
No school bulding no road in naxal affected dhiri
बालाघाट। वनग्राम धीरी नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से बेहद संवदेनशील है। बावजूद इसके यहां बुनियादी जरूरतों की ओर सरकार ने अभी तक ध्यान नहीं दिया। एक स्कूल भवन की मंजूरी सन 2022 में मिली थी। लेकिन वह भी अभी तक अधूरा ही है। दो कलेक्टर स्कूल भवन की राशि के लिए पत्राचार कर चुके हैं,लेकिन राशि आज तक मंजूर नहीं हुई। स्कूल भवन नहीं होने से स्कूल एक अतिथि शिक्षक के घर में लगती है। गांव तक पहुंचने का मार्ग पहाड़ पर चलने जैसा है।
रास्ते पर चलना आसान नहीं
जिला मुख्यालय से लगभग 130 किमी दूर वनांचल क्षेत्र में धीरी बसा है। लांजी, सुलसुली,बेदादलखा,माताघाट के रास्ते वनग्राम धीरी तक पहुंचने के लिये कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लांजी के बोदादलखा से माताघाट और धीरी तक पहाड़ी मार्ग बेहद खराब हैं। इस मार्ग पर चलना यानी पहाड़ पर चलने के समान है।
छग के रास्ते लांजी से रिसेवाडा,सीतापाला,घाघरा,गातापार,मलैदा होते हुए मप्र के वनग्राम धीरी पहुंचा जा सकता है। फिर भी प्रशासनिक अमला यहां आने में दिलचस्पी नही रखता। जबकि छत्तीसगढ के सीमावर्ती गांव मलैदा, गातापार और घाघरा की तुलना में धीरी गांव काफी पिछड़ा हुआ है। क्योकि शासन की मंशानुरूप योजनाओं के सहारे भी यहां किसी भी तरह का विकास नही हो पाया है।
स्कूल के लिए कम बच्चे
लगभग 70 की आबादी वाले इस आदिवासी गांव में शिक्षा व्यवस्था खुले आसमान के नीचे ही नजर आती है। वर्तमान में यहां कक्षा पहली में 01 कक्षा दूसरी में 02 कक्षा तीसरी में 02 कक्षा चैथी में 01 बच्चा दर्ज है। वहीं कक्षा पांचवी में एक भ्ी बच्चा नहीं है। कक्षा पांचवी के बाद यहां के बच्चे आगे की पढाई नही कर पाते। क्यों कि आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं है। बालक वर्ग के बच्चे लांजी के बालक छात्रवास में रहकर पढाई कर सकते है, लेकिन अभिभावक भेजना नहीं चाहते। इसके विपरित बालिकाओं के लिये लांजी में छात्रवास की सुविधा नहीं है। इस गांव में केवल सौर उर्जा से ही बिजली मिलती है। ग्रामीणों की माने तो उनके पास रोजगार के भी कोई साधन नहीं है। वन विभाग से यदि रोजगार मिल गया तो गुजारा आसान हो जाता है अन्यथा कृषि के सहारे ही दिनचर्या कटती जा रही है। गांव की समस्या को लेकर ग्रामीणांे ने कई बार अधिकारी,कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों से चर्चा की है, परंतु किसी ने कोई सार्थक पहल नहीं की।
कलेक्टर ने लिखा पर राशि नहीं मिली
इस गांव में बुनियादी सुविधाएं नहीं है। आंगन बाड़ी नहीं है। न ही स्कूल भवन है।जबकि पिछले 19 सालों से सरकारी अमला गांव की निरीक्षण करता आ रहा है। वनग्राम धीरी में शास प्राथमिक शाला भवन की स्वीकृति अगस्त वर्ष 2022 में मिली थी। करीब 14 लाख 06 हजार रुपए की लागत से स्कूल भवन का निर्माण कार्य प्रांरभ किया गया है। जिसकी पहली किस्त 3.50 लाख प्राप्त हुई और उसका भुगतान भी किया जा चुका है। आगे शासन की ओर से कोई बजट राशि नहंी मिलने से तीन साल से स्कूल भवन नहीं बन रहा है।बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ते हैं। बारिश हुई तो छुट्टि हो जाती है।कलेक्टर गिरीश कुमार मिश्रा ने पत्राचार किया था लेकिन राशि नहीं मिली। वर्तमान कलेक्टर मृणाल मीना ने 4 सितम्बर 2024 को राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल को पत्र लिखा था, राशि अभी तक नहीं मिली।
पुरुष शिक्षक की जरूरत
यहां भवन का अभाव तो है ही लेकिन शिक्षक की भी लापरवाही है। शासकीय प्राथमिक शाला धीरी में महिला शिक्षिका दुर्गेश पटले पदस्थ हैं। जर्जर मार्ग होने की वजह से वो सप्ताह में एक दो दि नही स्कूल आती हैं। नक्सल दृष्टि से बेहद संवेदशील इलाका होने के चलते महिला शिक्षिका रोजाना स्कूल नही पहुंच पाती हैं। संबंधित विभाग को इस स्कूल में पुरुष शिक्षक को नियुक्त किया जाना चाहिए।
इनका कहना है
गांव में काफी समस्यायें है। सड़क, बिजली और पानी नहीं है। प्राथमिक स्कूल भवन भी नही बना है।इसलिये अपने घर में ही स्कूल लगाते है। स्कूल भवन का काम अधूरा पडा है। पंचायत वाले भी ध्यान नही देते और ना ही अधिकारी,कर्मचारी गांव में आते है।
कालूराम सिरसाम अतिथि शिक्षक और ग्रामीण
वनग्राम धीरी विकासखंड लांजी
इनका कहना है
भवन का कार्य प्रगति पर है।शासन से जितनी राशि प्राप्त हुई थी उस आधार पर ही कार्य करवाया गया है। शेष राशि अभी प्राप्त नही हुई है। हमारे द्वारा कई बार पत्र शासन को भेजा जा चुका है। संभवत जनवरी माह में राशि प्राप्त होगी तो पुनः आगे का कार्य प्रारंभ करवा दिया जायेगा।
शिव भास्कर, सहायक यंत्री,सर्व शिक्षा अभियान