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नई दिल्ली (रमेश तिवारी ‘रिपु’)। अरविंद केजरीवाल आंदोलन से आए थे। रेवड़ी पर सरकार बनाई। और गलती से उनकी सरकार चली गयी। उन्होंने बड़े ताव में आकर कहा कि यदि मैं ईमानदार नहीं हूं तो मुझे वोट नहीं देना। जनता ने यही किया। उन्हें इस बार दिल्ली विधान सभा नहीं पहुंचाया। कांग्रेस का तीसरी बार भी खाता नहीं खुला।अरविंद केजरीवाल से गठबंधन तोड़कर कांग्रेस ने न केवल अपना नुकसान किया बल्कि केजरीवाल का भी नुकसान किया। कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को 14 सीटों का नुकसान किया। यानी दोनों के बीच तालमेल होता तो 36 सीट मिलती। और बीजेपी 34 सीट पर सिमट जाती। पीएम मोदी ने आम आदमी पार्टी को आपदा पार्टी नाम देकर हलचल मचा दिये थे।बीजेपी ने चुनाव में दस पोस्टर आप के खिलाफ जारी किये। पोस्टर का असर चुनाव में दिखा। बीजेपी 27 साल बाद दिल्ली जीत ली। अब इस जीत से सबसे ज्यादा सियासी नुकसान आम आदमी पार्टी के होने का अंदेशा है।
28 दिसंबर 2013 को अरविंद केजरीवाल ने पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
आप का सियासी भविष्य खतरे में
कांग्रेस की वजह से आम आदमी पार्टी 14 जिन सीटों पर हारी वहां बहुत कम वोटों से हार हुई है। मनीष सिसोदिया मात्र 698 वोट से हारे। यानी एक हजार वोट के अंतर में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी हार गए। कंागे्रस ने विधान सभा चुनाव में गठबंधन न करके दिल्ली की राजनीति से न केवल दूर हुई बल्कि बीजेपी को सक्रिय कर दिया। बीजेपी की दिल्ली में भी सरकार बनवा दी। अब इस चुनावी परिणाम से आम आदमी पार्टी का भविष्य खतरे में है। विधान सभा में केजरीवाल नहीं रहेंगे लेकिन उनकी पार्टी के विधायक रहेंगे। लेकिन कब तक स्वयं केजरीवाल भी नहीं जानते। देर सबेर उनकी पार्टी के विधायक टूट कर बीजेपी में जा सकते हैं।उनकी पार्टी में कौन शिंदे बन जाएगा ,स्वयं केजरीवाल भी नहीं जानते। मात्र 22 विधायक उनकी पार्टी से जीते हैं। चूंकि केजरीवाल चुनाव हार गय हैं। इसलिए पार्टी के लोग उन्हें अपना नेता मानेंगे इसमें सदेह है।आतिशी चुनाव जीत गयी हैं। ऐसे में पार्टी की बागडोर उन्हंी के हाथ में रहेगी। नेता प्रतिपक्ष वही बनेंगी। मनीष सिसोदिया भी चुनाव हार गये हैं। दिल्ली की जनता ने दो बार केजरीवाल को बहुत बड़ी जीत दी। इस बार हार भी उतनी ही बड़ी दी।
केजरीवाल ईमानदार नहीं
शराब घोटाले में जमानत मिलने के बाद केजरीवाल ने 15 सितंबर को इस्तीफा देते हुए कहा था कि मैं सीएम की कुर्सी पर तब तक नहीं बैठूंगा, जब तक जनता अपना निर्णय न सुना दे। अगर मैं बेईमान हूं तो मुझे वोट मत देना। केजरीवाल की हार का मतलब यही है कि जनता उन्हें ईमानदार नेता नहीं मानती। मोदी ने संसद में भी कहे थे कि पैसा बचा तो देश बनाया,शीशमहल नहीं बनाया। बीजेपी इस बार अरविंद केजरीवाल के खिलाफ शुरू से तीखा हमला करती रही।7 जनवरी को दिल्ली LG वीके सक्सेना ने केजरीवाल के घर पर एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) को भेज दिया। ACB की टीम केजरीवाल, सांसद संजय सिंह और मुकेश अहलावत के घर जांच के लिए पहुंची। करीब डेढ़ घंटे तक केजरीवाल के घर में जांच की, लीगल नोटिस दिया और रवाना हो गई।
कांग्रेस की शाख पर बैठे हैं कालिदास
कांग्रेस की हर शाख पर कालिदास बैठे हैं। राहुल गांधी को सलाह देने वाले उन्हंे गलत सलाह देते हैं। उसी का नतीजा है कि हरियाण,महाराष्ट्र चुनाव हारने के बाद दिल्ली भी हार गए। कायदे से उन्हें बीजेपी की राजनीति करनी चाहिए। कांग्रेस ने कौन कौन सी गलती की यदि वो पीछे मुड़कर देखे तो उसे समझ में आ जाएगा। जैसा कि लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस नेता गोपाल राय और कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा था कि गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए था, दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे। कांग्रेस 5 से 10 सीटें चाहती थी, लेकिन 1 दिसंबर 2024 को केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे। केजरीवाल के इनकार के बाद कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। इसके बाद कांग्रेस ने भी अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। और दोनों तरफ से आक्रामक बयानबाजी शुरू हो गई।
कांग्रेस ने आप को हराया
कांग्रेस दिल्ली में आप के कुशासन के खिलाफ जिस समय पदयात्रा निकाल रही थी। कांग्रेस नेता अजय माकन ने केजरीवाल को देशद्रोही और फर्जी कह चुके थे। आप सरकार के कथित शराब घोटाले के विरोध में कांग्रेस की रैलियों में नारे लिखे हुए शराबनुमा गुब्बारे उड़ाए जा रहे थे। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस स्वयं अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने का इंतजाम कर रही थी। कांग्रेस ने केवल अपना नुकसान नहीं किया बल्कि आप का भी नुकसान किया। उसकी वजह से 14 सीटों पर आम आदमी पार्टी का नुकसान हुआ। केजरी वाल चुनाव से पहले ठीक ही कह रहे थे कि कांग्रेस बीजेपी को जीताने में लगी है।
प्रचार ठंडा पड़ गया
इंडिया गठबंधन के कई नेता कांगे्रस से बायें होने की बात किये तब भी राहुल गांधी एकला चलो की राह पकड़ी। जबकि अखिलेश यादव, ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने केजरीवाल को समर्थन दिया तो कांग्रेस अकेले पड़ गई। अजय माकन ने कहा था कि वह केजरीवाल की पोल खोलने के लिए प्रेस चुनाव करेंगे, लेकिन ऐलान के बाद भी प्रेस कान्फ्रेंस नहीं हुई। उनका प्रचार ठंडा पड़ गया था।
कांग्रेस के पास विकल्प नहीं
कांग्रेस को लग रहा था कि हरियाणा चुनाव में उसकी हार की वजह आप के साथ गठबंधन न करना था। केजरीवाल के गठबंधन से इनकार करने के बाद कांग्रेस के पास दिल्ली में अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती थी। पार्टी के पास दिल्ली में सिर्फ 4 फीसदी वोट शेयर था। कई नेता पार्टी छोड़ने को तैयार थे। ऐसे में उसके पास चुनाव लड़ने का ही विकल्प बचा।
आप छोड़ बीजेपी में गए
जब राहुल ने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिए तो केजरीवाल ने पलटवार में कहा आज राहुल गांधी ने मुझे खूब गालियां दीं, लेकिन मैं उनके बयानों पर टिप्पणी नहीं करूंगा। उनकी लड़ाई कांग्रेस को बचाने की है, मेरी लड़ाई देश को बचाने की है। चुनाव के वक्त आम आदमी पार्टी के छह विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए। इसका भी नुकसान आप को हुआ।
कांग्रेस के लिए आप टारगेट
एक रैली में राहुल गांधी ने कहा कि हमेशा लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहती थी। ये आम आदमी पार्टी बीच में कैसे आ गई। इस बार चुनाव में अजय माकन ने साफ तौर पर कहा कि हमारा पहला टारगेट आप है।राहुल गांधी ने केजरीवाल पर सीधा हमला करते हुए कहा केजरीवाल और मोदी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।आप नेता और दिल्ली की सीएम आतिशी ने कहा, अब कांग्रेस की दिल्ली में मौजूदगी नहीं बची है। लोगों में मानसिकता है कि उसे वोट देना वोट की बर्बादी है। दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा बीजेपी भ्रष्ट नेताओं को भाजपा की वाशिंग मशीन में डालती है, जबकि केजरीवाल ने खुद को वाशिंग मशीन में डाल लिया है। दिल्ली ने उनके भ्रष्टाचार को देखा है वो उनके झूठ में नहीं फंसेंगे।
अब क्या करेंगे केजरीवाल
केजरीवाल दिल्ली चुनाव हारने के बाद अब अपने दूसरे गढ़ पंजाब को बचाने में जुट जाएगी। दिल्ली हारने से पंजाब के आप नेताओं का मारल डाउन होगा। भले ही वहां बीजेपी की दो सीटें हैं। लेकिन इतिहास बताता है कि बीजेपी 2 को 20 में बदल सकती है। पहले भी उसने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ऐसा किया है। चूंकि केजरीवाल की लीडरशिप में पार्टी चुनाव हारी है ऐसे में पार्टी का संयोजक यानी अध्यक्ष बदल सकता है। केजरीवाल की मर्जी से मनीष सिसोदिया, संजय सिंह या सौरभ भारद्वाज जैसे मुखर नेता को संयोजक बनाया जा सकता है। केजरीवाल की नजर दूसरे राज्यों में अपनी पार्टी के फैलाव की दिशा में काम करना मकसद रहेगा।