
Hospital death is being distributed non -standard medicines
भोपाल। मध्यप्रदेश के अस्पताल मौत बांट रहे हैं। सरकारी अस्पताल में अमानक दवाएं मरीजों को दी जा रही हैं। प्रदेश में हर साल 400 करोड़ रुपए की दवाएं खरीदी जाती हैं। सन् 2014 में 13 दवाएं अमानक पाई गयीं। जिनमें सेफोटक्सिम जैसे एंटीबायोटिक इंजेक्शन शामिल है। बीजेपी सरकार दवा खरीदी में 750 करोड़ का घोटाला किया इस साल। अधिकारियों और चार फर्मो के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई हैं।
नकली डॉक्टर, नकली दवाएं
दमोह के मिशन अस्पताल में फर्जी डॉक्टर के हार्ट सर्जरी करने से हुई सात मौतों के मामले में अब कांग्रेस ने डॉक्टर के साथ अस्पताल संचालक पर हत्या का केस दर्ज करने की मांग की है।कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता रवि सक्सेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हैं। प्रदेश के अस्पताल मौत बांट रहे हैं। नकली डॉक्टर, नकली दवाएं, नकली अस्पताल चल रहे हैं। इससे मरीजों की जानें ली जा रहीं हैं।
सख्त कार्रवाई करें – CM
भोपाल के प्रशासन अकादमी में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने के बाद सीएम डॉ मोहन यादव ने दमोह मामले पर मीडिया से चर्चा में कहा, स्वास्थ्य विभाग को इस संबंध में निर्देश दिए हैं कि वे अभियान चलाकर जहां भी ऐसे कोई मामले संज्ञान में आएं सख्त कार्रवाई करें।
जवाबदेही की मांग करते हैं
रवि सक्सेना ने कहा, एक फर्जी डॉक्टर, जो खुद को लंदन का प्रशिक्षित कार्डियोलॉजिस्ट बताकर मिशनरी अस्पताल में हार्ट सर्जरी कर रहा था। उस फर्जी डॉक्टर ने करीब 8 मरीजों की जान ले ली। इस त्रासदी ने न केवल स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि बीजेपी सरकार की जनता की सेहत के प्रति उदासीनता को भी सामने लाया है।हम, मध्यप्रदेश की जागरूक जनता और सामाजिक संगठन, इस मामले में तत्काल कार्रवाई और जवाबदेही की मांग करते हैं।
डॉक्टर की डिग्री और नाम दोनों फर्जी
दमोह के मिशनरी अस्पताल में नरेंद्र विक्रमादित्य यादव नाम के शख्स ने “डॉ. एनजॉन केम” के नाम से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी हासिल की। उसने जनवरी-फरवरी 2025 में 15 से ज्यादा हार्ट सर्जरी कीं, जिनमें से 8 मरीजों की मौत हो चुकी है।जांच में पता चला कि उसकी डिग्री और अनुभव पूरी तरह फर्जी थे। अस्पताल प्रबंधन ने बिना किसी पृष्ठभूमि जांच के उसे मरीजों की जिंदगी सौंप दी, जो अपने आप में गंभीर लापरवाही का सबूत है। आरोपी के फरार होने से ये सवाल उठ रहे हैं कि, क्या प्रभावशाली लोग इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं?
ऐसी है एमपी में स्वास्थ्य सेवाएं
- दमोह में एक फर्जी डॉक्टर ने 8 लोगों की जान ले ली। यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में फैले झोलाछाप डॉक्टरों के नेटवर्क का नमूना है। इंदौर में अजय हार्डिया नामक एक शख्स, जिसके पास सिर्फ इलेक्ट्रो होम्योपैथी की डिग्री थी, 50 बेड का अवैध अस्पताल चला रहा था।
- मध्यप्रदेश में अमानक दवाओं के मामले बार-बार सामने आ रहे हैं। साल 2024 में ही 13 दवाएं अमानक पाई गई, जिनमें सेफोटेक्सिम जैसे एंटीबायोटिक इंजेक्शन शामिल हैं।इन दवाओं का उपयोग सरकारी अस्पतालों से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक में किया जा रहा था। जब तक इन पर प्रतिबंध लगा, तब तक कई मरीजों की जान खतरे में पड़ चुकी थी। प्रदेश में हर साल करीब 400 करोड़ रुपए की दवाएं खरीदी जाती हैं, लेकिन थर्ड पार्टी जांच के बिना इनका उपयोग शुरू कर दिया जाता है।
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आयुष्मान भारत योजना, जो गरीबों को मुफ्त इलाज का वादा करती है, मध्यप्रदेश में फर्जीवाड़े का अड्डा बन गई है। 2022 में 84 निजी अस्पतालों के ऑडिट में 27 में गड़बड़िया पाई गई। * फर्जी बिल बनाकर सरकारी धन की लूट की जा रही थी। कई अस्पतालों में मरीज भर्ती ही नहीं थे, फिर भी इलाज के नाम पर लाखों रुपए क्लेम किए गए।
- व्यापम घोटाला दुनिया का सबसे बड़ा भर्ती घोटाला माना जाता है और यह बीजेपी सरकार के शासनकाल में हुआ। इस घोटाले ने न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था को तबाह किया, बल्कि स्वास्थ्य क्षेत्र में भी फर्जी डॉक्टरों की फौज खड़ी कर दी।
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नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक में मध्यप्रदेश 17वें स्थान पर लुढ़क गया है। यह आंकड़ा प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की दुर्दशा को साफ तौर पर दिखाता है। जहां देश के अन्य राज्य अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर कर रहे हैं, वहीं मध्यप्रदेश पीछे छूटता जा रहा है। * 8882 मरीजों पर सिर्फ 1 डॉक्टर का अनुपात इस बदहाली का सबसे बड़ा प्रमाण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक, प्रति 1000 मरीजों पर कम से कम 1 डॉक्टर होना चाहिए, लेकिन मध्यप्रदेश में यह अनुपात 0.11 है। इसका मतलब है कि प्रदेश की जनता को न तो समय पर इलाज मिल रहा है, न ही योग्य डॉक्टर।
- बीजेपी सरकार ने दवा खरीदी में भी घोटाला कर डाला। 2025 में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और चार फर्मों के खिलाफ 750 करोड रुपए के घोटाले में FIR दर्ज हुई।
- मशीनों और सामग्री की खरीद में मानक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। जरूरत से ज्यादा कीमत पर सामान खरीदा गया और जहां जरूरत नहीं थी, वहां सप्लाई कर दी गई।इसका नतीजा यह हुआ कि सरकारी अस्पतालों में नकली और घटिया दवाएं पहुंची, जो मरीजों के लिए जानलेवा साबित हुई।