
chunari yatra till annapurna darbar
बालाघाट। नववर्ष बालाघाट जिले में आस्था महोत्सव मनाया गया। बालाघाट जिले के धार्मिक स्थलों के लिए कई जगह से चुनरी यात्रा निकाली गई। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर माँ अन्नपूर्णा का दरबार का है। जहाँ मातारानी को चुनरी भेंट की गई। यह चुनरी यात्रा गोंगलई गांव के ग्रामीणों ने निकाली और मातारानी के कोठीपाठ धाम पहुंचकर माँ अन्नपूर्णा को चुनरी भेट की।
भक्तों की आस्था है
सतपुड़ा के घने जंगलों और पहाड़ों पर हिन्दू देवी देवताओं का वास है। जहां दूर दराज से श्रद्धालु दर्शन को पहुंचते हैं। हिन्दू देवी.देवताओं के अनेकों धामों में एक धाम माँ अन्नपूर्णा का भी है, जो बालघाट जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूराम गड़दा बुढेना की पहाड़ी पर विराजमान है। यहाँ पहुंचने वाले भक्तों में मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां आकर मातारानी की पूजा आराधना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
श्रद्धा का केन्द्र बना
नए साल के अवसर पर ग्रामीण मातारानी के दिव्य दरबार मे माँ के लिए लाल चुनरी लेकर पहुंचे है। माॅ अन्नपूर्णा को मुरादों वाली और खजाने वाली माता भी कहा जाता है। ऊंची पहाड़ी और पथरीले रास्तो से गुजरकर माता के दरबार पहुंचकर देश मे अमन शांति की मन्नत रखी। घने जंगल और ऊंची पहाड़ी पर स्थित मुरादों वाली माँ अन्नपूर्णा का दरबार निश्चित ही सच्ची आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
इतिहास से जुड़ी है आस्था
बताया जाता है कि वर्ष 2006 में माँ अन्नपूर्णा ने गाव के ही वीरसिंह अडमे नामक व्यक्ति को मातारानी ने स्वप्न देकर स्वयं के प्रकट होने की जानकारी दी थी। उसके बाद लोगों ने उक्त स्थान पर जाकर देखा तो माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति नजर आई। बस तभी से लोगों ने अन्नपूर्णा देवी की पूजा अर्चना शुरू कर दी। आज इस धाम की कीर्ति दूर दूर तक फैल रही है। भक्तों की मानता है कि माता की मूर्ति के पीछे से एक सुरंग भी है जो खजाने तक पहुंचती है। इसलिए माँ अन्नपूर्णा को खजाने वाली माता भी कहा जाता है। माता के खजाने की रक्षा स्वयं माता के दो भूरे शेर और शेषनाग करते हैं। इसलिए आज तक उस खजाने तक कोई पहुंच नहीं पाया है। माँ की महिमा अपार है। लोग अपनी मुरादें पूरी होने की चाह में यहां आते हैं।