
Khunreji is now shy,more than one hundred and fifty women naxalites were killed
राष्ट्रमत न्यूज,रायपुर(ब्यूरो)। छत्तीसगढ़ के बस्तर के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में एक समय कई नक्सली हादसे का नेतृत्व महिला नक्सलियों ने कर सरकार की चूलें हिला दिया करती थी। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गयी थी। लेकिन अब तस्वीर बदल गयी है। कभी अबला सुरक्षा बलों के लिए बला थी। लेकिन अब तस्वीर बदल गयी है। जिनके कंधो पर कभी हथियार हुआ करते थे,अब घर की जिम्मेदारियों का बोझ हो गया है। डीआरजी के जवानों ने डेढ़ से ज्यादा महिला नक्सलियों को ढेर कर चुके हैं। अब महिला नक्सली माकपा संगठन को नहीं मिल रहे हैं।
अपना घर बसा लिया
सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि बस्तर में ये बदलाव अचानक नहीं आया बल्कि ये सालों की मेहनत और आम लोगों के विश्वास का नतीजा है। लगातार प्रयास के चलते यह बदलाव आया है। खुद महिलाएं नक्सली संगठन को छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। कई महिला नक्सलियों ने अपना घर बसा लिया।
74 महिला नक्सली मारी गईं
केंद्रीय गृह मंत्रालय और सुरक्षा एजेंसियों के आंकड़ों के अनुसार 2024 और 2025 में नक्सलियों के खिलाफ मुठभेड़ों में मारी गई एक तिहाई से ज्यादा नक्सली महिलाएं थीं।2024 में कुल 217 नक्सली मारे गए। जिनमें 74 महिलाएं थीं। जबकि 2025 में जून तक 195 नक्सलियों में से 82 महिलाएं मारी जा चुकी हैं।ये आंकड़े बताते हैं कि नक्सली संगठन अब महिलाओं को जबरन लड़ाई की सबसे आगे की कतार में खड़ा कर रहा है।साथ ही ये सरकार की रणनीति की सफलता को भी दिखाता है जो नक्सलियों के कट्टर समर्थकों तक पहुंच रही है।
पुनर्वास नीति से बदली दिशा
महिलाओं के आत्मसमर्पण की संख्या भी यह बताती है कि अब सोच बदल रही है।2024 में 1440 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। जिनमें सैकड़ों महिलाएं थीं।इनमें कई के सिर पर इनामी घोषणाएं थीं। लेकिन उन्होंने सरकार की पुनर्वास नीति और संवेदनशील रवैये पर भरोसा किया
छोटी बच्चियों को बना रहे हैं टारगेट
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिकए नक्सली संगठन अब बच्चों और खासकर बच्चियों को अपना टारगेट बना रहे हैं। सूत्रों के अनुसारए झारखंड और छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में बाल दस्ते बनाए गए हैं।जहां 10-12 साल की मासूम बच्चियों को डराकर बहला.फुसलाकर या कभी-कभी लालच देकर संगठन में शामिल करने की कोशिश में जुटा है।उनके माता.पिता को धमकाया जाता है।उन्हें ये भी यकीन दिलाया जाता है कि सरकार उनकी दुश्मन है।
पहले दिए जाते हैं छोटे-छोटे काम
इन बच्चियों को नक्सल संगठन में भर्ती कर पहले फुट सोल्जर बनाया जाता है। उन्हें खाना पकाने, हथियार ढोने, मैसेज पहुंचाने जैसे काम दिए जाते हैं।जब वे थोड़ा बड़ा सोचने लगती हैं और सवाल करती हैं तो उन्हें मारपीट और अपमान का सामना करना पड़ता है।बहुत सी महिला पूर्व नक्सलियों ने बताया कि वे केवल इस्तेमाल की चीज थीं।उनकी कोई पहचान नहीं थी। कोई सम्मान नहीं था। जब वे घायल होती थीं।तब भी इलाज नहीं मिलता था और अगर वे मर जाती थीं तो उन्हें एक नंबर बना दिया जाता था।
नयी पहचान दी जाए
सरकार ने सुरक्षा बलों को अब निर्देश है कि सरेंडर करने वाली महिला नक्सलियों के साथ पूरी संवेदनशीलता से व्यवहार किया जाए। उन्हें न सिर्फ कानूनी सुरक्षा दी जाए, बल्कि उन्हें सम्मान,आजीविका और एक नई पहचान दी जाए। इन महिलाओं को सिलाईए बुनाईए मुर्गी पालन,बकरी पालन जैसे कार्यों में प्रशिक्षित किया जा रहा है।साथ ही उनके बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला,छात्रवृत्ति और स्वास्थ्य कार्ड जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं।
असली आजादी बंदूक से नहीं
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि नक्सली अब कमजोर हो रहे हैं। उनके पास नए कैडर नहीं आ रहे हैं। युवा अब संगठन में शामिल होने के बजाए पढ़ाई और नौकरी की तरफ बढ़ रहे हैं।मजबूरी में वे महिलाओं और बच्चों को आगे कर रहे हैं, लेकिन ये रणनीति भी अब उल्टी पड़ रही है।क्योंकि महिलाएं समझ रही हैं कि असली आजादी बंदूक से नहीं,शिक्षा और सम्मान से आती है।