
6885 women in high risk category
बालाघाट। मेटरनल डेथ यानी मातृ मृत्यु दर को कम करने और संस्थागत प्रसव के ग्राफ को बढ़ाने में स्वास्थ्य विभाग ने कुछ हद तक सफलता प्राप्त की हंै, लेकिन आदिवासी अंचलों में प्रसूताओं द्वारा गर्भावस्था के दौरान आयरन, कैल्शियम जैसी दवाइयों से परहेज करना, विभाग के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। जागरूकता की कमी और मन में गलत भ्रांतियों के कारण प्रसूताएं इन दवाइयों से दूर रहती हैं। ऐसे में कई बार प्रसूताओं को गर्भावस्था के आखिर दिनों में खून की कमी, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां घेरती हैं, जो बाद में उन्हें क्रिटिकल या हाई रिस्क कैटेगरी पर ले जाती है।
6885 प्रसूताएं हाई रिस्क कैटेगरी में
इस साल नवंबर तक 6885 प्रसूताएं हाई रिस्क कैटेगरी में चिन्हित हुई हैं। जबकि विभाग द्वारा लाखों की संख्या में आयरन, कैल्शियम, फालिक एसिड जैसी दवाइयों का वितरण किया जा रहा है। आदिवासी व बैगा क्षेत्रों सहित जिलेभर की अन्य प्रसूताओं को उनकी सेहत के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से सुमन डेस्क भी अपनी भूमिका निभा रहा है। सुमन डेस्क के माध्यम से इस साल नवंबर तक 8869 फोन काल किए जा चुके हैं।
विपरित असर बच्चे व मां पर
विभागीय जानकारी के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान शरीर में खून की कमी मातृ मृत्यु की बड़ी वजह होती है। जिले में प्रसूताओं की मौत का सबसे बड़ा कारण उनका नाजुक हालत और अंतिम समय पर अस्पताल पहुंचना है। सुमन डेस्क, शिविर, एएनएम के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग गर्भवती माताओं को आयरन, कैल्शियम, फालिक एसिड जैसी दवाइयां लेने की सलाह दे रहा है, लेकिन आदिवासी अंचलों में गर्भवती माताएं स्वयं से ये दवाइयां नहीं लेतीं या फिर उनके परिवार की बुजुर्ग महिलाएं भ्रांतियों को आधार मानकर ऐसी दवाइयां प्रसूताओं को लेने ही नहीं देतीं। आदिवासी व बैगा क्षेत्रों में ऐसी दवाइयों के प्रति यह धारणा या भ्रांति है कि इनके सेवन से एक तो फायदा नहीं होता, दूसरा इसका विपरित असर बच्चे व मां पर पड़ता है।
जिला अस्पताल के ट्रामा सेंटर सहित जिलेभर के अस्पतालों में हर साल औसतन 25 हजार प्रसव होते हैं। इनमें विभाग के लिए सबसे बड़ी चुनौती जिले के पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) की महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान भोजन, दवाई आदि के लिए जागरूक करना है। विभाग स्वीकारता है कि इन समूह की प्रसूताएं खानपान व दवाइयों का ध्यान नहीं रख पातीं। इसे लेकर उन्हें लगातार जागरूक किया जा रहा है।
यह हैं प्रसव लक्ष्य..
स्वास्थ्य विभाग ने अक्टूबर 2024 तक 17,240 प्रसव किए हैं। यानी 27,908 के लक्ष्य का 61.8 प्रतिशत प्रसव हुए, 2022-23 में जिले में 95.1 प्रतिशत संस्थागत प्रसव हुए।, 2023-24 में जिले में 98.2 प्रतिशत संस्थागत प्रसव हुए।, इस साल अक्टूबर तक 14,282 प्रसव हो चुके हैं, जो पिछले साल से अधिक है।, वर्ष 2022-23 में जिले में 31 प्रसूताओं की मृत्यु हुई थी।, वर्ष 2023-24 में ये आंकड़ा नीचे आकर 21 तक पहुंच गया।, नवंबर 2024 तक जिलेभर में बीते सालों की तुलना में 18 मौतें हुई हैं।, इस साल सुमन डेस्क ने 8869 फोन काल किए हैं।, विभाग ने इस सत्र में 4.43 लाख कैल्शियम, 4.30 लाख आयरन की टैबलेट वितरित की हैं।
इनका कहना हैं
बालाघाट जिले में मातृ मृत्यु दर में कमी आ रहीं है। संस्थागत प्रसव का आंकड़ा भी बेहतर हुआ है। निश्चित ही जिले के आदिवासी और पीवीटीजी क्षेत्रों में जागरूकता की कमी है। वहां दवाइयों को लेकर भ्रांतियां हैं, जिसे दूर करने के लिए सुमन डेस्क, विभाग का मैदान अमला जुटा है। गर्भावस्था के दौरान समय पर जरूरी दवाइयां न लेने से खून की कमी सहित अन्य बीमारियां होती हैं, जिससे प्रसूता क्रिटिकल स्टेज में पहुंचती हैं। पौष्टिक आहार, नियमित दवाइयों को लेकर जागरूक किया जा रहा है।
डा. मनोज पांडेय, सीएमएचओ, बालाघाट