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राष्ट्रमत न्यूज,नई दिल्ली(ब्यूरो)। बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची को लेकर राजनीतिक दलों में घमासान है। चुनाव आयोग ने 65 लाख वोटरों का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया है। अभी जांच चल रही है। संख्या और बढ़ सकती है। विपक्ष चुनाव आयोग की प्रक्रिया की खिलाफत सड़क से संसद तक कर रहा है। वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर विपक्ष राज्य सभा में अपनी आवाज उठा ही चुका है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की इस एक्सरसाइज को समाज के गरीब लोगों के वोट काटने की साजिश बताया है। बिहार के वोटरों के साथ विपक्ष इसे धोखाधड़ी बता रहा है। इस मामले में 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। रिवीजन के पहले चरण का काम पूरा हो गया है और इसमें बिहार के करीब 8 फीसदी मतदाता यानी 65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए हैं।
वोटर के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी
सुनवाई से पहले गैर सरकारी संगठन (ADR) ने सुप्रीम कोर्टमें अपना जवाब दाखिल किया है। यह जवाब चुनाव आयोग के हलफनामे के काउंटर में दिया गया है। ADR ने कहा है कि बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह की एक्सरसाइज राज्य के मतदाताओं के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी है।
अदालत में याचिका दायर की थी
ADR ने कहा कि चुनाव आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में किया गया यह दावा कि उसे वोटर लिस्ट रिवीजन के दौरान मतदाताओं की नागरिकता का वेरिफिकेशन करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, यह दावा अदालत के पुराने फैसलों के खिलाफ है। बताना होगा कि SIR के खिलाफ कई राजनीतिक दलों के नेता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और ADR ने भी इसके विरोध में अदालत में याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को नकारा
चुनाव आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आधार, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के तौर पर नहीं माना जाएगा और उसने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के भी सुझाव को स्वीकार नहीं किया। आयोग का कहना था कि आधार, राशन कार्ड या वोटर आईडी कार्ड धोखाधड़ी या गलत डॉक्यूमेंट पेश करके बनाए जा सकते हैं। इसे लेकर ADR ने कहा है कि आयोग के द्वारा मांगे गए 11 दस्तावेज भी फर्जी या झूठे दस्तावेजों का इस्तेमाल कर बनाए जा सकते हैं।
EROS को मिली बेहिसाब ताकत
ADR ने कहा है कि बिहार से जो ग्राउंड रिपोर्ट्स मिल रही हैं, उनके मुताबिक चुनाव आयोग की ओर से दिए गए दिशा-निर्देशों का बूथ लेवल अफसर बीएलओ द्वारा उल्लंघन किया जा रहा है। ADR के मुताबिक, मतगणना फार्म की जांच या डॉक्यूमेंट्स के वेरिफिकेशन के लिए कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं है और इससे (EROs) को बेहिसाब ताकत मिल गई है।
ADR ने कहा-नागरिकता साबित करें
ADR ने अपने जवाब में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों- लाल बाबू हुसैन बनाम भारत संघ (1995) और इंद्रजीत बरुआ बनाम ECI (1985) का हवाला दिया है। इंद्रजीत बरुआ बनाम ECI (1985) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वोटर लिस्ट में नाम होना नागरिकता का सबूत है और इसे खारिज करने की स्थिति बनती है तो ये जिम्मेदारी आपत्ति करने वाले की है।चुनाव आयोग ने कहा था कि मतगणना फार्म के साथ ही 2003 के बाद वोटर लिस्ट में जोड़े गए मतदाताओं को उसके द्वारा जारी किए गए 11 डॉक्यूमेंट्स में से कोई एक देना होगा जो उनकी नागरिकता को साबित करता हो। ADR ने कहा है कि इस वजह से 2003 के बाद वोटर लिस्ट में शामिल हुए मतदाताओं पर उम्र और नागरिकता को साबित करने की जिम्मेदारी आ गई है।
65 लाख मतदाता लिस्ट से बाहर
SIR के पहले चरण का काम पूरा हो गया है और इसमें बिहार के करीब 8% मतदाता यानी 65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए हैं। अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या ये लोग चुनाव में वोट नहीं डाल पाएंगे? चुनाव आयोग ने कहा है कि 7.23 करोड़ मतदाताओं के फॉर्म मिले हैं जिन्हें मतदाताओं की ड्राफ्ट सूची में शामिल किया जाएगा।