
Government of chattisgarh fails to deal with TB
राष्ट्रमत न्यूज,रायपुर(रमेश कुमार‘रिपु’)।’ कहने को छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार है। लेकिन उसे खुद पता नहीं है कि कैसे टीबी को मात देंगे। इसलिए कि प्रदेश में अप्रैल माह से टूनाट की चिप नहीं है। इसी चिप से टी.बी.के मरीजों की जांच होती है। टूनाट की चिप नहीं होने से मरीजों की जांच ठप है। केन्द्र सरकार का आदेश है टीबी की जांच सिर्फ टूनाट चिप से होगी। चालीस हजार टूनाट की चिप आई थी, जो कि अप्रैल में ही खत्म हो गयी है। 60 हजार टूनाट चिप मंगाया गया है। कब आयेगा, विभाग को भी नहीं पता। तैंतीस जिले में साठ हजार टूनाट की चिप ऊंट के मुँह में जीरा सा ही होगा। ऐसे में टी.बी.के आंकड़े कितने सही होंगे,कुछ कहा नहीं जा सकता।
कैसे होगा टीबी मुक्त छग
कहने को छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार है। जिसका बड़ा इंजन दिल्ली में और छोटा इंजन छत्तीसगढ़ में है। सियासी डबल इंजन की सरकार में इस समय टीबी रोग के मरीजों की शामत आ गयी है। क्यों कि अप्रैल माह से टीबी रोग की जांच के लिए टूनाट मशीन के लिए चिप नहीं है। जिससे मरीज जांच के लिए भटक रहे हैं। अथवा निजी अस्पतालों का चक्कर लगा रहे हैं।यह स्थिति तब है जब पूरे देश में प्रधानमंत्री ने टीबी मुक्त भारत अभियान चला रखे हैं। 2025 तक देश से टीबी रोग का उन्मूलन किया जाना है।यह चिप सेंट्रल टीबी डिवीजन से सप्लाई होती है। जिसकी सप्लाई लंबे समय से नहीं हुई ।
’जाँच के गणित को समझें
जिलों में टीबी रोग की जांच तीन प्रकार से की जाती है। पहले माइक्रोस्कोप से दूसरा एक्सरे के माध्यम से तीसरा नाट मशीन के माध्यम से। भारत सरकार ने माइक्रोस्कोप से टीबी की जांच की मनाही की है।माइक्रोस्कोपिक जाँच केवल फालोअप हेतु किया जाना है।नाट मशीन जीन एक्सपर्ट मशीन होती हैं,जो टीबी के बैक्टीरिया के जींस की पहचान करके रोग होने या नहीं होने को बताती है। नाट मशीन दो प्रकार की होती हैं एक सी बी नाट जो कि जिला अस्पतालों में लगी हुई है। दूसरा टू नाट जो सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में है। जिनकी संख्या सर्वाधिक है।
ऐसी जांच का क्या मतलब
जमीनी स्तर पर टीबी की जांच टू नाट मशीनों से होनी है। लेकिन इसी मशीन की चिप की कमी है।टू नाट मशीन की चिप की कमी का बोझ जिला अस्पतालों में लगी सी बी नाट मशीनों पर है। जो की बलगम के आते हुए सैंपलों की संख्या के हिसाब से नाकाफी है।टू नाट में भी दो प्रकार की चिप होती है। एक वह जो टीवी बीमारी का पता लगाती है,दूसरी वह जो बीमारी पता चलने के बाद यह बताती है कि इस व्यक्ति को रेजिस्टेंस टीबी तो नहीं है। प्रदेश में पहली वाली चिप ही उपलब्ध नहीं है। ऐसे में दूसरी चिप पर्याप्त मात्रा में होने के पश्चात भी किसी काम की नहीं रह जाती।
बीमारी उन्मूलन में बाधक
टू नाट से आये माइक्रो बैक्टेरियम पाॅजिटिव मरीज ही बीमारी को फैलाते हैं। ऐसे में संभावित बलगम पाॅजिटिववाले मरीज समुदाय में खुले घूम रहे हैं, जो बीमारी के उन्मूलन में बाधक होगा। मैदानी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए है टीबी जांच के लक्ष्य को पूरा करना। लेकिन चिप की कमी से जाहिर सी बात है कि फर्जी आंकड़े दिखाये जाएंगे। टीबी
के जाँच के लिए छत्तीसगढ़ प्रदेश के सभी स्वस्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रतिवर्ष टीबी के बलगम के नमूने नाट में भेजने होते हैं। यह हजार की जनसंख्या पर प्रतिवर्ष 30 होती है।
स्वास्थ्य कर्मियों में रोष
भेजे जाने वाले नमूनों की जाँच हो नहीं पा रही है,ऐसे में स्वस्थ्य कार्यकर्ताओ में आक्रोश है। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के अधिकारी टीबी मरीज का सैंपल जांच केन्द्र रिफर्ड करते हैं तो उन्हें पैसे मिलते हैं।कर्मचारी सेंपल भेज नहीं सकते। इससे भी कर्मचारियों में निराशा है। उन्हें लगता है कि उनका मूल्यांकन कम किया जा रहा है।छत्तीसगढ़ में यही कहा जा रहा है कि टूनाट चिप नहीं होने से टीबी अभियान को भी टीबी हो गया है।
इनका कहना है
केन्द्र सरकार ने तय किया है कि 2025 तक देश को टीबी से मुक्त करना है। छत्तीसगढ़ राज्य भी उस दिशा में काम कर रहा है। इस समय टूनाट चिप से टीबी जांच करने का आदेश केन्द्र सरकार का है। चालीस हजार मगाए गए थे। साठ हजार का डिमांड बनाकर सेन्ट्रल टीबी डिविजन को फिर से भेजा गया है। लेकिन जांच बंद नहीं हुआ है। जांच की जा रही है।
डाॅ. धर्मेन्द्र गहवई,उपसंचालक,स्टेट टीबी आफिसर