
Kamalnaths half break in the party
भोपाल।(रमेश तिवारी ‘रिपु’)। मध्यप्रदेश में कांग्रेस कई विघटन झेल चुकी है। नए कनात से राहुल गांधी रोते हुए पीपल को चुप कराने की कवायद कर रहे हैं।जिसके बारे में चर्चा है कि आजादी के इतने बरस बाद भी वो क्यों रोता है। राहुल की नयी शैली और उनका नया आब्जेक्ट फिलहाल प्रभावित कर रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश कांग्रेस में वैसा कुछ भी नहीं है। इदिरा गांधी के तीसरे बेटे के रूप में कमलनाथ कांग्रेस में जाने जाते हैं। लेकिन अब जानने और जाने जाते हैं, का दौर खत्म होे गया है। इसलिए कि यह राहुली कांग्रेस की पार्टी है। जहां कांग्रेस को डुबोने वालों की जरूरत नहीं है। मध्यप्रदेश में जब तक कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष रहे और मुख्यमंत्री उनकी जेब में पार्टी थीा। अब पार्टी उनकी जेब से छिटक कर जीतू पटवारी की जेब में चली गयी है। ऐसेे में कमलनाथ का पार्टी में अर्द्धविराम होना आश्चर्य की बात नहीं है। जीतू पटवारी वही करेंगे जो दस जनपथ से आदेश आयेगा। दस जनपथ चाहेगा।
बीजेपी में जाने वाले थे कमलनाथ
कमलनाथ की वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी। कमलनाथ ने जिसे चाहा टिकट दिया। जिसे चाहा पार्टी से निकल जाने या निकाल देनेे का रास्ता बनाया। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने की बजाए वो फर्श पर आ गयी। जो सरकार बनी वो भी सरासतल में चली गयी। वो खुद भी पार्टी में किसी को लेकर चलने की सियासत नहीं किये। अजय सिंह राहुल को भी पार्टी से बाहर करने की पूरी जुगत की। एक बीच चर्चा आयी कि अजय सिंह राहुल नरोत्तम मिश्रा से मिले। कयास लगा कि बीजेपी में जा रहे हैं। सिद्धार्थ तिवारी,सुरेश पचैरी,कमलनाथ के करीबी दीपक सक्सेना,अजय सक्सेना अपने चार सौ साथियों के साथ कांग्रेस छोड़ा। कांग्रेस के जितने भी जमीनी कार्यकरता और नेता रहे, वो सब कमलनाथ की वजह से कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले गए। कमलनाथ के समय करीब 75 हजार कांग्रेसी बीजेपी में शामिल हुए थे। नरोत्तम मिश्रा कहते थे विश्व रिकार्ड बनेगा कांग्रेस छोड़ने वालों का। वो स्वयं भी अपने बेटे नुकुलनाथ के साथ बीजेपी में जाने वाले थे। तब नहीं गये, तो अब उनकी पार्टी में पूछ नहीं होने का मतलब है कि उनकी विदाई का रास्ता बनाया गया है।
कांग्रेस में आस्तीन चढ़ाने का दौर
इससे इंकार नहीं है कि जब से जीतू पटवारी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं,कांग्रेस के संगठनात्मक ढाचे की तस्वीर बदल गयी है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की राजनीति प्रदेश कांग्रेस में अल्प विराम हो गयी है। यह दर्द पूर्व सीएम कमलनाथ का प्रदेश कांग्रेस संगठन से अपनी नाराजगी की रूप में बाहर आया। उन्होंने भरी मीटिंग में कहा कि मुझसे कुछ पूछा नहीं जाता। मीटिंग की सूचना भी नहीं दी जाती। कमलनाथ की इस बात का पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन ने भी समर्थन किया। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस में आस्तीन चढ़ाने की राजनीति का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस के अंदर कई कांग्रेसी होने की वजह से हाथ से हाथ मिलाने की राजनीति का चलन बीते दौर की सियासी कथा हो गयी है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की कांग्रेस है नहीं। अब जीतू पटवारी की है। कमलनाथ पार्टी के संगठन में भी अपनी पकड़ चाहते हैं। और जीतू पटवारी कमलनाथ का दखल नहीं चाहते।
क्यों नाराज हैं कमलनाथ
कमलनाथ साल 2023 के मध्य प्रदेश चुनाव तक पार्टी में सर्वे सर्वा थे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। कमलनाथ इस चुनाव में सीएम पद के भी दावेदार थे। पूरे चुनाव में बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की चर्चा थी इसके बावजूद चुनाव के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए। कांग्रेस 2023 के चुनाव में बुरी तरह हार गई। कमलनाथ इसके बाद से ही साइड लाइन चल रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में छिंदवाड़ा सीट से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस ने टिकट भी दिया, लेकिन नकुल चुनाव जीत नहीं पाए। छिंदवाड़ा को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। कमलनाथ पिछले 40 साल से कांग्रेस में किसी न किसी बड़े पद पर रहे हैं। चाहे वो पद संगठन का हो। चाहे सरकार का। कमलनाथ मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री,मध्य प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं।
पार्टी में नाथ को जगह नहीं
एक हार की वजह से दस जनपथा ने भी कमलनाथ को दरकिनार कर दिया। सन् 2023 में हार के बाद उन्हें कांग्रेस में कोई भी बड़ा पद नहीं मिला। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद कामलनाथ को राष्ट्रीय कांग्रेस में कोषाध्यक्ष और महासचिव बनाए जाने की चर्चा शुरू हुई। इन चर्चाओं को बल तब और ज्यादा मिला,जब राहुल गांधी ने कमलनाथ से लंच पर मुलाकात की थी। लेकिन कांग्रेस की तरफ से उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस में भी किसी पद पर नहीं हैं। वर्तमान में वे सिर्फ छिंदवाड़ा से विधायक हैं। अप्रैल 2024 में कमलनाथ के राज्यसभा जाने की भी चर्चा थी,लेकिन पार्टी ने उनकी जगह दिग्विजय सिंह के करीबी अशोक सिंह को उच्च सदन भेज दिया। कमलनाथ की 2023 के बाद से पूछ परख ना के बराबर है। मध्य प्रदेश में अभी जीतू पटवारी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। उनकी टीम में दिग्विजय सिंह और दिवंगत सुभाष यादव के बेटे शामिल हैं।लेकिन कमलनाथ के बेटे को जगह नहीं दी गई है। उन्हें समझना चाहिए कि पार्टी में वो अर्द्धविराम हो गए हैं। हल्ला मचा कर अपनी छवि खराब कर रहे हैं।
कमलनाथ क्यों किये गए किनारे
मध्य प्रदेश कांग्रेस से कमलनाथ को साइड करने की तीन वजह है। पहली वजह कमलनाथ का उम्रदराज होना है। कमलनाथ अभी 78 साल के हैं। 2028 में जब विधानसभा के चुनाव मध्य प्रदेश में होंगे, तब कमलनाथ की उम्र 82 हो जाएगी। यही वजह है कि कांग्रेस अभी से नए चेहरे को आगे कर 2028 का मैदान तैयार कर रही है। दूसरी वजह सन् 2018 में कांग्रेस ने कमलनाथ को मध्य प्रदेश की बागडोर सौंप दी। लेकिन कमलनाथ न तो पार्टी में टूट रोक पाए और न ही 2023 में वापसी करा पाए।कांग्रेस ने इसके बाद कमलनाथ से मुंह मोड़ लिया। तीसरी वजह कमलनाथ का एक्शन है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कमलनाथ के बीजेपी में जाने की चर्चा हुई। इस दौरान कमनलाथ के दिल्ली स्थित आवास से कांग्रेस का झंडा भी उतारा गया था। कई बार कमलनाथ से इसको लेकर सवाल पूछा गया, लेकिन वो स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाए।इस घटना के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ से दूरी ही बना ली। लोकसभा चुनाव में कमलनाथ छिंदवाड़ा में ही अटके रहे।इसके बावजूद उनके बेटे को जीत नहीं मिल पाई। कमलनाथ की सियासी स्याही अब सूख गयी है। कांग्रेस में नई पटकथा लिखने का उनका समय खत्म हो गया है,उन्हें यह समझ लेना चाहिए।

रमेश तिवारी ‘रिपु’