अपराध में 24.4% की वृद्धि हुई थी।
बिहार में 3.5 लाख अपराध
2022 में बिहार में 3.5 लाख अपराध हुए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 23.3% अधिक है। इसके विपरीत, राष्ट्रीय स्तर पर अपराध में गिरावट आई है 2022 में 4.5% और 2021 में 7.7% रहा। एससीआरबी के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2023 में अपराधों की संख्या बढ़कर 3.54 लाख हो गई, जो 2024 में मामूली रूप से घटकर 3.52 लाख रह गई। जून 2025 तक बिहार में 1.91 लाख अपराध हुए हैं, जो 2024 में दर्ज किए गए आधे से भी ज़्यादा हैं।
खराब राज्यों में शामिल बिहार
2015 से बिहार कुल अपराध मामलों के मामले में 10 सबसे खराब राज्यों में से एक रहा है। हालांकि, जनसंख्या के हिसाब से समायोजित बिहार में प्रति लाख लोगों पर अपराध की दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम रही है। 2022 में बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 277 मामलों की दर से अपराध की सातवीं सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई। हालांकि, भारत में प्रति लाख जनसंख्या पर 422 मामलों की कुल अपराध दर दर्ज की गई। वास्तव में 2015 के बाद, दिल्ली में पांच वर्षों तक सबसे अधिक अपराध दर दर्ज की गई जबकि केरल तीन वर्षों तक सबसे खराब स्थिति में रहा। हालांकि, यह मामलों के पंजीकरण का भी एक कारक है जो दिल्ली और केरल में निवासियों की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के कारण अधिक हो सकता है।
बिहार में अपराध उच्च स्तर पर
द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त नवीनतम एससीआरबी आंकड़ों के अनुसार बिहार में जून 2025 तक 1,379 हत्याएं दर्ज की गईं जबकि 2024 में कुल 2,786 और 2023 में 2,863 हत्याए दर्ज की गईं। उदाहरण के लिए, जनसंख्या के हिसाब से समायोजित 2022 में बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर 2.3 हत्याएं और 6.9 हत्या के प्रयास दर्ज किए गए। ये राष्ट्रीय औसत क्रमशः 2.1 और 4.1 से अधिक है। पिछले एक दशक में जहाँ 2015 में बिहार की हत्या दर 3.1 के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई थी, वहीं 2017 में हत्या के प्रयास की दर 9.1 के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।