
Where there is a will there is a way, no care about PMs residence
बालाघाट। (ब्यूरो)। कहावत शायद ऐसे लोगों के लिए ही बनी है,जहां चाह,वहां राह। किरनापुर तहसील की पी.एम.आवास के वो हकदार हैं। लेकिन सरकारी व्यवस्था ने उन्हें इस हक से वंचित रखा। उनके सब्र का बांध टूटा तो वो स्वयं अपने रहने कि लिए अपनी मेहनत से मिट्टी का घर बना लिया। उन्हें अपनी मेहनत से बनाए घर से जो खुशी महसूस हो रही है,शायद उन्हें पी.एम.आवास मिलता तो उतनी खुशी न होती।
व्यवस्था को गाय की तरह हांकने वाले
हैरानी होती है आखिर वो कौन लोग हैं,जो सरकारी व्यवस्था को गाय की तरह हांकते हैं। पीएम आवास में भी बगैर रिश्वत के पात्र हितग्राहियों को उनके हक से वंचित रखते हैं। कलेक्टर को कायदे पी.एम आवास की फाइल पर नजरें डालनी चाहिए। बात सिर्फ अनिल करडे की नहीं है। जिले में अनिल करडे जैसे कई लोग होंगे जो पी.एम आवास की उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन पी.एम आवास उनके लिए अब भी सपना है।
क्या सर्वे वाले रिश्तखोर हैं..!
सवाल यह है कि सर्वे के आधार पर पी.एम आवास मुहैया किया जाता है, तो क्या यह मान लिया जाए कि सर्वे करने वाले रिश्वतखोर हैं। या फिर वो पी.एम आवास का सर्वे ईमानदारी से नहीं करते। जिले में ऐसे भी लोग हैं, जो पी.एम आवास के हकदार नहीं है, उन्हें आवास मिल गया है। जिन्हें मिला है, वो उसे किराये पर उठा दिये हैं। प्रशासन को कायदे से पी.एम आवास का ऐसा भी सर्वे करना चाहिए, जिन्हें पी.एम आवास मिला है,वो उसमें रह भी रहे हैं या नहीं। पात्र हितग्राहियों के साथ आखिर कब तक सौतेला व्यवहार व्यवस्था की डोर थामने वाले करेंगे।इसका जवाब झोपड़ी के अंदर टिमटिमाते दीये को कब मिलेगा,कलेक्टर को बताना चाहिए।
वो खुशी मिल गयी
अनिल करडे का कहना है कि पी.एम.आवास का इंतज़ार कई सालों तक किया। जब भी सर्वे की खबर सुनने को मिलती तो लगता कि इस बार सर्वे उसका नाम जुड़ जाएगा। जुड़ा भी होगा। लेकिन मिला नहीं। तब एक दिन तय किया क्यों न खुद के रहने के लिए घर बना लिया जाए। और फिर एक दिन वो खुशी पा लिया,जिसकी चाह मन में थी। अब पी.एम आवास की परवाह नहीं।