
Action will be taken against those who burn narwai
बालाघाट। पर्यावरण विभाग और जिला कलेक्टर ने समस्त किसानों को निर्देश दिया है कि वो अपने खेेत में नरवाई न जलाएं। अन्यथा उनके खिलाफ जुर्माने के साथ दण्डनात्मक कार्रवाई की जाएगी। देखा गया है कि किसान कटाई के बाद खेत में फसल के अवशेषों को जला दिया करते थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। क्यों कि इससे जनहाॅनि के साथ ही पर्यावरण पर इससे असर पड़ता है। बढ़ते प्रदूषण को देखकर इस पर रोक लगाया गया है। प्रशासन का मानना है कि नरवाई के जलाने से न केवल जमीन की उर्वरा ताकत क्षीण होती है बल्कि, आग की वजह से जन हाॅनि की आशंका बनी रहती है।
जुर्म है नरवाई जलाना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एयर प्रवेंशन एंड कंट्रोल आॅफ पाल्यूशन एक्ट 1981 अंतर्गत प्रदेश में विशेषतः धान एवं गेहूं की कटाई उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने को प्रतिबंधित किया गया हैं। आदेश का उल्लंघन करने वालों के विरूद्ध भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 223 एवं आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 51 से 60 एवं वायु प्रदुषण निवारण और नियंत्र अधिनियम 1981 के तहत दण्डानात्ममक एवं जुमार्ने की कार्यवाही की जावेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर रोक लगाया है। पर्यावरण विभाग ने निर्देश जारी किया है कि जिले के समस्त किसान बेलर जैसे यंत्रों का उपयोग करें।नरवाई को न जलायें और एफ आई आर और अर्थदण्ड की कार्रवाई से बचे।
जमीन की उर्रवरक क्षमता में कमी
कृषि वैज्ञनिक पल्लवी तिवारी ने कहा कि पराली में आग लगाने में भूमि की ऊपरी परत जलकर कठोर हो जाती है। जिससे भूमि में वायु और जल का संचार कम हो जाता है। जमीन की आॅक्सीजन खत्म हो जाती है। इसके अलावा भूमि में रहने वाले लाभदायक जीवों एवं अदृश्य सुक्ष्म जीवों की संख्या कम हो जाती है। मित्र जीवाणुओं की संख्या कम होने पर जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। पशुओं के लिये चारे की उपलब्धता कम हो जाती है।