
Eyes of Bagdehi village turned stoned in hope of PM residence
बालाघाट(रफी अंसारी)। सरकारी फाइल में गांव का मौसम गुलाबी है। उनका दावा है कि बैगा के गांवों में भुखमरी सोती नहीं। जबकि हकीकत ठीक इसके उलट है। लाँजी नगर परिषद क्षेत्र के बगदेही गांव की तस्वीर बताती हैे कि इस गांव को कभी कोई जनप्रतिनिधि और प्रशासन ने गंभीरता से लिया ही नहीं। किसी की नजरे इनायत पड़ी ही नहीं। वरना बैगा,भारिया और सहारिया जनजाति वाले इस गांव का मौसम भी गुलाबी होता। जबकि प्रदेश सरकार का अपना आकंड़ा है पीएम आवास के मामले में देश में अव्वल है। जिन्हें आवास की जरूरत है,उन्हें आवास मिला नहीं। फिर कैसे दावा करते हैं कि उनके फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है। पीएम आवास की आस में इस गांव की आंखें पथरा गयी है।
सियासी तस्वीर पर मत जाइये जनाब
सियासी बयान के मुताबिक केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार पिछड़ी जनजाति के सरंक्षण और संवर्धन को लेकर बेहद गंभीर है। सरकार का दावा है कि पी.एम.,जन-मन योजना से मध्यप्रदेश में निवास करने वाली बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों को सबसे बड़ा लाभ मिल रहा है और मध्यप्रदेश इस योजना के सफल क्रियान्वयन में पूरे देश में अव्वल है। हितग्राही मूलक योजनाओं का लाभ प्रदाय करने में भी उच्च प्रदर्शन किया है। पीएम जनमन में 31 हजार 719 से अधिक हितग्राहियों के पक्के आवास तैयार कर दिये गये हैं। इसके अलावा पीवीटीजी बहुल गांवों में सड़कों के विस्तार पर सरकार का विशेष जोर है। इनमें से कुछ सड़कों के निर्माण भी शुरू हो गये हैं। जिनके पूर्णता का लक्ष्य 2025 तक है। लेकिन इन सभी दावों को खोखला करती तस्वीरे बालाघाट जिले में लगातार देखने मिलती है। जहां विशेष पिछड़ी जनजाति आज भी शासन की कई योजनाओं व मूलभूत सुविधाओं से वचिंत है।
विकास की परिभाषा बदलिए
लाँजी नगर परिषद क्षेत्र के बगदेही गांव जो लांजी मुख्यालय से 01 किलोमीटर दूर है। जहां 45 बैगा परिवारों की बसाहट है पिछले 15 सालो से यहां निवास कर रहे हैं। लेकिन उन्हें अब तक शासन की आवास योजना का लाभ नहीं मिला है।ना ही उन्हंे भूमि का पट्टा प्रदान किया गया है। पांेषण आहार राशि और राशन उपलब्ध करवा देने से विशेष पिछड़ी जनजाति का विकास हो जाएगा यदि प्रशासन मानता है तो यह गलत है। विकास की परिभाषा राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों अलग अलग है। उच्च शिक्षा और रोजगार से जोड़ने के अलावा मूलभूत सुविधाओं का लाभ भी उपलब्ध करवाना अनिवार्य है।
विधायक वायदा भूले
इस गांव में दूर तक छोटी छोटी झोपपिड़यां हैं। जिसमें बैगा आदिवासी परिवार रहता हे। यह लाँजी नगरपरिषद का हिस्सा है। राजकुमार कर्राहे यहाँ के विधायक हैं।केंद्र और प्रदेश मंे उनकी सरकार है। लेकिन हैरत की बात यह है कि चुनाव के पहले विधायक राजकुमार करार्हे ने इन बैगा परिवारों से चुनाव के वक्त वादा किया था जीत गए तो सबको पक्का मकान दिलायेंगे। वादा पूरा करना तो दूर की बात है, विधायक राजकुमार कर्राहे कभी यहां झाँककर भी नहीं देखे है। उन्हे इस गांव में आकर बसे हुए लगभग 15 साल बीत चुके है। लेकिन शासन की योजनाओं के तहत अभी तक पक्का मकान नसीब नहीं हुआ है। ये सभी परिवार आज भी झोपड़ियों में कड़कडाती ठण्ड का सामना कर रहे है और आगे गरमी और बारिश भी इनकी परीक्षा लेगा।
रोजगार के साधन नहीं
यहां के ग्रामीण कमलूसिंह धुर्वे का कहना है कि उनके पास रोजगार के साधन नही है। जंगल से सूखी लकड़ी काटकर लाते हैं। उसे ही बेचकर जीविका चला रहे है। उससे भी परिवार पालना मुश्किल हो चुका है। ऐसे में मकान बनाना उनके लिये संभव नही है। कई बार शासन-प्रशासन से भी गुहार लगा चुके है और आवेदन कर चुके हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सरकारी अमला भी सर्वे के नाम पर आया था, लेकिन कोई फायदा नही मिला। पी.एम.,जनमन आवास योजना के तहत भी उन्हें मकान उपलब्ध करवाये जाने को लेकर पहल नहीं की जा सकी है।
ग्रामीणांे ने यह भी बताया कि उन्हे कुछेक योजनाओं का लाभ जैसे राशन, पोषण आहार राशि व निःशुल्क बिजली तो मिल रही है,लेकिन अन्य योजनायें उन तक नहीं पहुंची है। गांव में एक मात्र हैंडपंप है,उससे पानी की भी आपूर्ति नहीं हो पाती। शौचालय नही है। गांव तक पहुंचने के लिये पक्की सड़क नहीं है। प्राथमिक स्कूल है,जहां बच्चे पढ़ने जाते हैं और आगे की शिक्षा के लिये लांजी जाते है। जंगल से लकड़ी चुनना और उसे बेचना ही मूल आय का साधन है। इसके अलावा मौसमी वनोपज से भी कुछ आर्थिक सहायता मिल जाती है। लेकिन महंगाई के दौर में हरी सब्जी उन्हे नसीब नही होती। जंगली वनोपज को ही साख सब्जी और पेज पीकर परिवार का लालन पालन करते है। राज्य सरकार विशेष पिछड़ी जनजातीय समूह को पोषण आहार अनुदान योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया को 1500 रुपए प्रतिमाह दे रही है, जिसका लाभ इन परिवार को मिल रहा है, जो इनके लिये बड़ी राहत के रूप है। प्रशासन और शासन को चाहिए कि विकास की परिभाषा बदले और समुचित विकास की ओर ध्यान दे। वरना फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी बताने से हकीकत जस का तस रहेगा।