
Impeachment motion can be brought against the chief election commmissioner
राष्ट्रमत न्यूज,नई दिल्ली (ब्यूरो)। विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है।सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मुख्य चुनाव अयुक्त को महाभियोग के जरिये पद से हटाया जा सकता है?इसलिए कि इनके पास न्यायाधीश की तरह अधिकार और पाॅवर होता है। आइये जानते हैं किस तरह मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाया जा कसता है।
न्यायाधीश जैसी सुरक्षा
बिहार चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दलों ने SIR और ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। बीते दिन चुनाव आयोग ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को 7 दिन के भीतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था। वहीं, अब विपक्ष नया दांव चलते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है।मुख्य निर्वाचन आयुक्त लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव है । यदि सरकारें चाहें तो उनकी मनमानी से चुनाव आयोग को दबाव में ला सकती हैं । यही कारण है कि संविधान ने उन्हें न्यायाधीश जैसी सुरक्षा दी ताकि वे स्वतंत्रत तरीके से कार्य कर सकें।
महाभियोग प्रस्ताव
कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सांसद नासीर हुसैन ने भी इसपर चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि पार्टी सभी लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करने को तैयार है। अगर जरूरत पड़ी तो महाभियोग प्रस्ताव भी लाया जाएगा।कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सैयद नसीर हुसैन ने कहा कि पार्टी लोकतंत्र के सभी संवैधानिक हथियारों का इस्तेमाल करने को तैयार है ।उन्होंने कहा , ‘जरूरत पड़ी तो हम लोकतंत्र के तहत उपलब्ध सभी हथियारों का इस्तेमाल करेंगे ।अभी तक महाभियोग पर कोई औपचारिक चर्चा नहीं हुई है, लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो हम कुछ भी कर सकते हैं।ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। और इसकी क्या प्रक्रिया है।
CEC ने दिया है 7 दिन का समय
दरअसल बीते दिन मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने विपक्ष के ‘वोट चोरी’ समेत सभी आरोपों को झूठा करार दिया था। उनका कहना था कि अगर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पास इन आरोपों से जुड़े सबूत हैं, तो सभी सबूतों के साथ 7 दिन के भीतर चुनाव आयोग में हलफनामा दाखिल करें या फिर लोगों को गुमराह करने के लिए माफी मांगे।
मुख्य चुनाव आयुक्त की संवैधानिक स्थिति
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए भारत के संविधान निर्माताओं ने भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना की है, जो केंद्रीय स्तर पर चुनावों का संचालन के लिए अंतिम रूप से जिम्मेदार है । संवैधानिक रूप से बेहद ताकतवर इस संस्था के प्रमुख की भूमिका मुख्य निर्वाचन आयुक्त निभाते आ रहे हैं। संविधान में इस पद की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे के मुताबिक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय चुनावों की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण भारत निर्वाचन आयोग के पास रहेगा । इस स्वायत्त संस्था के प्रमुख के रूप में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास है।
- अनुच्छेद 324(1) के तहत तय है कि चुनावों की समस्त ज़िम्मेदारी निर्वाचन आयोग की होगी.
- अनुच्छेद 324(2) कहता है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करेंगे.
- अनुच्छेद 324(5) कहता है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया न्यायाधीशों के समान होगी.
-इस तरह भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त को भारतीय संविधान के मुताबिक पूर्ण सुरक्षा प्राप्त है । सामान्य दशा में उन्हें हटाया नहीं जा सकता।
निर्वाचन आयुक्तों के मामले में व्यवस्था
मुख्य निर्वाचन आयुक्त तो न्यायमूर्ति के समकक्ष सुरक्षा प्राप्त करते हैं, लेकिन अन्य निर्वाचन आयुक्तों को सीधे राष्ट्रपति हटा सकते हैं । हालांकि, संविधान कहता है कि यदि राष्ट्रपति अन्य आयुक्तों को हटाना चाहते हैं तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त से परामर्श लेना अनिवार्य होगा । यह व्यवस्था सुनिश्चित करती है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की स्वतंत्र भूमिका बनी रहे।मुख्य निर्वाचन आयुक्त लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव है । यदि सरकारें चाहें तो उनकी मनमानी से चुनाव आयोग को दबाव में ला सकती हैं । यही कारण है कि संविधान ने उन्हें न्यायाधीश जैसी सुरक्षा दी ताकि वे स्वतंत्रत तरीके से कार्य कर सकें।
न्यायालय और आयोग की स्वतंत्रता
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार कहा है कि चुनाव आयोग लोकतंत्र की प्रहरिणी संस्था है । एस.एस. धनोआ बनाम भारत संघ (1991) के केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने में केवल संसद का विशेषाधिकार है, कार्यपालिका का नहीं । इससे उनकी स्वतंत्रता और मजबूती सिद्ध होती है। टी.एन. शेषन बनाम भारत संघ (1995) के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ मुख्य निर्वाचन आयुक्त ही नहीं, बल्कि अन्य निर्वाचन आयुक्त भी समान अधिकार रखते हैं । आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय है और सामूहिक निर्णय महत्वपूर्ण है।