
मुंबई। उद्धव ठाकरे की वजह से बीजेपी को अपनी सियासी जमीन बदलना पड़ गया है। गठबंधन में है लेकिन कम सीटों पर लड़ना उसकी मजबूरी है। क्यों कि पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार सियासी समीकरण बदल गया है।एक तरफ अगर कांग्रेस सबसे कम सीटों पर चुनाव पहली बार लड़ रही है तो दूसरी तरफ बीजेपी ने भी गठबंधन धर्म निभाते हुए कम सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
कांग्रेस और बीजेपी के कम सीटों पर चुनाव लड़ने से इस बार चुनाव दिलचस्प हो गया है। महाविकास अघाड़ी और महायुति में कौन मुख्यमंत्री होगा यह भी दिलचस्प है। इसलिए कि दोनों पार्टियों ने मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा बताया नहीं है। देश की सबसे बड़ी पार्टी के लिए यह ट्रेंड हैरान करने वाला है क्योंकि ज्यादातर चुनावों में यही देखा गया है कि बीजेपी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की कोशिश करती है लेकिन महाराष्ट्र में केस पूरी तरह पलट चुका है। इस बार एकनाथ शिंदे और अजित पवार की पार्टी को साथ लेकर चलने की वजह से बीजेपी को अपनी कई सीटें छोड़नी पड़ी है। इसे देवेंद्र फडणवीस गठबंधन धर्म बता रहे हैं। पार्टी के लोग इसे बीजेपी की सियासी मजबूरी बता रहे हैं।
बीजेपी 15 कम सीटों पर
महाराष्ट्र की कुल 288 विधानसभा सीटों में इस बार भाजपा 148 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अगर पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी इस बार 15 कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे की पार्टी को सीधा फायदा पहुंचा है और वह इस बार 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुके हैं। दूसरी तरफ अजित पवार की एनसीपी 53 सीटों पर खड़ी हुई है। अब बीजेपी इस बार अगर कुछ कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो इसके अपने कारण सामने आते हैं।
सत्ता विरोधी लहर को पाटना जरूरी
विपक्ष यह मानकर चल रहा है कि राज्य में सत्ता विरोधी लहर है। हरियाणा में भी यही स्थिति थी। लेकिन राजनीति जमीन अलग अलग है। सबसे पहले तो समझने वाली बात यह है कि भाजपा के खिलाफ राज्य में सत्ता विरोधी लहर कायम है। महाराष्ट्र में ओबीसी कार्ड नहीं चलेगा यह बात बीजेपी जानती है। इसलिए उसने अपने सहयोगी दलों के लिए वो सीट छोड़ दी जहां वो कमजोर है। ऐसा उसने इसलिए किया ताकि उसका सियासी रेट बना रहे।
बीजेपी की नई चाल
महाराष्ट्र में माराठा आरक्षण का गुस्सा खत्म नहीं हुआ है। बीजेपी जानती है। इसलिए वो शिवसेना और एनसीपी से हाथ मिला ली है। बीजेपी मराठा आरक्षण का विरोध करती है। इस मामले से निपटने के लिए वो दोनों को आगे कर देती है। बीजेपी ने कई सीटों पर अपनी पार्टी के लोगों को शिवसेना और एनसीपी के सिंबल से चुनाव लड़ा रही है ताकि पार्टी में असंतोष का कम किया जा सके। भाजपा नेता नारायण राणे के बेटे नितेश राणे एकनाथ शिंदे की पार्टी की तरफ से चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। चुनाव से ठीक पहले उन्होंने बीजेपी छोड़ एकनाथ शिंदे की पार्टी ज्वाइन की और फिर उन्हें कुडाल मालवन सीट से उम्मीदवार बना दिया गया। इसी तरह बीजेपी की प्रवक्ता शाईना एनसी इस बार मुंबादेवी से चुनाव लड़ रही हैं। पहले वे बीजेपी की टिकट पर मुंबादेवी से ही टिकट चाहती थीं। लेकिन जब गठबंधन धर्म की वजह से यह सीट शिवसेना के खाते में चली गई तो शाईना ने बीजेपी छोड़ शिंदे की पार्टी ज्वाइन की और फिर वहां से चुनावी मैदान में उतर गईं। इस तरह से उनके सहयोगी पार्टियों को ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला है।

यह कह सकते हैं कि बीजेपी ने कई सीटों पर चुनाव ना लड़ते हुए भी अपने ही उम्मीदवार उतार दिए हैं। यानी भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले कुछ अतिरिक्त सीटों पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पार्टी के सामने चुनौतियां कम हैं। एक तरफ अगर मराठा आरक्षण वाला मुद्दा भाजपा के लिए सिर दर्द बना हुआ है तो दूसरी तरफ उनकी पार्टी के सबसे बड़े नेता देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण समुदाय से आते हैं।जिनका महाराष्ट्र में असर एकनाथ शिंदे की वजह से कम हो गया है। राज्या की सबसे बड़ी समस्या है किसानों की नाराजगी बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी बीजेपी को बैकफुट पर कर देते हैं।
एक सच यह
2019 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन था। बीजेपी ने 105 सीटें और शिवसेना ने 56 सीटें जीती। गठबंधन से एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं थी। भाजपा-शिवसेना आसानी से सत्ता में आ जाती पर मनमुटाव के कारण गठबंधन टूट गया। इस बार बीजेपी डरी डरी हुई है लोकसभा चुनाव के परिणाम से। बीस सीट से कम नहीं जीतने वाली बीजेपी नौ सीट पर आकर सिमट गयी थी।