
जयपुर।( सुधीर मिश्रा) । अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अब भी सियासी 36का रिश्ता है। सचिन कब राजस्थान लौटेंगे यह सवाल बना हुआ है। क्यों कि राजस्थान में सचिन पायलट अशोक गहलोत से ज्यादा लोकप्रिय है। वैसे राजस्थान की 7 सीटों पर हो रहे विधानसभा के उपचुनाव भजनलाल सरकार के लिए अग्निपरीक्षा है। वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट के लिए भी यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। क्यों कि इन 7 सीटों के नतीजे तय करेंगे कि सचिन पायलट की रेगिस्तान की सियासत में वापसी कब हो पाएगी।
दिल्ली हुए थे शिफ्ट
गौरतलब है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आंतरिक लड़ाई कम नहंी हुई। इसेे सुलझाने के लिए कांग्रेस ने सचिन पायलट को दिल्ली शिफ्ट कर दिया।मल्लिकार्जुन खरगे की नई टीम में पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया। छत्तीसगढ़ में हो रहे उपचुनाव मंे भ वो प्रचार कर चुके हैं। मध्यप्रदेश मंे बुधानी विधान सभा चुनाव भी गए। महाराष्ट्र में हो रहे चुनाव में भी उन्हें स्टार प्रचार की सूची में शामिल किया गया है। झारखंड में चुनाव प्रचार करने जाएंगे। जाहिर सी बात है कि चुनाव प्रचार का जिम्मा सचिन पायलट को कांग्रेस हाईकमान ने दिया है। ऐसे में उनकी वापसी राजस्थान में कब होगी,राजस्थान के लोग सवाल करने लगे हैं।पायलट काफी दिनों से दिल्ली की ही राजनीति कर रहे हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि उनकी नजर राजस्थान की ही सियासत पर है। उनकी कोशिश जल्द से जल्द राजस्थान की पिच पर लौटने की हैए जिससे 2028 के विधानसभा चुनाव में बड़ा खेल किया जाए।
पायलट का गढ़
राजस्थान में जिन 7 सीटों पर उपचुनाव कराए जा रहे हैं।उनमें से 3 सीट दौसा, देवली.उनियारा और झुंझुनू की सीट पायलट का गढ़ माना जाता है। दौसा से पायलट के करीबी मुरारी लाल मीणा, देवली से हरीश मीणा और झुंझुनू से बृजेंद्र ओला चुनाव जीते थे लेकिन तीनों 2024 में सांसद बन गए। इन सीटों पर पायलट के ही समर्थकों को टिकट दिया गया है। देवली उनियारा पायलट की टोंक के बगल की सीट है। इसी तरह दौसा से पायलट पहले सांसद रह चुके हैं।झुंझुनू सीट ओला परिवार का गढ़ है,कि जो पायलट के साथ हैं।इन तीनों ही सीटों के परिणाम तय करेंगे कि पायलट अभी भी अपने गढ़ पर मजबूत पकड़ रखते हैं या नहीं।
कांग्रेस कितनी मजबूत
दौसा, देवली और झुंझुनू के अलावा रामगढ़ए सलंबूर, चैरासी और खींवसर में उपचुनाव हो रहे हैं। रामगढ़ में कांग्रेस का कब्जा था। वहीं सलंबूर में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। चैरासी में बाप और खींवसर में हनुमान बेनीवाल चुनाव जीते थे। इस बार इन सीटों पर टिकट बंटवारे में प्रदेश कांग्रेस की चली है। खींवसर में तो बीजेपी से टिकट की जुगाड़ में जुटे रतन चैधरी को कांग्रेस ने टिकट दिया है। सलंबूर और चैरासी में भी प्रदेश कांग्रेस की ही चली है।रामगढ़ में दिवंगत जुबैर खाने के बेटे को उम्मीदवार बनाया गया है। 2024 के चुनाव में राजस्थान की 25 में से 11 सीटों पर कांग्रेस गठबंधन ने जीत हासिल की थी।कहा जा रहा है कि उपचुनाव में अगर कांग्रेस को उम्मीद से कम सीटें मिलती है तो प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व पर सियासी दबाव बन सकता है।
डोटासरा पर नजर
सन् 2020 में बगावत के वक्त राजस्थान कांग्रेस की कमान जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा को सौंपी गई थी। डोटासरा के अध्यक्ष रहते कांग्रेस ने 2023 और 2024 के चुनाव में ठीक-ठाक परफार्मेंस किया।जाट भी खुलकर कांग्रेस के पक्ष में आए थे। डोटासरा का 4 साल का कार्यकाल पूर्ण हो चुका है।उदयपुर डिक्लेरेशन के मुताबिक डोटासरा अधिकतम 5 साल तक ही प्रदेश अध्यक्ष रह सकते हैं।ऐसे में कहा जा रहा है कि उनके 5 साल का कार्यकाल पूरा होते ही नए अध्यक्ष की तलाशी शुरू होगी। अगला चुनाव कांग्रेस बनाए गये अध्यक्ष के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। अब देखना है कि दिल्ली कब सचिन पायलट को राजस्थान भेजती है।