
Kejriwal will contest election from two seats in delhi
नई दिल्ली।(ब्यूरो)। एलजी विवेक सक्सेना ने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के पक्ष में एक चिट्ठी लिखकर अरविंद केजरीवाल के बीच तकरार की रेखा खींचने की सियासी चाल चली है। उन्होने अपनी चिट्ठी में केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को अस्थायी मुख्यमंत्री कहकर अपमान करने की बात कही। इसके पीछे उनका क्या मकसद है, यह सियासी गलियारे में सभी समझ रहे हैं।सवाल यह है कि आतिशी क्या एलजी के पत्र को गंभीरता से लेगी। वैसे उन्होंने एलजी के पत्र पर कोई विवाद उठे उससे पहले दो टुक कह दिया है कि एलजी दिल्ली की बेहतरी के बारे में सोचें। लेकिन क्या वाकयी में आतिश उनके पत्र की बात को मन से खत्म कर दी हैं। आतिशी क्या अरविंद केजरीवाल के खिलाफ जा सकती हैं,यह सवाल विपक्ष के मन में बार बार उठ रहा है।
प्रशांत और योगेन्द्र लाए थे आतिशी को
सियासी सोच रखने वालों कहते हैं कि आतिशी और केजरीवाल मे एलजी की चिट्ठी अविश्वास का जहर फैला सकती है।यदि थोड़ी भी दोनों के बीच अविश्वास को जगह मिली तो चुनाव में खेला हो सकता है। वैेसे भी कांग्रेस ने आप से पल्ला झाड़ ली है। और आप कह रही है कि कांग्रेस अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी की मदद कर रही है।देखा यह जा रहा है कि आतिशी और केजरीवाल के बीच पिछले कुछ सालों से मुधुर सियासी रिश्ते बन गए हैं। केजरीवाल के जेल जाने के बाद आतिशी के पास सबसे ज्यादा जिम्मेदारी आई थीं। तमाम मंत्रालय संभालने से लेकर हर मुद्दे पर पार्टी का स्टैंड स्पष्ट करने तक आतिशी काफी सक्रिय दिखाई पड़ीं। लेकिन सन् 2015 में आतिशी ने अपने गुरु माने जाने प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव के साथ बगावत कर चुकी हैं। अपने दोनों नेताओं को काफी कुछ सुना दी थी। जबकि आतिशी को योगेन्द्र यादव ही आम आदमी पार्टी में लाए थे। उस नजरिये से यह कहा जा रहा है कि आतिशी अपने पासे बदल सकती है।
प्रवक्ता पद गंवा दी थी आतिशी
दोनों सियासी रूप से काफी करीब थे और एक दूसरे के विचारों से प्रेरित भी माने जाते थे। लेकिन योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण से समय समय पर अरविंद केजरीवाल के साथ तकरार रही। कई मुद्दों पर जब असहमति बनने लगी तो फैसला लिया गया कि अलग राहें करनी जरूरी है। इसी वजह से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने आम आदमी पार्टी छोड़ दी। लेकिन उनका आप छोड़ना आतिशी को भी खासा नुकसान दे गया। ऐसा इसलिए क्योंकि उस एक लड़ाई की वजह से आतिशी ने प्रवक्ता का पद गंवा दिया था।
केजरीवाल के सिद्धांत और आतिशी
आतिशी अपने सियासी गुरू योगेन्द्र यादव के खिलाफ चली गयी थीं। प्रषांत भूषण का साथ छोड़ कर एकला चलो की रणनीति पर काम करने लगी। वो चाहती तो योगेन्द्र यादव का साथ देती। केजरीवाल का साथ छोड़ देतीं। लेकिन उन्होेन ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा कि केजरीवाल का सिद्धांत और उनकी कार्यशैली मुझ पसंद है।
बगावत का इंतजार है विपक्ष को
आतिशी ने जब योगन्द्र और प्रशांत भूषण का साथ छोड़ा था, तब लिखा था कि प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव पार्टी के संस्थागत ढांचे को स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। ज्यादा दुख इस बात का होता है कि जो भी कदम यह दोनों नेता उठाएंगे वो भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी लड़ाई को कमजोर करेंगे। जब भी सार्वजनिक रूप से इस तरह के मुद्दे को उठाते रहेंगे पार्टी के लिए जवाब देना और ज्यादा मुश्किल होगा। उसके बाद से आतिशी ने केजरीवाल का साथ नहीं छोड़ा। आबकारी मामले में केजरीवाल के जेल जाने के बाद आतिशी ने पार्टी के लिए खूब मेहनत की। लेकिन 2015 के मामले को विपक्ष एक बार फिर रंग दे रहा है। अंदेशा यही किया जा रहा है कि आतिशी के मन में केजरीवाल को लेकर यदि थोड़ा सा भी खोट की भावना ने जगह बनाई तो सियासी इतिहास अपनी पटकथा एक बार फिर दोहरा सकता है। और ऐसा हुआ तो आतिशी योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ जैसा किया था केजरीवाल के साथ भी कर सकती है। बहरहाल विपक्ष के पास केवल इंतजार के सिवा अभी कुछ नहीं है।