
All parties want to win bhiar on their own
पटना (ब्यूरो)। बिहार की राजनीति में इस बार के विधान सभा चुनाव में अलग ही सियासी तस्वीर बनने वाली है। इसलिए कि सभी राष्ट्रीय पार्टियां अब किसी भी क्षेत्रीय दल से हाथ मिलाने की फिराक में नहीं है। हरियाणा और दिल्ली के चुनाव से स्पष्ट है कि कांग्रेस एकला चलो की राजनीति पर यकीन करने लगी है। वहीं बुधवार को हुए मंत्रिमंडल विस्तार से स्पष्ट है कि बीजेपी अपने दम पर बिहार जीतना चाहती है। वो जदयू के कंधे पर हाथ रखकर नहीं चलना चाहती।
अपने दम पर लड़ेंगे चुनाव
लालू प्रसाद यादव अभी से अपना सियासी गणित की सूत्र बदलने में लगे हैं। यादव और मुस्लिम वोटर के दम पर चुनाव नहीं लड़ना चहाते है। वो जानते है ये हमारा वोटर है,हमसे छिटक कर नहीं जाने वाला। कांग्रेस और बीजेपी का जो वोट बैंक है उस पर फोकस करना है। लालू यादव भी इस बार बिहार में किसी अन्य दल से हाथ मिलाने के फिराक में है। कांग्रेस पहले से ही मन बना चुकी है कि वो तय सीट पर चुनाव नहीं लड़गी। जाहिर सी बात है कि इस बार क्षेत्रीय दल हो या फिर राष्ट्रीय दल दोनों अपने अपने तरीके से चुनाव लड़ना चाहते हैं।
लव कुश समीकरण पर बीजेपी
सियासी फार्मूले को वर्ष 2005 की सियासी तस्वीर से समझा जा सकता है। जनता दल यू और भाजपा का जातीय समीकरण का मुख्य आधार भी बिल्कुल स्पष्ट था। भाजपा सवर्ण और वैश्य तो जदयू लव-कुश समीकरण को विशेष रूप से साधती थी और संतुलित भी करती थी। कभी भी भाजपा या जदयू इस अंदरूनी समझौते को काटती नहीं थी। यही वजह भी है कि भाजपा 2022 तक कुर्मी या कुशवाहा से मंत्री नहीं बनाती थी। भाजपा में इसे लेकर कुर्मी और कुशवाहा विधायकों में नाराजगी भी रहती थी। लेकिन 2022 के बाद भाजपा कदम दर कदम बढ़ाते गई। इस मंत्रिमंडल विस्तार में ये खुल कर बात सामने आ गई कि लवकुश समीकरण को भाजपा अपने भरोसे साधेगी और नीतीश कुमार पर अपनी निर्भरता भी धीरे-धीरे समाप्त करेगी।
राजनीति आंगन में क्या चल रहा
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एक समय ये कहा था कि क्षेत्रीय पार्टियों का सफाया निश्चित है। मगर, आज के राजनीतिक हालात में देखें तो न केवल भाजपा बल्कि राष्ट्रीय कांग्रेस भी अब क्षेत्रीय पार्टी से पीछा छुड़ाते दिख रही है। बिहार की बात करें तो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी, क्या बीजेपी और क्या कांग्रेस, सभी अपनी-अपनी अस्तित्व को मजबूत करती दिख रही है। आखिर, चुनाव से पहले बिहार के राजनीति आंगन में क्या चल रहा है?
जेपी नड्डा ने कहा था
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पिछले दिनों कैलाशपति मिश्र के जन्मशताब्दी समारोह के दौरान कहा था कि देश से सारी क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएंगी और सिर्फ बीजेपी रहेगी। हमारे सामने कोई नहीं टिक सकता है। हमारे पास अपनी विचारधारा है। हम विचारों की लड़ाई लड़ते हैं। कैडर आधारित पार्टी है। हमारी लड़ाई परिवारवाद और वंशवाद से है और इसीलिए हम बने रहेंगे।
कांग्रेस कुछ और सोच रही
अगर, झारखंड छोड़ दें तो हाल में हरियाणा और दिल्ली की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भी क्षेत्रीय दलों से मुक्त होते दिखी। मगर, कांग्रेस इस बात से खुश है कि हरियाणा और दिल्ली ने भले सरकार भाजपा की बनी पर कांग्रेस के वोट प्रतिशत बढ़े। कांग्रेस इसे यह मान रही है कि कांग्रेस अपनी पुश्तैनी वोट को हासिल करते दिख रही है। बिहार के संदर्भ में भी बात करें तो कांग्रेस ने गत लोकसभा में तीन सांसद लोकसभा में भेज कुछ फिलगुड महसूस करने लगी है। यही वजह भी है कि कांग्रेस ने न केवल 70 विधानसभा सीटों पर लड़ने की दावेदारी पेश की है बल्कि ये भी कहा है कि वे गिनती वाली सीट नहीं लेगी। अब वे उन सीटों पर लड़ेगी जहां उन्हें जितने की उम्मीद है। कांग्रेस ने अपने इस तेवर को भी दिखा दिया है कि वे सीटों के बंटवारे से संतुष्ट नहीं हुई तो अकेले भी चुनावी में जा सकते हैं।
सबकी नजर कृष्ण पर
कांग्रेस ने अपने इस तेवर का इजहार भी बिहार के नए प्रभारी के साथ कर दिया है। अब बिहार के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरु प्रदेश कांग्रेस की नीति का निर्धारण आलाकमान से मिल कर करेंगे। अल्लावरु फिलहाल युवा कांग्रेस के प्रभारी हैं और उनकी गिनती राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के करीबियों में होती है। वहीं, दूसरी ओर, राहुल गांधी भी बिहार विधानसभा चुनाव में विशेष दिलचस्पी दिखा रहे हैं। पिछले 1 महीने में वो दो बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। यहां उन्होंने कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात की। अब कर्नाटक से आने वाले कृष्णा अल्लावरु बिहार में क्या प्रभाव डालते हैं और कांग्रेस को राजद की छत्र-छाया से निकाल पाते हैं कि नहीं, इस पर सबकी नजर रहेगी।
जदयू एक भी सीट नहीं पाएगी
बिहार चुनाव से पहले हर दल अपनी बिसात जमाने में लग गए हैं। लेकिन एक बात है इस बार बीजेपी नीतीश को गच्चा देने की फिराक में है। वहीं लालू भी कांग्रेस के साथ हाथ मिलाएंगे इसमें संदेह दिख रहा है। हो सकता है कि एक बार फिर नीतीश- लालू के साथ हाथ मिला लें। ऐसा तभी होगा जब उन्हें लगेगा कि बीजेपी उन्हें सीएम नहीं बनाएगी या फिर उनकी सियासी हैसियत कम करने की फिराक में है,तो वो लालू से हाथ मिला सकते हैं। वैसे प्रशांत किशार दावा कर रहे हैं कि इस बार जदयू एक भी सीट नहीं पाएगी। उनका दावा कितना दमदार है,अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। जब तक बिहार में सीटों की घोंषणा नहीं हो जाती।