
Saffron umbrella did not spread in jharakhand due to this reason
रांची।(राष्ट्रमत ब्यूरो के साथ रमेश तिवारी ‘रिपु’)। महाराष्ट्र में महायुति रिकार्ड मतों से जीती मगर झारखड में बीजेपी सारे दांव अपना कर भी नहीं जीत सकी। ऐसा कौन सी वजह रही है जिस वजह से भगवा छतरी नहीं तनी। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व को हैरान है कि राज्य में आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान के बाद भी आखिर पार्टी की इतनी करारी हार कैसे हो गयी। 81 सीटों वाले झारखंड में एनडीए को 22 जबकि इंडिया गठबंधन ने 56 सीटें मिली। जबकि अंत तक यही माना जा रहा था कि चुनावी लड़ाई में बीजेपी का पलड़ा भारी है।
जमीनी मुद्दों को समझ नहीं पाए
झारखंड में बीजेपी का सह प्रभारी बनने के बाद हिमंता बिस्वा सरमा ने झारखंड के संथाल परगना इलाके में कथित रूप से बांग्लादेशी घुसपैठ की बात को जोर शोर से उठाया। अन्य बीजेपी नेताओं ने लव और लैंड जिहाद की बात की। यह दावा किया कि झारखंड के आदिवासी इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठिये आ रहे हैं। यहां की आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनकी संपत्ति हड़प रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में घुसपैठ के मुद्दे को उठाया था। लेकिन यहां के वोटर इसे मुद्दा ही नहीं माना। और नाराज होकर इंडिया गंठबंधन को वोट कर दिया।
बीजेपी की रणनीति ध्वस्त
बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान आदिवासियों की रोटी, माटी,बेटी की हिफाजत को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया। बाकी मुद्दों को बीजेपी ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। चुनाव नतीजों से पता चलता है कि संथाल परगना इलाके में बीजेपी की यह रणनीति पूरी तरह ध्वस्त हो गयी। बीजेपी खाता भी नहीं खोल पाई। हालांकि उत्तरी छोटा नागपुर इलाके में पार्टी को थोड़ा सा फायदा हुआ। यहां 25 में से 14 सीटें बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को मिलीं।

घुसपैठिये तक सिमटी बीजेपी
इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि झारखंड के चुनाव में बीजेपी के पास कई मुद्दे थे। जिन्हें वह उठा सकती थी। जैसे बेरोजगारी, नौकरियों की कमी, हेमंत सोरेन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, सोरेन सरकार के मंत्री आलमगीर आलम से धन की बरामदगी, भर्ती परीक्षाओं के दौरान उम्मीदवारों की मौत। लेकिन वह जनता से जुड़े मुद्दों को हाशिये पर रख कर सारा ध्यान घुसपैठ पर ही केंद्रित किया।
जयराम ने नुकसान पहुंचाया
महतो समुदाय के उभरते हुए नेता जयराम महतो ने कई विधानसभा सीटों पर बीजेपी और एनडीए को नुकसान पहुंचाया। महतो की पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा को कम से कम 11 सीटों सिल्ली, बोकारो, गोमिया, गिरिडीह, टुंडी, इचागढ़, तमार,चक्रधरपुर, चंदनकियारी, कांके और खरसावां पर मिले वोट पर हार जीत के अंतर ज्यादा हैं। सिर्फ एक सीट डुमरी में इसने झामुमो को नुकसान पहुंचाया। डुमरी सीट से जयराम महतो चुनाव जीते हैं।जयराम महतो के राजनीति में आने की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी की सहयोगी पार्टी आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) को हुआ है। आजसू को इस चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। जबकि 2019 में उसने दो सीटें जीती थी। चुनाव में आजसू के प्रमुख सुदेश महतो खुद भी सिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव हार गए।
मैय्या सम्मान योजना
झारखंड में मैय्या सम्मान योजना बीजेपी के हार की सबसे बड़ी वजह थी। छह लाख वोट महिलाओं के ज्यादा पड़े पुरुषों की तुलना में। चुनाव में 91.16 लाख महिलाओं ने जबकि 85.64 पुरुषों ने वोट डाला। इस लिहाज से महिलाओं ने करीब 6 लाख वोट ज्यादा डाले। इस योजना के तहत 21 से 49 साल की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए दिए जाते हैं। झामुमो ने मैय्या सम्मान योजना का चेहरा हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन को बनाया। कल्पना ने इस योजना को झारखंड की महिलाओं के बीच में पहुंचाने के लिए पूरे राज्य में लगातार बैठकें और सभाएं की।
आरक्षित सीटों पर बीजेपी हारी
वैसे बीजेपी आदिवासियों के हक की बातें करती है। लेकिन झारखंड चुनाव में परिणाम बताते हैं कि आदिवासी उससे छिटक गया। झारखंड की विधानसभा में 28 सीटें जबकि लोकसभा की 5 सीटें आरक्षित हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी लोकसभा में आरक्षित पांच सीटों में एक भी नहीं जीती थी। 28 आरक्षित विधानसभा सीटों में से बीजेपी सिर्फ एक सीट पर जीत पाई है। इससे ऐसा लगता है कि आरक्षित सीटों पर बीजेपी को बहुत काम करना है।
आदिवासी बीजेपी से दूर
झारखंड में फिर से हेमंत सोरेन की सरकार बनने से एक बात साफ है कि आदिवासी समुदाय बीजेपी के साथ नहीं जुड़ पाया। जबकि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी ने बड़े पैमाने पर आदिवासियों तक पहुंचने की कोशिश की थी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। बीजेपी ने आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिरसा मुंडा के जन्म स्थान खूंटी में स्थित उलिहातू पहुंचे थे। झारखंड के आदिवासी वोटर केा अपनी तरफ बीजेपी को करना चाहती है तो यहां उसे और काम करना पड़ेगा। विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कई बड़े आदिवासी नेताओं की पत्नियों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भी चुनाव हार गईं। पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार गए।
इलेक्शन मैनेजमेंट ठीक नहीं
हरियाणा चुनाव और महाराष्ट्र चुनाव की तरह बीजेपी का इलेक्शन मैनेजमेंट झारखंड में वैसा नहीं था। इस वजह से बीजेपी वोटरों तक अपना पैठ नहीं बना पाई। इसके अलावा टिकट वितरण को लेकर भी नाराजगी रही। सात विधानसभा सीटों पर पार्टी ने गलत टिकट बांटे। कुछ सीटों पर बीजेपी बागियों से निपटने में भी फेल रही। योगी आदित्यनाथ का कटेंगे तो बंटेगे नारे की खूब चर्चा हुई, लेकिन हिन्दू वोटों को झारखंड में नहीं जोड़ पाई। जिससे बीजेपी यहां हरियाणा और महाराष्ट्र जैसा कामयाब नहीं हो सकी।