
crores of scam with fake job card in manega
भोपाल। विधानसभा में रखे कैग रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ मजदूरी के 87.65 लाख रुपए ही गलत खातों में जमा कर दिये गए। इतना ही नहीं फर्जी जाॅब कार्ड से करोड़ोें का घोटाला हुआ है। आडिट में करोड़ों रुपए की अनियमितताएं सामने आई है। आडिट नवंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच हुआ है।मध्य प्रदेश में 85. 67 लाख रुपए का मनरेगा भुगतान ऐसे लोगों के बैंक खातों में किया गया, जो न तो जॉब कार्डधारकों के थे और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य के थे।
एक बड़ा घोटाला सामने आया
मध्य प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 87.65 लाख रुपए की मजदूरी का भुगतान को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है । विधानसभा में रखे गए कैग रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में 85. 67 लाख रुपए का मनरेगा भुगतान ऐसे लोगों के बैंक खातों में किया गया, जो न तो जॉब कार्डधारकों के थे और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य के थे। मनरेगा के तहत हुए बड़े घोटाले का खुलासा मनरेगा और केंद्रीय वित्त आयोग के तहत पंचायती राज संस्थाओं में परिसंपत्तियों के निर्माण पर हुई ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है । विधानसभा में पेश रिपोर्ट में 1 अप्रैल, 2019 से मार्च 31, 2022 तक की अवधि शामिल है।
87.65 लाख रुपए जॉब कार्डधारकों के नहीं थे
ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार 7 ग्राम पंचायतों की मजदूरी भुगतान सूची और 476 जॉब कार्डों के बैंक खातों की जांच में सामने आया कि जिन खातों में 87.65 लाख रुपए मजदूरी के रूप में जमा किए गए, वे संबंधित जॉब कार्डधारकों के नहीं थे । साथ ही, यह राशि जिनके खातों में जमा हुई, वे भी संबंधित मजदूरों/जॉब कार्डधारकों के परिवार के सदस्य नहीं थे।
राज्य सरकार ने दी सफाई
कैग के इस खुलासे पर राज्य सरकार ने जवाब देते हुए कहा कि छतरपुर जिले की बमनीघाट और इमलाहा ग्राम पंचायतों के जॉब कार्डधारकों द्वारा बैंक खाता न होने की स्थिति में, उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए अन्य खातों में मजदूरी का भुगतान किया गया । इसके लिए संबंधित जॉब कार्डधारकों से बैंक खाता न होने का शपथ पत्र भी लिया गया । हालांकि सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार के जवाब को अस्वीकार्य बताया है।
दो के पास डाकघर में खाता था
मध्य प्रदेश विधानसभा में सदन के पटल पर रखे गए कैग रिपोर्ट के अनुसार, जिन छह जॉब कार्डधारकों के शपथ पत्र ऑडिट को सौंपे गए, उनमें से दो के पास डाकघर में खाता था, जबकि एक के पास बैंक खाता मौजूद था ।वहीं, अन्य ग्राम पंचायतों के मामलों में राज्य सरकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
तय सीमा से अधिक रुपए खर्च किया
रिपोर्ट में बताया गया कि 64 चयनित ग्राम पंचायतों ने तय सीमा से अधिक 5.07 करोड़ रुपए की सामग्री पर खर्च किया, जिससे 2019 से 2022 के बीच 2.72 लाख मानव दिवसों का सृजन नहीं हो सका ।साथ ही, 2013-19 के बीच स्वीकृत सामुदायिक परिसंपत्तियों के 15 कार्यों की अनुमानित लागत का पुनरीक्षण नहीं करने से 1.38 करोड़ रुपए की बर्बादी हुई और वो अधूरे ढांचे पर खर्च हो गए।
बगैर योजना बना दिए 7 सामुदायिक केंद्र
काम और गुणवत्ता प्रबंधन के लिए राज्य और चयनित जिलों में कोई गुणवत्ता निगरानी प्रकोष्ठ नहीं बनाया गया था ।रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि चयनित 7 से 52 ग्राम पंचायतों में सामुदायिक आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की कोई योजना नहीं बनाई गई और अन्य योजनाओं के साथ एकीकरण का प्रयास नहीं हुआ।
फर्जी नामों से निकाले गए पैसे
मुरैना में जांच से पता चला कि सरकारी रिकार्ड में ऐसे लोगों को मजदूर दिखाया गया जिनकी जाति या सरनेम से संबंधित कोई भी व्यक्ति गांव में मौजूद नहीं है। इनमें 36 लोग शर्मा 12 गुप्ता और अन्य अग्रवालए बंसल, उपाध्याय और पाठक सरनेम वाले शामिल हैं। मनरेगा योजना का उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में बेरोजगार लोगों को काम उपलब्ध कराना हैए लेकिन इस योजना के तहत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार सामने आया है। पंचायतों के जिम्मेदार अधिकारियों ने मिलीभगत कर फर्जी नामों से जाब कार्ड बनाए और मजदूरी की राशि हड़प ली। मुरैना में मामले की जांच के बाद जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी सीईओ कमलेश कुमार भार्गव ने चार पंचायत सचिवों को निलंबित कर दिया साथ ही छह ग्राम रोजगार सहायकों को शासकीय कार्य से पृथक कर दिया गया।