
Whether the video is obscene before watching the judge before the decision
राष्ट्रमत न्यूज,तिरुवनंतपुरम। केरल हाई कोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति को बरी कर दिया है, जिसे 20 साल पहले अश्लील सामग्री वाले वीडियो कैसेट बेचने के आरोप में दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई गई थी। जज कौसर एडप्पागाथ की एकल पीठ ने कोट्टायम निवासी हरिकुमार को इस आधार पर बरी किया कि उसे दोषी ठहराने और सजा सुनाने वाली मजिस्ट्रेट अदालत और उसकी दोषसिद्धी को बरकरार रखने वाली सत्र अदालत, दोनों ने ही यह पता लगाने के लिए उन वीडियो कैसेटों को नहीं देखा कि उनमें अश्लील सामग्री है या नहीं।
पहले खुद उस वीडियो को देखें
कोर्ट ने कहा कि जब कोई वीडियो कैसेट भारतीय दंड संहिता की धारा 292 (अश्लील पुस्तकों आदि की बिक्री) के तहत सबूत के रूप में पेश किया जाता है, तो कोर्ट के लिए यह आवश्यक है कि वह खुद उस वीडियो को देखे और यह सुनिश्चित करे कि उसमें वास्तव में अश्लील सामग्री है या नहीं।
पूरा दृष्टिकोण गलत था
हाई कोर्ट ने अपने आठ अगस्त के निर्णय में कहा, ‘दूसरे शब्दों में, जब तक अदालत या न्यायाधीश स्वयं वीडियो कैसेट को नहीं देखता और उसे यह विश्वास नहीं हो जाता कि उसमें अश्लील सामग्री है, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि अदालत के समक्ष कोई ठोस साक्ष्य मौजूद है जिससे धारा 292 के तहत अपराध सिद्ध हो।’कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में वीडियो कैसेट की प्रत्यक्ष जांच आवश्यक थी, जो कि नहीं की गई। फैसले में कहा गया, ‘निचली अदालत और अपीलीय अदालत दोनों का साक्ष्य और कानून की व्याख्या करने का पूरा दृष्टिकोण गलत था।’
सत्र अदालत को दी गई थी चुनौती
हाई कोर्ट ने हरिकुमार की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए उसकी दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया तथा उसे बरी कर दिया। हरिकुमार ने अपनी याचिका में मजिस्ट्रेट और सत्र अदालत दोनों के निर्णयों को चुनौती दी थी।