
बालाघाट (ब्यूरो )। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर नक्सल प्रभावित एक गांव है कावेली। यहां पेयजल की समस्या से निजात दिलाने के लिए शासन ने एक विशाल पानी की टंकी तो बना दी गई, लेकिन डेढ़ साल गुजरने के बावजूद अब तक इसका उपयोग नहीं हो रहा। लेकिन अब यही टंकी गांव वालों की एक दूसरी समस्या सुलझा रही है। पानी टंकी से गांव में पानी की आपूर्ति तो नही हो रही है, लेकिन मोबाइल नेटवर्क जरूर मिल रहा है।
बात करनी है तू ऊंचाई पर जाइए
आपको बता दे कि जिले के नक्सल प्रभावित गांव कावेली में मोबाइल नेटवर्क ना मिलने से लोग खासे परेशान रहते है। यह समस्या वर्षो पुरानी है, जिसका निराकरण अब तक नहीं हो पाया है। हालात ऐसे है कि लोगो को बात करने के लिए ऊँचाई पर जाना पड़ता है। लोग पहले इधर उधर भटकते थे, लेकिन गांव मे जब से पानी टंकी बनी है, मानो नेटवर्क प्रॉब्लम थोड़ी सुलझ गई है। अब ग्रामीणों को जब भी मोबाइल यूज करना होता है तो वे पानी टंकी का सहारा लेते है और पानी टंकी की 40 फिट ऊँचाई पर चढ़ने के बाद फोन पर बाते हो पाती है। गांव में नेटवर्क ना मिलने से इंटरनेट से जुड़े किसी भी प्रकार के कार्य नहीं हो रहे हैं। एक तरह से कहा जाए तो कावेली और इसके आस पास के दर्जनों ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की समस्या बनी होने से देश दुनिया की जानकारी से भी कटे हुए हैं।
सिर्फ देखने के लिए बनी है पानी टंकी
इस गांव मे जल आपूर्ति के लिए लाखो की लागत से पानी टंकी का निर्माण हुआ है। उम्मीदें थी कि गांव में अब घर-घर पानी पहुंचेगा। लेकिन यह बात महज सपना बनकर रह गया। पानी टंकी अभी अनुपयोगी है, लेकिन इसका निर्माण करवाकर मानो पीएचई विभाग ने नेटवर्क की समस्या सुलझा दी है। पहले ग्रामीणो को मिलाने के उंचे स्थान की तलाश करनी पड़ती थी, जिसके लिये वे उंची पहाडी पर जाते थे और मोबाईल फोन का उपयोग कर पाते थे। इसके अलावा कभी पेड़ पर चढकर नेटवर्क मिलाते थे। लेकिन अब मुश्किले थोडी आसान हो चुकी है। अब गांव के युवा सीधे सीढ़ियों के सहारे पानी टंकी के अंतिर छोर पर चढते है और नेटवर्क मिलते ही मोबाईल फोन चलाते है और उनकी अपनो से बात हो पाती है। यह पानी टंकी अब गांव के युवाओं के लिए नेटवर्क मिलाने मे बेहद कारगर साबित हो चुकी है।
50 से अधिक गांव में नेटवर्क नहीं
बालाघाट जिले के बैहर, परसवाडा, लाँजी और बिरसा क्षेत्र के लगभग 50 से अधिक गांव ऐसे होगें, जहां मोबाइल नेटवर्क नहीं है। जबकि कुछ गांवो मे मोबाइल टॉवर स्थापित किये जा चुके है, जिन्हे स्थापित हुए महीनों बीत गए, लेकिन नेटवर्क सेवा शुरू नहीं की गई। जिसके चले लोगो के हाथो मे रखे उनके मंहगे मोबाईल फोन, महज शोपिस बनकर रह गये है। बेबस ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन से इस समस्या पर गुहार लगाई है, लेकिन राहत नहीं मिली। इससे पीछे कही ना कही जिला प्रशासन और जिम्मेदार अफसरों की इच्छा शक्ति साफ कमजोर नजर आ रही है। वही पुलिस विभाग से मिली जानकारी के अनुसार नक्सल गतिविधियों को ध्वस्त करने के लिये जिले में 68 मोबाईल टॉवर का प्रस्ताव शासन से पास हुआ है, जिस पर कार्य प्रगति पर है।