
Tiger and leopard dog death in balaghat
बालाघाट (ब्यूरो)। जंगल में दहाड़ गुम हो रही है। कभी बाघ तो कभी तेंदुआ लगतार मर रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है। वन विभाग का शिकारियों पर नकेल नहीं है या फिर बाघ और तेंदुआ के सुरक्षा के लिए वन विभाग का अमला असफल साबित हो रहा है। एक ही दिन में जिले के अलग अलग इलाके में दो तेंदुआ का मरना और दो माह के अंदर दो बाघों का कुत्ते की मौत नेे सवाल खड़े कर दिये हैं। क्या फेसिंग की व्यवस्था में बदलाव जरूरी है अथवा जिस वजह से वन्य प्राणी मर रहे हैं उन कारणों को वन विभाग समझ नहीं पा रहा है अथवा दूर नहीं करना चाहता।
कुंए में मरा मिला तेंदुआ
घटनाकटंगी तहसील क्षेत्र के ग्राम नंदोरा से सामने आई जहां कुएं में गिरने के बाद तेंदुए की पानी में डूबने से मौत हो गई। घटना स्थल वन परिक्षेत्र कटंगी के देवरी बीट के अंतर्गत आता है। यहां सुबह करीब 08 बजे किसान रमेश लक्षने ने अपने खेत में बनी कुएं में तेंदुए का शव देखा और वन विभाग को सूचना दी थी। जहां सूचना मिलने पर वन महकमा मौके पर पहुंचा और शव को कुंए से बाहर निकालने की कार्यवाही शुरू की। गांव में तेदुंए की मौत की खबर आग की तरह फैली और मौके उसे देखने हुजूम उमड़ पड़ा।
तेदुआ शिकार की तलाश में आया होगा
वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि तेंदुआ शिकार की तलाश करते हुए खेत की तरफ आया होगा और स्वयं ही हादसे का शिकार हो गया। शाम करीब 4.30 बजे तेंदुआ के शव को कुंए से बाहर नहीं निकाला गया और पीएम करवाकर प्रोटोकाल के मुताबिक तहसीलदार और विभागीय अमले की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार किया गया।
सड़क हादसे में तेंदुंआ मरा
वहीं दूसरी घटना लामता क्षेत्र में घटी। जहां लालदेव मंदिर के पास एक तेंदुए की सड़क हादसे में गंभीर चोट लगने के कारण मौत हो गई। जबकि सूत्रों की माने उसी इलाके में एक दिन पूर्व ही एक तेंदुआ को देखा गया था। आंदेशा है कि यह वही तेंदुआ हो सकता है। इस घटना की सूचना मिलने के बाद वन विभाग आवश्यक कार्यवाही करके देर शाम तेंदुए के शव का पीएम करवाकर अंतिम संस्कार कर दिया।
वन्य प्राणियों की सुरक्षा पर सवाल
शनिवार को घटित हुई इन दोनों घटनाओं से एक बार फिर वन्यप्राणियों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे है। आखिर, ऐसा क्या कारण है कि गर्मी के दिनों में ही वन्यजीवों की जान मुश्किल में पड़ जाती है। क्या पानी के तलाश में वे रहवासी इलाकों की ओर कूच करने लगते है। यदि ऐसा है तो वन विभाग उनके पेयजल की पक्की व्यवस्था क्यों नही करता।क्या वन्यजीवों का कुनबा निंरतर बढ़ रहा है और इस दृष्टि से उनके लिये कोरजोन कम पड़ रहा है। यदि यह सच है तो वन विभाग वन्यप्राणियों के लिये कोरजोन बढ़ाने में दिलचस्पी क्यों नही दिखा रहा। वन्यप्राणी जंगल छोड़कर बाहर ना निकलें। यदि फैंसिंग जैसे इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं तो वन विभाग फेंसिंग की ऊंचाई बढाए और सुरक्षा के कड़े इंतजाम करे। सरकार करोडों का बजट वन विभाग को दे रही है। फिर भी वन विभाग वन्यप्राणियों की सुरक्षा करने में विफल हो रहा है। यदि ऐसे ही वन्यजीव जंगल छोड़कर बाहर आयेगे तो यह निश्चित मानियें वन्यप्राणियों के साथ -साथ इंसानो पर भी एक दूसरे का खतरा बढ़ने लगेगा।
लापरवाही मौत का सबब बने रहे
वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर किये जाने वाले इंतेजाम अब नाकाफी साबित हो रहे हैं। वन्यप्राणी सड़क पर ना आएं इसके लिये बकायदा जंगल में फेंसिग की जाती है और भोजन,पानी से संबंधित संसाधन भी तैयार किये जाते हैं। फिर भी वन्यजीव रहवासी इलाकों की में देखे जा रहे हैं।नतीजा यह निकलता है कि उनकी जिदंगी दांव पर लग जाती है और कभी कभी वे असमय ही मौत के गाल में समा जाते है।जाहिर सी बात है कि लापरवाही बरती जा रही है।